Saturday 4 February 2023

किस किनारे.....?

 

हे ईश्वर

मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिसलते जा रहे हैं। बार बार जैसे ही लगता है हम अब संभल गए हैं, पैरों के नीचे से जमीन यूं निकलती है जैसे कभी थी ही नहीं....

जो कुछ देर पहले हुआ वो क्यूं हुआ, क्या ज़रूरत थी? जो सालों पहले हुआ वो भी क्यों हुआ, क्या जरूरत थी? उस इन्सान को मेरी ज़िंदगी में आप क्यो लाए? क्यू उसे इतना ज़रूरी बना दिया कि उसके बिना खुद अपनी ज़रूरत भी नहीं लगती हमें। पता नहीं उस इन्सान को क्या मिलता है ये सब करके?

आज जब हमने डूबने से बचना चाहा तो एहसास हुआ कि सबने हमको थाम रखा है। हम तो पतवार हैं और नाव भी! हमें डूबने का कोई हक ही नहीं है। बहुत ज़ोर से हाथ पांव मारने का मन हुआ, दिल हुआ कहें किसी से कि आए और संभाले हमें!! वरना सब टूट जायेगा, बिखर जाएगा....लेकिन जब हाथ बढ़ाया तो एहसास हुआ कि अपने थके हुए मन मस्तिष्क के साथ भी हमको किसी और को भी किनारे लेकर आना है। मेरी हंसी के पीछे के आँसू किसी ने देखे नहीं और मेरी आवाज़ के कंपन में घुली हुई मेरी घबराहट भी नहीं पकड़ी...

इसलिए सहारे के लिए बढ़े हुए अपने हाथ को चुपचाप समेत लिया हमने। खामोशी ओढ़ ली और दर्द से टीसते हुए दिल को डपट के चुप करवा दिया। आज अगर एक बार किसी के सहारे के लिए हाथ बढ़ा दिया तो किस मुंह से कल सिर उठा के कहेंगे

'हम किसी सहारे के बिना ही जिए हैं इतने साल!'

न किसी को मेरी परवाह न कहीं भी मेरा जिक्र होता है। बस जरूरतों की एक अंतहीन सी सूची है जो थमाए जा रहे हैं। क्या किसी दिन कोई ऐसा होगा जिसे हम अपनी जरूरतों की लिस्ट देकर निश्चिंत हो सकें। क्या कोई ऐसा कंधा होगा कभी जो मेरा सिर खुद से लगा ले। क्या एक सुकून की रात होगी कहीं जब हम किसी के ऊपर सब कुछ छोड़ के निश्चिंत से सो सकेंगे,

शायद नहीं।  मेरे या किसी भी कामकाजी लड़की के जीवन में न ऐसे कंधे होते हैं न ऐसे सुकून

हमारे लिए तो बस सूचियाँ ही बनी हैं शायद

 

Thursday 16 December 2021

दोराहा

 

“जीवन में कभी भी तुम्हें लगे कि कोई और मुझसे बेहतर है तो चली जाना तुम, मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा।“ यही कहा है न तुमने? अपनी मजबूरियों का हवाला देते हो, परिवार का वास्ता भी? गज़ब के अदाकार हो तुम भी! क्यूँ तुम्हें ये मजबूरी याद नहीं थी जब तुमने इस रिश्ते की ओर पहला कदम बढ़ाया था? पूछा था न मैंने तुमसे, तब तो समय था। मेरी कमियाँ गिनवा सकते थे, मुझे छोड़ कर अलग रास्ते पर जा सकते थे। क्यूँ नहीं गए? अब क्या करूँ तुम्हारी माफी का, क्या करूँ तुम्हारी मजबूरियों का और क्या करूँ तुम्हारा? बोलो!!!

 कोई और.... इस शब्द ने मेरे जीवन में इतना जहर घोला है कि आज तक खून थूक रही हूँ मैं। भूली नहीं हूँ मैं कुछ भी, बस तुम्हारे जहर ने असर करना बंद कर दिया है। मुझे याद है जब तुम्हारी बातों से परेशान होकर अपनी रातों की नींद गंवा देती थी मैं। एक बार भी ब्लॉक कर दो तो रात रात भर भगवान से मिन्नतें करती थी। कितनी अजीब थी मैं? मेरी गलती न होते हुए भी अपने को बेहिसाब सज़ा दी है मैंने। आज सोचती हूँ तो उस बेबस लड़की पर बहुत गुस्सा आता है मुझे। प्यार करती है वो ठीक था पर प्यार में अपने आप को भूल गई, क्यूँ?

 पर अब लगता है मेरी सज़ा की मियाद खत्म हो गई है। अब समझ चुकी हूँ मैं कि मैं गलत नहीं हूँ। हर बार तुम्हारे व्यवहार से आहत होने वाला मन अब शांत है। मुझे वो लोग मिले जिन्होने मुझे मुझसे ही मिलवा दिया। मुझे याद है इनके लिए तुमने क्या कहा था! छोड़ दो ये सब तुम इतनी सक्षम नहीं हो कि इस तरह इतने बड़े ग्रुप को संभाल सको। तुम्हारी बात पर गुस्सा तो इतना आया उस वक़्त... अपने स्वार्थ के लिए कोई किसी को इतना भी तोड़ सकता है क्या? मेरे अंदर हर तरह की क्षमता पहले भी थी आज भी है। बस मैं खुद से जादे तुम पर भरोसा करने लगी थी।

 आज वो भरोसा टूटा सा लग रहा है। तुम्हारी बात मान कर मैं सब कुछ छोड़ कर घर पर बैठ गई थी। पर उन कुछ महीनों मे मुझे ये समझ आ गया कि जिन लोगों पर खुद की ज़िम्मेदारी होती है वो इस तरह की ऐश करने का अधिकार नहीं रखते। मुझे भी इस सब की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पर मैंने उस दौरान सब सीख लिया – दुनियादारी भी। आज भले ही तुम मुझसे बेहिसाब नफरत करो पर मैं अपने आप को बेहिसाब प्यार करती हूँ। वो प्यार जो मेरा हक़ है और फर्ज़ भी।

 और हाँ, मुझे आधा अधूरा कुछ नहीं चाहिए। अगर मेरे साथ हो तुम तो पूरे मेरे रहो जैसे मैं तुम्हारी हूँ। वरना न सही! तुम्हारी मजबूरियाँ और जिम्मेदारियाँ तुम्हें मुबारक और मुझे मेरा आत्म सम्मान।

Monday 13 December 2021

मेरी प्यारी बहनिया....

बेटी की विदा शब्द को सुनने और पढ़ने वाले इस स्थिति की गंभीरता की कल्पना भी नहीं कर सकते। नाज़ों से पाली हुई अपनी नाज़ुक सी बेटी एक नए परिवेश और लोगों को सौंपने के लिए पत्थर का कलेजा चाहिए जो शायद मेरे पास नहीं है। अब आप सोचेंगे ये छड़ी अकेली लड़की, किसको विदा दे कर आई है। है मेरे ग्रुप की मिनी mom मेरी छोटी सी गुड़िया – Shammy बिन्नू। संजोग है कि मेरे bday का दिन उसकी शादी का दिन भी बन गया। मेरी प्यारी लाड़ली को इंस्पेक्टर साहब के घर की शोभा बना दिया। सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि सोचने को समय ही नहीं मिला मुझे। 

याद है एक दिन माँ से कुछ बहस हुई थी मेरी और मैंने गुस्से में कहा था, मेरी बेटी के बारे में कुछ मत कहना! कितने हक़ से लड़ गई थी उसके लिए... बेटियों से वैसे भी मेरा आँगन तो गुलजार रहता ही है। कुहु और नूशी के बाद अब ये मेरे क्रेकीज़... लेकिन ऐसे पल जब भी आएंगे मेरी नींद हफ्तों उड़ी ही रहेगी। अभी तो शेफाली के लिए भी मन पक्का करना है। उसके वाले तो व्यापारी हैं बिन्न्स करते हैं। 

एक हम हैं जिसकी रातों की नींद उड़ गई सोच सोच कर कि उसका घर ससुराल कैसा है और एक वो माँ बाप होते हैं जो कन्यादान के साथ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। फिर उस बेटी के साथ चाहे जो कुछ हो वो बस आँखें मूँदे शुतुरमुर्ग की तरह रेत में पड़े रहते हैं। कैसा पत्थर का कलेजा होता है न उनका? घड़ियाली लगते हैं मुझे वो आँसू जो ऐसे परिवार बेटी के लिए बहाते हैं। मैं इतना जानती हूँ भगवान यथाशक्ति मैं अपनी बच्चियों को अकेला नहीं छोडूंगी कभी। 

आगे की लाइंस बस तुम लोगों के लिए। तुममें से कुछ हैं जो बेहद छोटे हैं और अभी उस उम्र तक आने में समय है। उस समय दुबारा पढ़ लेना फील के साथ और क्या! 

Shammy और शैफू 

नया घर और नए रिश्ते बहुत समय और श्रम मांगते हैं, धैर्य भी। ऐसे में कभी कभी होगा कि तुम्हें लगेगा तुम सब कुछ नहीं संभाल पा रही, समझ नहीं आ रहा। एक वक़्त पर सिर्फ एक चीज़ समझने की कोशिश करना – अब से तुम्हारे दो घर हैं। उस घर में जितने भी बड़े हैं उनसे प्रेम, आदर और सम्मान से बात करना। उनको समय देने और उनके तौर तरीके समझने की कोशिश करना। सास जी को अपना बेस्ट फ्रेंड समझना और सबसे बेहतर गाइड भी।

जो छोटे हैं उनसे मस्ती मज़ाक करना। पता है क्रेकीज़ लेवेल तक पहुंचना उनके बस का नहीं, पर जोक वोक तो आते होंगे उनको भी, अड्जुस्टिया लेना! 

और हाँ, गलत बात बर्दाश्त मत करना लेकिन कुछ भी कहने से पहले दो बार सोचना। कभी कभी एक मीठी मुस्कान दो लफ्जों से अधिक कारगर होती है। तो अपने होठों पर हमेशा वो स्माइल रखना और खुश रहना। खुले मन से जाओ अपने नए घर में। पुराने रिश्तों और घर की फिक्र करना लेकिन कुछ दिन के लिए उस नए वाले पर फोकस करो। 

बीच में हम क्रेकीज़ क्या करेंगे? रसगुल्ले खाएँगे और पानीपूरी!! अरे, इंतज़ार करेंगे कि सब सेटल हो और तुम फुल फॉर्म में हम सब से कनैक्ट कर पाओ। We बैंगनी यू रे!! All the Best”

Friday 26 November 2021

ये है क्रेकहेड्स परिवार

 

पहले मैंने सोचा था अंग्रेज़ी वाले ब्लॉग में चिपकाएँगे। वहाँ चिपका दिए अब इधर भी बतियाएंगे...

 

कुछ साल पहले की बात है, मैंने प्रतिलिपि नामक app download किया और कुछ कहानियों से मेरी पहचान हुई। उनमें से एक थी हैलो, आई एम यश... यशस्विनी लड़की क्या पूरा बवाल है! उसकी कहानी पढ़ कर मुझे और पढ़ने का दिल हुआ और इसकी लेखिका अंकु ठाकुर जोकि मेरे सौभाग्य से आज मेरी बेहद अच्छी दोस्त हैं, उनसे पहचान हुई। कमाल तिकड़ी है – अंकु, गरिमा aka गम्मू और वर्षा mam जिन्हें हम सब प्यारी वर्षु और मेरा स्पेशल rain dance mam…. (साइड नोट नाम रखुआ विभाग हमारी गुलबिया का है. अतरंगी नामों के लिए संपर्क करें टिंग टोंग) और तब से अंकु, गरिमा और वर्षा mam मेरी जिंदगी के अटूट हिस्से बन गए।

 

इनकी कहानियों ने कभी मुझे डराया (वर्षा mam का हॉरर), कभी प्यार और दोस्ती का मतलब सिखाया (गरिमा की खासियत) और अंकु रचित सस्पेन्स के सागर में डूब डूब कर हम एक्शन के island के किनारे उतर गए। मैं बेहद  खुशकिस्मत हूँ कि इनकी कहानियों के माध्यम से मैंने अपने आप को जाना, खुद की शक्ति को पहचाना और आज मैं जो कुछ भी हूँ इसमें इन तीनों का हाथ, क्या पैर क्या पूरे के पूरे ये सशरीर हैं। मुझे पता भी नहीं था कि एक दिन इनकी कहानियों के माध्यम से मुझे कुछ ऐसे अटूट रिश्ते मिलेंगे जिन्हें आज हम क्रेकहेड्स के नाम से जानते हैं।

 

हम लोगों को अंकु और गरिमा के स्टेटस पोस्ट्स पर एक दूसरे के कमेंट्स में घुस घुस कर टिप्पणी करने का चस्का ऐसा लगा कि किसी किसी कमेन्ट स्ट्रिंग में 300 -400 कमेन्ट दिखने लगे। इस तरह हम सब का नाम पड़ा क्रेकहेड्स। जब ये ग्रुप बना था तो सोचा भी नहीं था कि जिनके वजह से ये ग्रुप है वो भी एक दिन इसका हिस्सा हो जाएंगे। हम सब शायद वो दिन कभी नहीं भूलेंगे जब अंकु और गरिमा भी ग्रुप का हिस्सा बन गए थे।

 

हाँ तो टूटेसिरों के बारे में क्या ही कहूँ ये लोग बड़े प्यारे हैं और सीधे तो इतने हैं जैसे जलेबी!! एक दिन था कि लिपि पर हम सब अलग अलग भटकते थे और एक दूसरे को कम जानते थे। बस एक चीज़ थी कॉमन हमारे बीच – अंकु और गरिमा #अनिमाज़ (हमारा fanmily नाम है)। अब प्रतिलिपि पर हमारी खुद की एक पहचान है और हम सब एक परिवार हैं प्यारा सा। ईश्वर से यही चाहती हूँ कि मेरे क्रेकीज़ हमेशा खुश रहें और इनकी हर इच्छा पूरी हो। और मुसीबत अगर आए तो हमारी इस वानर सेना के सामने आँख मिलाने की भी हिम्मत न करे।

 

किसी दिन विस्तार से बताऊँगी इनके बारे में

बड़े प्यारे फूल सजाए ईश्वर ने हमारे फुलवारी में

Tuesday 5 October 2021

शुभ (!) विवाह

हे ईश्वर 

मेरे कारण मेरे परिवार को वैसे भी बहुत से कष्ट होते हैं अब उनको और मत सताओ न। कुछ दिन से मन अजीब सा बेचैन है। कितनी रातें बस जाग जाग कर बीत गई हैं। माँ से लड़ाइयाँ भी हो गई जोकि मैं कभी नहीं करना चाहती। सब कहते हैं अपना कहने को तुम्हारा एक परिवार होना चाहिए पर अपने आसपास इन तथाकथित अपने परिवारों को देख कर अब मेरा दिल नहीं करता ऐसा हो। कितना कष्ट होता है न जब अपना ही परिवार आपको समझ नहीं पाता। क्यूँ भगवान? क्या मैं इतनी जटिल हूँ? 

कितनी मासूम सी तो ख्वाहिशें हैं मेरी और सादी पसंद नापसंद... फिर लोग ऐसा क्यूँ सोचते हैं मेरे बारे में? शायद समाज को आदत नहीं है अभी भी कामकाजी लड़कियों की!! बस हर वक़्त हमारे कपड़े, जूतों और जेवरों पर नज़र  डालने से फुरसत नहीं न! क्या यही सब होता है हमारे जीवन में? क्यूँ चाहते हैं सब कि केवल जिम्मेदारी और मजबूरी में ही हम आत्मनिर्भर बनें॥ क्या अपनी खुशी से नहीं बन सकते? आजकल मेरे परिवार वाले कहते हैं मैं उनसे बहुत दूर हो चुकी हूँ। सच है कि मैं अपनी ही दुनिया में गुम हूँ, पर मेरी और उनकी दुनिया अलग कब और कैसे हुई इस पर शायद किसी ने नहीं सोचा होगा। 

कहूँगी तो सबको लगेगा मैं उनको दोष दे रही पर मैं अपने घर में भी उसी तरह अकेली थी जितनी आज हूँ। बस फर्क इतना है कि अब मुझे समान विचारों वाले कुछ लोग मिल चुके हैं अपना सुख दुख बांटने के लिए। क्या मेरी चाहतें इतनी अधिक थीं कि कोई उन पर पूरा नहीं उतरा? ऐसा कौन सा आसमान का चाँद चाहती थी मैं।

वैसे चाँद जी – अरे वो चन्दा मामा आसमान वाले!! 

आपने मेरी जिंदगी में कम आतंक नहीं मचाया – एक बार मेरी diary पढ़ कर मेरे भाई ने मेरा नाम ही रख दिया था – मैं और मेरा चाँद! 

कितना मुश्किल था न अपने घर में अपनी भावनाओं की रक्षा करना। पता नहीं कब, कौन किस कोने से आता और मेरी निजी सोच, दुख दर्द और भावनाओं का मज़ाक बना कर रख देता। पर मैं तब भी बेशर्म थी और आज भी हूँ।

मैने तब भी लिखना नहीं छोड़ा था और आज भी मेरी कलम चलती है, हमेशा चलेगी। 

रहा विवाह तो जब अपना ही परिवार मुझे समझ नहीं पाता, मेरी पसंद नापसंद से इतना अंजान है तो बाहर का कोई भी इंसान क्या ही समझेगा..... फिर शायद बचपन की तरह एक बार फिर diary के पन्ने आँगन में ज़ोर ज़ोर से पढे जाएंगे और इस बार सिर्फ मज़ाक नहीं बनेगा... तमाशा भी बना दिया जाएगा,

नहीं! मैं एकाकी ही ठीक हूँ।

 

 

 

Thursday 9 September 2021

बहुत बदल गई हो......... और तुम????

  हे ईश्वर

ये देखिये:

मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया?

कोई मिलने आया है क्या?

हाँ, हाँ वहाँ तो बहुत से होंगे न!!

आज से तुम अपने रास्ते और मैं अपने.....

मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें जीवनसाथी मिले......

और मास्टर स्ट्रोक :

कोई मिल गया हो और तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो बता देना मुझे.... मैं फिर कभी बताऊंगा तुम्हें कि जो मैंने कहा वो क्यूँ कहा!!

अच्छा! तो नए परिवेश के साथ मुझ पर बदलता मौसम होने का इल्ज़ाम बड़ी जल्दी लगा दिया तुमने. हाँ! मैंने तो सोचा था कि तुम सब खत्म करना चाहते हो, मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो, मुझसे दूर जाना चाहते हो! फिर भी मैं बस खामोश रहती थी। अगर बात होती थी तो कर लेती थी और नहीं तो न सही! सबका एक ही सवाल है मुझसे मैं खामोश क्यूँ रहती हूँ? कभी कुछ कहती क्यूँ नहीं? तुम्हें छोड़ क्यूँ नहीं देती? तुमसे दूर क्यूँ नहीं चली जाती? न जाने कितने सवाल और जवाब सिर्फ एक है....मेरी खामोशी!

...... क्यूंकि अब मेरे पास तुमसे कहने के लिए अलफाज़ नहीं है। याद है जब आँसू आ जाते थे मेरी आँखों में तुमसे दूर होने के ख्याल से ही। आँसू आज भी आते हैं पर तुम्हारे आगे इनको बहा कर अपनी भावनाओं का अपमान अब और नहीं करवाना चाहती। इसलिए मैंने वो सब अपने मन की गहराइयों मे ही कहीं दफ्न करके छोड़ दिया। अब तुम्हारे हिस्से में बस मेरी ये खामोशी ही आएगी।

रहा सवाल इस बदलाव का! जब कोई नए परिवेश में जाता है न तो उसे थोड़ा समय चाहिए होता है अपने क्लांत मन और शरीर को विश्राम देने के लिए। कितना कुछ तो पीछे छोड़ कर आई हूँ मैं। भरा पूरा सा एक घर, मेरे दोनों श्वान!! हाँ पता है तुमको तो वो कुत्ते ही लगते हैं पर मेरा वो परिवार हैं। मेरे बिना न जाने कैसे खाते पीते होंगे? क्या करते होंगे वो!! यहाँ कौन सा फूलों की सेज पर रहती हूँ मैं? मेरा घर, मेरी हर सुख सुविधा और मेरा परिवार सब तो वहीं छूट गया। फिर भी तुम्हारे दिमाग में न जाने कैसी छवि है मेरी.... कि ये सब कहने से चूकते नहीं।

मैं बहुत बुरी हूँ न। फिर भी तुमने इस बुरी लड़की से बातें कीं, उससे आज भी जुड़े हुए हो। कहूँगी तो यही कहोगे मैं किसी के साथ नहीं जुड़ा। लेकिन जिस इंसान को तुम कहते हो मैं तुम्हारी लाइफ मे कोई रुचि नहीं लेता, उसी से जब उसका हाल पूछते हो हर वक़्त, इसे जुड़ना नहीं तो और क्या कहते हैं? जब उन छोटी छोटी बातों के लिए जिनको तुम आसानी से करवा सकते हो कहीं से भी मुझे करने कहते हो तब बहाने सा लगता है। या तो तुम सच में उतने ही मुसीबत में हो जितना तुम कहते हो या फिर तुम झूठ बोलते हो और मेरे पल पल की खबर रखने का बहाना चाहते हो। 

तुम्हारे मन में भरे हुए शक को मैं नहीं मिटा सकती और न ही तुम्हारे बारे में सच जान सकती हूँ। इसलिए

मान लूँगी कि तुम्हारे विवाह की बात सच है और वही करूंगी जो तब करने वाली थी। स्वतंत्र हूँ मैं, उच्छृंखल नहीं। हाँ, हैं मेरे अपने उसूल जो मुझे किसी शादीशुदा से जुडने की इजाज़त नहीं देते। आईन्दा तुम भी मेरा वही रूप देखोगे जो दुनिया को दिखाया है मैंने। इसके लिए अगर तुम कहो कि:

मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया – क्यूंकि एक नई जगह, नए परिवेश में अपना सब कुछ दुबारा बसाने में व्यस्त रही होंगी। हाँ निकलना पड़ता है कभी कभी बिना प्लान के बाहर। मेरे भी दोस्त हैं कुछ नये बने हुए, तो?

कोई मिलने आया है क्या? – नहीं क्यूंकि यहाँ मुझे कोई जानता ही नहीं, जानेगा भी तो क्यूँ मिलने की ज़िद करेगा

हाँ, हाँ वहाँ तो बहुत से होंगे न!! – नहीं कितने भी लोग हों मैं अपने किताबों और घर में एकांत में सुकून से रहती हूँ। मुझे कोई सरोकार नहीं है किसी से भी।

आज से तुम अपने रास्ते और मैं अपने..... – कितनी बार कहोगे? कर के दिखाओ न बिना किसी द्वेष और कटाक्ष के मुझसे मर्यादित दूरी बनाकर

मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें जीवनसाथी मिले...... झूठ तुम चाहते हो मैं हमेशा तुम्हें अपने जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानूँ

और मास्टर स्ट्रोक :

कोई मिल गया हो और तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो बता देना मुझे.... मैं फिर कभी बताऊंगा तुम्हें कि जो मैंने कहा वो क्यूँ कहा!! – तुम अपने मन के पूर्वाग्रह दुराग्रह मुझ पर केवल आरोपित कर सकते हो साबित नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारे प्रति वफादार और एकनिष्ठ भी। हाँ अगर तुम मुझे बीच रास्ते छोड़ कर किसी और को अपना लो तो... बिना किसी सवाल जवाब के मैं अपना रास्ता बदल लूँगी और तुमसे भी यही उम्मीद करूंगी। हाँ ये अलग बात है कि उसके बाद मैं क्या करती हूँ क्या नहीं ये जानने का हक़ तुम्हारा नहीं रहेगा। इतना तो न्याय होना ही चाहिए न?  

 अब मेरी बात –

कल को तुमको शादी करनी है न तो यही मान लो कि हो गई है तुम्हारी शादी और मुझे छोड़ कर आगे बढ़ो। आगे तुमको ये करना ही है तो मान क्यूं न लेते हो? क्यूँ शादी हो गई फिर भी मुझसे जुड़ना चाहोगे? मेरे अपने संस्कार, उसूल, आदर्श और मेरा ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं देता मुझे।

 इसलिए इन सब बातों के लिए अगर तुम कहो कि मैं बदल गई हूँ, तो हाँ मैं सचमुच बदल गई हूँ।

Friday 14 May 2021

एकांत V/S अकेलापन

 हे ईश्वर 

कोरोना एक बार फिर पूरे देश में पाँव पसार चुका है और इस बार पहले से भी खतरनाक रूप लेकर। इस बार तो किसी को भी नहीं बख्श रहा है। क्या बूढ़े क्या जवान सब इसके चपेट में आते जा रहे हैं। पूरे देश में डर और संशय का माहौल है और मैं यहाँ... अपने घर से इतनी दूर! मैं अपने घर से दूर क्यूँ हूँ? इसका क्या जवाब दूँ? घर पर सब एक साथ हैं और मैं यहाँ हूँ। मेरा भी मन कर रहा है वहाँ होने का... पर हर इच्छा पूरी होने के लिए नहीं बनी होती। मुझे भी घर जाने को ज़रूर मिलेगा पर ऐसे सर झुका कर हार कर मैं नहीं जाऊँगी। बिलकुल भी नहीं... जब तक मेरी स्थिति परिस्थिति सब ठीक नहीं हो जाती तब तक इस तरह एकाकी रहना ही मेरे लिए सही है और श्रेयस्कर भी। 

कभी कभी सोचती हूँ सब कुछ इतना कैसे बिगड़ गया? हालात इतने कैसे खराब हो गए? मैं ऐसे कैसे इतने महीनों से इस स्थिति में ऐसी फंसी कि आज तक इस दलदल से निकल नहीं पा रही हूँ। क्या मैं सच में गलत हूँ? क्या मैं सच में ढीठ हूँ? क्या मैंने सच में एक बेज़ा ज़िद पकड़ रखी है? क्या मैंने सच में कुछ गलत किया था? क्या सचमुच मेरे इरादों में कोई खोट था? 

एक बार को मन होता है सर झुका कर मान लूँ इन प्रभावशाली लोगों का आदेश। लेकिन फिर अपनी सुरक्षा और आत्म सम्मान की कीमत पर कोई समझौता करने को मन नहीं मानता। मैं कितना डर गई हूँ भगवान। भविष्य को लेकर कितनी सशंकित होती जा रही हूँ। वो भविष्य जो कभी पानी की तरह साफ हुआ करता था। आज ऐसा गंदला पानी हो चुका है कि कुछ नज़र ही नहीं आ रहा। एक बात बताइये न आप? अगर किसी के पास प्रभाव है तो क्या ये ज़रूरी है कि अपने पद और प्रभाव को वो लोगों को नीचा दिखाने के लिए इस्तेमाल करे? कोई भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यूँ हमेशा बस शासन करना चाहता है, संरक्षण नहीं? कब ऐसा होगा कि कोई अपने घमंड और दुराग्रह को किनारे कर के अपने फैसले लेगा? कब ऐसा होगा कि एक आत्मनिर्भर, सशक्त स्त्री को नीचा दिखाने के बजाय कोई उसे सराहेगा? 

भगवान  मुझे एक सही राह दिखा दो न, मुझे अब कुछ समझ नहीं आ रहा! 




किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...