Sunday 13 October 2019

झूठे इल्ज़ाम मेरी जान....II


तो आपको लगता है कि मेरा किसी के साथ कोई ऐसा वैसा रिश्ता है। आप इस भुलावे में रहना चाहते हैं तो बेशक रहिए। मैं आपको नहीं रोकूँगी। कहने को और बचा भी क्या है वैसे? मेरा चरित्र आपकी कसौटी का मुहताज नहीं है वैसे भी। हर बार यही कहती हूँ न मैं आपको, “मैं आपके साथ हूँ या नहीं, मैं आपके लिए वफादार हूँ या नहीं, मैंने आपको कोई धोखा दिया या नहीं, मेरे जीवन में कोई और है या नहीं...” इन सब सवालों का जवाब आपको वक़्त ही देगा। वक़्त ही सिखाएगा आपको हमारी कद्र करना। उस वक़्त के इंतज़ार में और उसी वक़्त के भरोसे ही काट रही हूँ मैं अपने दिन।
फिर भी जब भी आप मेरी तरफ उंगली उठाते हैं मन विद्रोह सा करने लगता है। मेरे आपके प्रति इतने सच्चे और ईमानदार होने के बावजूद आप मुझ पर विश्वास नहीं करते। ये बात मुझे अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। क्यूँ हो रहा है ईश्वर मेरे साथ ऐसा? मैंने जब भी किसी पर विश्वास किया है हमेशा ठोकर ही खाई है। किसी ने मुझे कभी संभाला नहीं। सब गिराते ही चले गए। अब एक बार फिर मेरा कोई अपना ही मुझे धकेल रहा है। उसी नरक की तरफ जहां से निकले मुझे अभी दिन ही कितने हुए हैं?
मेरा मन इतना क्यूँ मरा हुआ है भगवान? मैं कुछ करती क्यूँ नहीं। जिया नहीं जा रहा है चीख चीख कर कहती हूँ मैं। क्यूँ मर नहीं जाती? क्या इतना भी साहस नहीं बचा मुझमें? और क्या देखना चाहती हूँ? और कितना अपमानित होना चाहती हूँ? और कितना अपमान सहने पर कह सकूँगी धरती माँ, मुझे स्थान दो! मैं माता सीता थोड़े न हूँ जो धरती की गोद मिले। मुझे तो माँ की गोद भी फिलहाल नसीब नहीं। बहुत दूर आ गई हूँ मैं अपने हर रिश्ते से।
अपने आप के भी पास नहीं रह पा रही हूँ मैं अब। क्या करूँ? आज फिर उसने गंदे और गलीज शब्दों में उस दूसरी औरत की तारीफ की। अपने आप पर शर्म सी आने लगी है मुझे। पटाखा, बारूद और माल जैसे शब्द तो केवल सड़क छाप मवालियों के मुंह से सुने थे आज तक। इस परिष्कृत रुचि वाले इंसान के मुंह से निकले तो विश्वास नहीं हुआ कि उसके जैसा इंसान ऐसी गलीज़ भाषा बोल भी सकता है। ऐसी निकृष्ट सोच रख भी सकता है।
क्या सचमुच यही मेरी नियति है ईश्वर? नरक और फिर एक और नरक का अंतहीन सिलसिला! कब और कैसे मिलेगी मुझे मुक्ति। बोलो न?

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