Thursday 7 November 2019

तुम ही हो...


हे ईश्वर

मुझे माफ कर दो! किस मुंह से कहूँ आज मैं। एक मन है जो कहता है मेरी गलती नहीं है। एक है जिसे लगता है मैं थोड़ा और प्रयास कर सकती थी। इतना नाराज़ हो गए वो मुझसे कि बीच रास्ते में मुझे छोड़ कर चल दिए। बिना ये सोचे कि मैं वहाँ से कहाँ जाऊँगी। एक पल के लिए नज़र हटी और वो वहाँ नहीं थे। कैसे कहूँ मुझे कैसा लगा?

वो कहते हैं तुम ईश्वर से दुआ करो कि कभी मेरे नीचे तुम्हें काम न करना पड़े। मैं तो आपसे यही दुआ करती हूँ कि मुझे हमेशा उनके साथ काम करने का मौका मिले। आज वो मुझे गलत समझ रहे हैं ईश्वर क्यूंकि मेरी परिस्थितियाँ मेरा साथ नहीं दे रहीं। कारण चाहे जो भी हो, मैं सिर्फ उनके सुख और आराम के बारे में सोचती हूँ। उनका सुकून ही चाहती हूँ। उनकी सफलता की दुआ करती हूँ।

इतने पर भी आज मैं उनकी परेशानी की वजह बन गई। क्या करूँ मैं कि उनको सुकून मिले। क्या करूँ कि उनके रास्ते की सारी मुसीबतें दूर हो जाएँ। एक से एक अवसर उन्हें मिलें। यही चाहती हूँ मैं। जिस इंसान की आवाज़ सुने बिना मैं अपने दिन की कल्पना भी नहीं कर सकती आज उसी ने कह दिया मैं तुमसे बात करना ही नहीं चाहता इसलिए उसे दिखाने के लिए ही सही मैंने भी अपने आप को उससे थोड़ा दूर कर लिया है।

फिर भी मन का एक छोटा सा कोना है जिसमें बहुत से सवाल हैं। एक कोना जिसमें मेरे सहमे हुए अरमान हैं जो कहते हैं हम पूरे होने की कब तक राह देखें? कुछ सपने हैं जो टूटने के लिए ही देखे थे शायद। कुछ वादे हैं जो उन्होने तोड़ दिए।

ईश्वर मुझे माफ कर दो। मेरे प्रयास ईमानदार सही पर कम ज़रूर थे। मेरे प्रयासों में जो भी कमी है उसे दूर कर दो भगवान। उनके लिए जो भी कुछ सोचा है उसे पूरा कर दो। मेरी कमियों को दूर कर दो। फिर कभी ऐसा कोई मौका मत दो कि मेरे कारण उनको कष्ट पहुंचे। मैं खुद कुछ भी सह सकती हूँ पर उनकी नज़र में अपने लिए नफरत नहीं देख सकती। उस नफरत को प्यार में बदल दो भगवान।

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