Thursday 21 November 2019

मुंह की बात सुने हर कोई...


हे ईश्वर
आज मन बहुत उदास है... सुबह से। मेरा जन्मदिन आने वाला है और मेरी कोई योजना नहीं है। कभी होती भी नहीं थी पर आज पता नहीं क्यूं मन बहुत उदास है। कभी कभी लगता है मेरा अपना कोई है ही नहीं। न किसी की आँखों में मेरे लिए कोई चाह है न ही किसी के पास मेरे लिए वक़्त। क्या इसी खालीपन से बचने के लिए बार बार मुझे शादी करने की सलाह देते हैं सब? लेकिन भगवान इतने सारे रिश्तों से घिरे होकर भी मैं अकेली ही हूँ! इसके आगे आप चाहे रिश्तों की संख्या जितनी भी बढ़ा दो, मैं हमेशा इतनी ही अकेली रहूँगी जितनी आज हूँ।

मेरा कोई अपना नहीं है, ईश्वर। जिनके बीच मैं पैदा हुई, पली बढ़ी वो भी मेरे नहीं है। कहने को है मेरा एक भरा पूरा परिवार। लेकिन इतने बड़े परिवार में मुझे समझने वाला कोई भी नहीं। आजकल एक बार फिर तरह तरह के इल्जामों से छलनी कर देते हैं ये लोग मुझे। मैं दुनिया भर से लड़ सकती हूँ पर मेरे अपने खुद मुझे हारते हुए देखना चाहते हैं।

मैं बचपन से ही अकेली थी भगवान। इस बात का एहसास मुझे हर साल होता है इसी बीच में। जब मेरा जन्मदिन आता है। इस बार भी मेरे लिए कोई फोन नहीं आएगा, कोई तोहफा मेरा दरवाजा नहीं खटखटाएगा। मेरे घरवाले आजकल मेरे खिलाफ मोर्चा सा खोले बैठे हैं। पर एक बात कहूँ? एक बच्चे को दूसरे की छाया में ही बड़ा करना है तो आपको कोई अधिकार नहीं दूसरा बच्चा पैदा करने का।

दोनों अलग होते हैं, दो अलग इंसान। उसके रंग रूप, शौक, रुचियाँ, निर्णय और चुनाव सब अलग होते हैं। फिर भी अपने बड़े बच्चे से लगातार छोटे की तुलना करना कहाँ का इंसाफ है। मैं किसी की फोटोकॉपी नहीं हूँ, ईश्वर। एक भरी पूरी अलग इंसान हूँ। मेरे शौक अलग हैं मेरे निर्णय अलग हैं। उसमें और मुझमें उतना ही अंतर है जितना आकाश और पाताल में होता है। फिर भी आकाश तक नहीं पहुँच पाने वाले अपनी ही आग में झुलसते इस पाताल को नर्क बनाने पर तुले हैं। कैसे समझाऊँ इन लोगों को?

ये भी तो नहीं होता कि अगर वो मुझे नहीं समझ पा रहे तो एक सुरक्षित सम्मानजनक दूरी बना लें। पर नहीं! इन्हें मेरे नजदीक शायद इसलिए रहना है कि मुझे छलनी करते रह सकें। लगातार मुझे ये एहसास दिला सकें कि मैं कितनी गलत हूँ। गलत या सही मुझे आपने बनाया है। मैं अपने आप को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करती हूँ। मेरे निर्णय, मेरे शौक, मेरी रुचियों और मेरी हर कमी के साथ। मुझे किसी तोहफे, किसी फोन, किसी भी सहारे की ज़रूरत नहीं। थोड़ा सा टूटी ज़रूर हूँ पर संभल जाऊँगी, वादा करती हूँ!

जानती हूँ आज थोड़ा मुश्किल है, पर आने वाले कल में कोई न कोई खुशी, कोई न कोई उम्मीद मेरा इंतज़ार कर रही है। है न?

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