Saturday 5 September 2020

गलती मेरी है II

हे ईश्वर

आज तक मैंने हमेशा आपसे उनकी शिकायतें की हैं। बताया है कि वो मुझे कितना सताते हैं। मुझे किस कदर परेशान करते हैं। कितनी बार उनके कारण मैंने आँसू बहाए हैं। कितनी बार किस किस तरह से उन्होंने सताया है मुझे। लेकिन आज मैं आपसे माफी मांगना चाहती हूँ। आज मैंने उनको अपशब्द कहे। मन करता है ऐसी ज़ुबान कट क्यूँ नहीं जाती जिससे मैंने उनके लिए ऐसे अपशब्द बोले। क्यूँ भगवान? आप तो जानते थे कि एक क्षण के आवेश के लिए मैं पूरे जीवन खुद को क्षमा नहीं कर सकूँगी। फिर ऐसा अवसर आपने मेरे जीवन में आने क्यूँ दिया?

मैं क्यूँ उनसे नहीं कह पाती कि मुझे बहुत कष्ट होता है। जब मेरी ही आँखों के सामने वो किसी और पर पर मुझसे जादे विश्वास करते हैं। जब उनकी आँखों में किसी और की उपलब्धियों के लिए प्रशंसा का भाव देखती हूँ। उनकी नज़र में मैंने कोई सफलता अर्जित ही नहीं की। आरक्षण की बैसाखी और मेरा प्रबल भाग्य... यही दो कारण हैं कि मैं आज यहाँ हूँ। कैसे एहसास दिलाऊँ उन्हें यहाँ तक पहुँचने में मेरे पाँव में किस कदर छाले पड़े हैं!

वो धीरे धीरे मुझसे दूर होते चले गए और मैं उनको रोक भी नहीं सकती। मैं हार मान चुकी थी भगवान। स्वीकार कर लिया था कि मैं उनके भविष्य का हिस्सा नहीं हूँ। फिर मुझे क्या हक़ था उन पर और उनके आचरण पर इस तरह सवाल उठाने का? बोलिए न? आपने क्यूँ मुझे ये सब कहने दिया? जवाब क्यूँ नहीं देते?

आपको बहुत अच्छे से पता था न कि मुझ पर चाहे जितनी उँगलियाँ उठा ले वो, मेरा सिर सिर्फ इसलिए ऊंचा रहता है क्यूंकि मैं उनको एकनिष्ठ प्यार करती हूँ। सच्चे मन से उनकी खुशी के लिए, सफलता के लिए आपके आगे हाथ जोड़ा करती हूँ। अब किस मुंह से उनके सामने जाऊँगी? कैसे आँखें मिलाऊँगी उनसे? जिंदगी भर के लिए उनके आगे मेरा सिर झुका दिया आपने।

वैसे ही पिछले साल जो कुछ भी हुआ उससे किसी तरह धीरे धीरे बाहर आने लगे थे हम। सोचने लगे थे कि शायद उनको कभी न कभी एहसास होगा कि गलती मेरी नहीं है। उनके ही नहीं मेरे साथ भी धोखा ही हुआ है। लेकिन नहीं! आपकी दुनिया में मेरे लिए रत्ती भर भी सुकून नहीं, न्याय नहीं।

वो मेरा हाथ इतनी बेदर्दी से छोड़ कर भी कितने सुकून से रहते हैं और मैं? एक गलती करके ऐसी मरी जा रही हूँ। कहाँ है वो चालाकी जिसका वो मुझ पर हमेशा आरोप लगाते रहते हैं?

मुझे तुम्हारी इस दुनिया में अब और नहीं रहना है भगवान। मैं इसके जैसी बिलकुल नहीं हूँ। अपनी छोटी से छोटी गलती के लिए मैंने अपने आप को न जाने कितनी बड़ी बड़ी सजाएँ दे रखी हैं। इस गलती के लिए कैसा प्रायश्चित करूँ? एक तो दिशा दिखा दो। प्लीज भगवान। आपके अलावा मेरे बारे में सोचने वाला कोई नहीं। मुझे और कोई नहीं समझ सकता। प्लीज़ भगवान, उससे कह दो मुझे माफ कर दे। एक बार फिर से मुझे प्यार से देखे, एक बार और मुझ पर विश्वास करे। एक बार तो महसूस करे मेरी तकलीफ़ें। सिर्फ एक बार भगवान! प्लीज़...   

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