अध्याय ५६
हे ईश्वर
कितना बोलती है ये लड़की!! समाज, राजनीति, धर्म, रीत, रिबाज़, त्योहार, सम सामयिक घटनाएं... कुछ नहीं छोड़ती। हर बात पर एक
बात कहती चली जाती है। कितनी कोशिश करते हैं समाज के ठेकेदार इसे चुप करवाने की
फिर भी इसका दुस्साहस हर बार एक नई सीमा पार करता
नज़र आता है।
सच कहूँ तो पिछले कुछ दिनों में मैं सोशल मीडिया पर कुछ ज़्यादा ही
सक्रिय हो गई हूँ। जब भी कोई तस्वीर या लेख पढ़ती हूँ तो उसके नीचे की
प्रतिक्रियाओं को पढ़ कर चुप रहा ही नहीं जाता। नतीजतन मेरी सोच की सड़क के दोनों ओर
पक्ष और मेरे खिलाफ दोनों तरह के लोगों की झाड़ झंखाड़ उग आई है। बीते 15 दिनों में
लोगों ने मुझे गालियां भी बहुत दीं और सराहा भी बहुत। खैर उससे मुझे कोई फर्क नहीं
पड़ता। मैंने लोगों के बारे में सोचना और उनकी परवाह करना बहुत पहले ही छोड़ दिया
था। फिर भी कुछ तीखी प्रतिक्रियाएँ जब भी मिलती हैं सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
मैंने जब आरक्षण के विषय में कुछ बोला तो लोग जातिसूचक गलियाँ और
आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करने लगे। मैं कहना चाहती हूँ कि आरक्षण कभी भी
आर्थिक आधार पर नहीं दिया गया था। वैसे उस समय तो शूद्र को संपत्ति अर्जित करने का
अधिकार भी नहीं था। आज भी कितने ऐसे लोग हैं जो बिना जाति की वैतरणी पार किए रोटी
बेटी का संबंध जोड़ सकें? मैं खुद कई बार लोगों की इसी संकुचित सोच का शिकार
हो चुकी हूँ। इसलिए जब तक हर एक इंसान को अपने नाम के आगे बिना कुछ जोड़े सिर्फ
उसके कर्म के आधार पर पहचान न मिले, तब तक
मैं आरक्षण हटाने की वकालत कभी नहीं करूंगी।
फिर आई वुमेन पावर और नारीवादी विचारों पर निशाना साधने की बारी।
बहुत से लोग ये नहीं समझते कि नारीवाद का अर्थ सिर्फ पुरुष को गाली देना नहीं है।
नारीवाद तो वो परिपक्व सोच है जो औरत और मर्द की बराबरी की बात करती है। वो बराबरी
नहीं जो किसी को औरत को सर्व शक्ति सम्पन्न मानने को मजबूर करे बल्कि वो जो ये
माने कि कभी कभी मर्द भी कमजोर पड़ सकता है, थक सकता
है और चाहे तो अपने लिए आर्थिक सुरक्षा की उम्मीद
किसी और से कर सकता है। नारीवाद का अर्थ केवल पानी पी पी कर मर्द को कोसना नहीं
होता और न ही जानबूझ कर अपने संस्कारों एवं संस्कृति की अवहेलना करना। पुराने का सम्मान
पर नए को स्वीकृति ही परिपक्व सोच का परिचायक है। पर संस्कृति के नाम पर खून की नदियां
बहाने वाले क्यूँ समझेंगे!
बहुत दूर जाना है इस समाज को अभी अपने से भिन्न किसी को स्वीकार करने
के लिए और अभी तो केवल शुरुआत है।