Tuesday 5 October 2021

शुभ (!) विवाह

हे ईश्वर 

मेरे कारण मेरे परिवार को वैसे भी बहुत से कष्ट होते हैं अब उनको और मत सताओ न। कुछ दिन से मन अजीब सा बेचैन है। कितनी रातें बस जाग जाग कर बीत गई हैं। माँ से लड़ाइयाँ भी हो गई जोकि मैं कभी नहीं करना चाहती। सब कहते हैं अपना कहने को तुम्हारा एक परिवार होना चाहिए पर अपने आसपास इन तथाकथित अपने परिवारों को देख कर अब मेरा दिल नहीं करता ऐसा हो। कितना कष्ट होता है न जब अपना ही परिवार आपको समझ नहीं पाता। क्यूँ भगवान? क्या मैं इतनी जटिल हूँ? 

कितनी मासूम सी तो ख्वाहिशें हैं मेरी और सादी पसंद नापसंद... फिर लोग ऐसा क्यूँ सोचते हैं मेरे बारे में? शायद समाज को आदत नहीं है अभी भी कामकाजी लड़कियों की!! बस हर वक़्त हमारे कपड़े, जूतों और जेवरों पर नज़र  डालने से फुरसत नहीं न! क्या यही सब होता है हमारे जीवन में? क्यूँ चाहते हैं सब कि केवल जिम्मेदारी और मजबूरी में ही हम आत्मनिर्भर बनें॥ क्या अपनी खुशी से नहीं बन सकते? आजकल मेरे परिवार वाले कहते हैं मैं उनसे बहुत दूर हो चुकी हूँ। सच है कि मैं अपनी ही दुनिया में गुम हूँ, पर मेरी और उनकी दुनिया अलग कब और कैसे हुई इस पर शायद किसी ने नहीं सोचा होगा। 

कहूँगी तो सबको लगेगा मैं उनको दोष दे रही पर मैं अपने घर में भी उसी तरह अकेली थी जितनी आज हूँ। बस फर्क इतना है कि अब मुझे समान विचारों वाले कुछ लोग मिल चुके हैं अपना सुख दुख बांटने के लिए। क्या मेरी चाहतें इतनी अधिक थीं कि कोई उन पर पूरा नहीं उतरा? ऐसा कौन सा आसमान का चाँद चाहती थी मैं।

वैसे चाँद जी – अरे वो चन्दा मामा आसमान वाले!! 

आपने मेरी जिंदगी में कम आतंक नहीं मचाया – एक बार मेरी diary पढ़ कर मेरे भाई ने मेरा नाम ही रख दिया था – मैं और मेरा चाँद! 

कितना मुश्किल था न अपने घर में अपनी भावनाओं की रक्षा करना। पता नहीं कब, कौन किस कोने से आता और मेरी निजी सोच, दुख दर्द और भावनाओं का मज़ाक बना कर रख देता। पर मैं तब भी बेशर्म थी और आज भी हूँ।

मैने तब भी लिखना नहीं छोड़ा था और आज भी मेरी कलम चलती है, हमेशा चलेगी। 

रहा विवाह तो जब अपना ही परिवार मुझे समझ नहीं पाता, मेरी पसंद नापसंद से इतना अंजान है तो बाहर का कोई भी इंसान क्या ही समझेगा..... फिर शायद बचपन की तरह एक बार फिर diary के पन्ने आँगन में ज़ोर ज़ोर से पढे जाएंगे और इस बार सिर्फ मज़ाक नहीं बनेगा... तमाशा भी बना दिया जाएगा,

नहीं! मैं एकाकी ही ठीक हूँ।

 

 

 

किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...