Thursday 16 December 2021

दोराहा

 

“जीवन में कभी भी तुम्हें लगे कि कोई और मुझसे बेहतर है तो चली जाना तुम, मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा।“ यही कहा है न तुमने? अपनी मजबूरियों का हवाला देते हो, परिवार का वास्ता भी? गज़ब के अदाकार हो तुम भी! क्यूँ तुम्हें ये मजबूरी याद नहीं थी जब तुमने इस रिश्ते की ओर पहला कदम बढ़ाया था? पूछा था न मैंने तुमसे, तब तो समय था। मेरी कमियाँ गिनवा सकते थे, मुझे छोड़ कर अलग रास्ते पर जा सकते थे। क्यूँ नहीं गए? अब क्या करूँ तुम्हारी माफी का, क्या करूँ तुम्हारी मजबूरियों का और क्या करूँ तुम्हारा? बोलो!!!

 कोई और.... इस शब्द ने मेरे जीवन में इतना जहर घोला है कि आज तक खून थूक रही हूँ मैं। भूली नहीं हूँ मैं कुछ भी, बस तुम्हारे जहर ने असर करना बंद कर दिया है। मुझे याद है जब तुम्हारी बातों से परेशान होकर अपनी रातों की नींद गंवा देती थी मैं। एक बार भी ब्लॉक कर दो तो रात रात भर भगवान से मिन्नतें करती थी। कितनी अजीब थी मैं? मेरी गलती न होते हुए भी अपने को बेहिसाब सज़ा दी है मैंने। आज सोचती हूँ तो उस बेबस लड़की पर बहुत गुस्सा आता है मुझे। प्यार करती है वो ठीक था पर प्यार में अपने आप को भूल गई, क्यूँ?

 पर अब लगता है मेरी सज़ा की मियाद खत्म हो गई है। अब समझ चुकी हूँ मैं कि मैं गलत नहीं हूँ। हर बार तुम्हारे व्यवहार से आहत होने वाला मन अब शांत है। मुझे वो लोग मिले जिन्होने मुझे मुझसे ही मिलवा दिया। मुझे याद है इनके लिए तुमने क्या कहा था! छोड़ दो ये सब तुम इतनी सक्षम नहीं हो कि इस तरह इतने बड़े ग्रुप को संभाल सको। तुम्हारी बात पर गुस्सा तो इतना आया उस वक़्त... अपने स्वार्थ के लिए कोई किसी को इतना भी तोड़ सकता है क्या? मेरे अंदर हर तरह की क्षमता पहले भी थी आज भी है। बस मैं खुद से जादे तुम पर भरोसा करने लगी थी।

 आज वो भरोसा टूटा सा लग रहा है। तुम्हारी बात मान कर मैं सब कुछ छोड़ कर घर पर बैठ गई थी। पर उन कुछ महीनों मे मुझे ये समझ आ गया कि जिन लोगों पर खुद की ज़िम्मेदारी होती है वो इस तरह की ऐश करने का अधिकार नहीं रखते। मुझे भी इस सब की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पर मैंने उस दौरान सब सीख लिया – दुनियादारी भी। आज भले ही तुम मुझसे बेहिसाब नफरत करो पर मैं अपने आप को बेहिसाब प्यार करती हूँ। वो प्यार जो मेरा हक़ है और फर्ज़ भी।

 और हाँ, मुझे आधा अधूरा कुछ नहीं चाहिए। अगर मेरे साथ हो तुम तो पूरे मेरे रहो जैसे मैं तुम्हारी हूँ। वरना न सही! तुम्हारी मजबूरियाँ और जिम्मेदारियाँ तुम्हें मुबारक और मुझे मेरा आत्म सम्मान।

Monday 13 December 2021

मेरी प्यारी बहनिया....

बेटी की विदा शब्द को सुनने और पढ़ने वाले इस स्थिति की गंभीरता की कल्पना भी नहीं कर सकते। नाज़ों से पाली हुई अपनी नाज़ुक सी बेटी एक नए परिवेश और लोगों को सौंपने के लिए पत्थर का कलेजा चाहिए जो शायद मेरे पास नहीं है। अब आप सोचेंगे ये छड़ी अकेली लड़की, किसको विदा दे कर आई है। है मेरे ग्रुप की मिनी mom मेरी छोटी सी गुड़िया – Shammy बिन्नू। संजोग है कि मेरे bday का दिन उसकी शादी का दिन भी बन गया। मेरी प्यारी लाड़ली को इंस्पेक्टर साहब के घर की शोभा बना दिया। सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि सोचने को समय ही नहीं मिला मुझे। 

याद है एक दिन माँ से कुछ बहस हुई थी मेरी और मैंने गुस्से में कहा था, मेरी बेटी के बारे में कुछ मत कहना! कितने हक़ से लड़ गई थी उसके लिए... बेटियों से वैसे भी मेरा आँगन तो गुलजार रहता ही है। कुहु और नूशी के बाद अब ये मेरे क्रेकीज़... लेकिन ऐसे पल जब भी आएंगे मेरी नींद हफ्तों उड़ी ही रहेगी। अभी तो शेफाली के लिए भी मन पक्का करना है। उसके वाले तो व्यापारी हैं बिन्न्स करते हैं। 

एक हम हैं जिसकी रातों की नींद उड़ गई सोच सोच कर कि उसका घर ससुराल कैसा है और एक वो माँ बाप होते हैं जो कन्यादान के साथ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। फिर उस बेटी के साथ चाहे जो कुछ हो वो बस आँखें मूँदे शुतुरमुर्ग की तरह रेत में पड़े रहते हैं। कैसा पत्थर का कलेजा होता है न उनका? घड़ियाली लगते हैं मुझे वो आँसू जो ऐसे परिवार बेटी के लिए बहाते हैं। मैं इतना जानती हूँ भगवान यथाशक्ति मैं अपनी बच्चियों को अकेला नहीं छोडूंगी कभी। 

आगे की लाइंस बस तुम लोगों के लिए। तुममें से कुछ हैं जो बेहद छोटे हैं और अभी उस उम्र तक आने में समय है। उस समय दुबारा पढ़ लेना फील के साथ और क्या! 

Shammy और शैफू 

नया घर और नए रिश्ते बहुत समय और श्रम मांगते हैं, धैर्य भी। ऐसे में कभी कभी होगा कि तुम्हें लगेगा तुम सब कुछ नहीं संभाल पा रही, समझ नहीं आ रहा। एक वक़्त पर सिर्फ एक चीज़ समझने की कोशिश करना – अब से तुम्हारे दो घर हैं। उस घर में जितने भी बड़े हैं उनसे प्रेम, आदर और सम्मान से बात करना। उनको समय देने और उनके तौर तरीके समझने की कोशिश करना। सास जी को अपना बेस्ट फ्रेंड समझना और सबसे बेहतर गाइड भी।

जो छोटे हैं उनसे मस्ती मज़ाक करना। पता है क्रेकीज़ लेवेल तक पहुंचना उनके बस का नहीं, पर जोक वोक तो आते होंगे उनको भी, अड्जुस्टिया लेना! 

और हाँ, गलत बात बर्दाश्त मत करना लेकिन कुछ भी कहने से पहले दो बार सोचना। कभी कभी एक मीठी मुस्कान दो लफ्जों से अधिक कारगर होती है। तो अपने होठों पर हमेशा वो स्माइल रखना और खुश रहना। खुले मन से जाओ अपने नए घर में। पुराने रिश्तों और घर की फिक्र करना लेकिन कुछ दिन के लिए उस नए वाले पर फोकस करो। 

बीच में हम क्रेकीज़ क्या करेंगे? रसगुल्ले खाएँगे और पानीपूरी!! अरे, इंतज़ार करेंगे कि सब सेटल हो और तुम फुल फॉर्म में हम सब से कनैक्ट कर पाओ। We बैंगनी यू रे!! All the Best”

Friday 26 November 2021

ये है क्रेकहेड्स परिवार

 

पहले मैंने सोचा था अंग्रेज़ी वाले ब्लॉग में चिपकाएँगे। वहाँ चिपका दिए अब इधर भी बतियाएंगे...

 

कुछ साल पहले की बात है, मैंने प्रतिलिपि नामक app download किया और कुछ कहानियों से मेरी पहचान हुई। उनमें से एक थी हैलो, आई एम यश... यशस्विनी लड़की क्या पूरा बवाल है! उसकी कहानी पढ़ कर मुझे और पढ़ने का दिल हुआ और इसकी लेखिका अंकु ठाकुर जोकि मेरे सौभाग्य से आज मेरी बेहद अच्छी दोस्त हैं, उनसे पहचान हुई। कमाल तिकड़ी है – अंकु, गरिमा aka गम्मू और वर्षा mam जिन्हें हम सब प्यारी वर्षु और मेरा स्पेशल rain dance mam…. (साइड नोट नाम रखुआ विभाग हमारी गुलबिया का है. अतरंगी नामों के लिए संपर्क करें टिंग टोंग) और तब से अंकु, गरिमा और वर्षा mam मेरी जिंदगी के अटूट हिस्से बन गए।

 

इनकी कहानियों ने कभी मुझे डराया (वर्षा mam का हॉरर), कभी प्यार और दोस्ती का मतलब सिखाया (गरिमा की खासियत) और अंकु रचित सस्पेन्स के सागर में डूब डूब कर हम एक्शन के island के किनारे उतर गए। मैं बेहद  खुशकिस्मत हूँ कि इनकी कहानियों के माध्यम से मैंने अपने आप को जाना, खुद की शक्ति को पहचाना और आज मैं जो कुछ भी हूँ इसमें इन तीनों का हाथ, क्या पैर क्या पूरे के पूरे ये सशरीर हैं। मुझे पता भी नहीं था कि एक दिन इनकी कहानियों के माध्यम से मुझे कुछ ऐसे अटूट रिश्ते मिलेंगे जिन्हें आज हम क्रेकहेड्स के नाम से जानते हैं।

 

हम लोगों को अंकु और गरिमा के स्टेटस पोस्ट्स पर एक दूसरे के कमेंट्स में घुस घुस कर टिप्पणी करने का चस्का ऐसा लगा कि किसी किसी कमेन्ट स्ट्रिंग में 300 -400 कमेन्ट दिखने लगे। इस तरह हम सब का नाम पड़ा क्रेकहेड्स। जब ये ग्रुप बना था तो सोचा भी नहीं था कि जिनके वजह से ये ग्रुप है वो भी एक दिन इसका हिस्सा हो जाएंगे। हम सब शायद वो दिन कभी नहीं भूलेंगे जब अंकु और गरिमा भी ग्रुप का हिस्सा बन गए थे।

 

हाँ तो टूटेसिरों के बारे में क्या ही कहूँ ये लोग बड़े प्यारे हैं और सीधे तो इतने हैं जैसे जलेबी!! एक दिन था कि लिपि पर हम सब अलग अलग भटकते थे और एक दूसरे को कम जानते थे। बस एक चीज़ थी कॉमन हमारे बीच – अंकु और गरिमा #अनिमाज़ (हमारा fanmily नाम है)। अब प्रतिलिपि पर हमारी खुद की एक पहचान है और हम सब एक परिवार हैं प्यारा सा। ईश्वर से यही चाहती हूँ कि मेरे क्रेकीज़ हमेशा खुश रहें और इनकी हर इच्छा पूरी हो। और मुसीबत अगर आए तो हमारी इस वानर सेना के सामने आँख मिलाने की भी हिम्मत न करे।

 

किसी दिन विस्तार से बताऊँगी इनके बारे में

बड़े प्यारे फूल सजाए ईश्वर ने हमारे फुलवारी में

Tuesday 5 October 2021

शुभ (!) विवाह

हे ईश्वर 

मेरे कारण मेरे परिवार को वैसे भी बहुत से कष्ट होते हैं अब उनको और मत सताओ न। कुछ दिन से मन अजीब सा बेचैन है। कितनी रातें बस जाग जाग कर बीत गई हैं। माँ से लड़ाइयाँ भी हो गई जोकि मैं कभी नहीं करना चाहती। सब कहते हैं अपना कहने को तुम्हारा एक परिवार होना चाहिए पर अपने आसपास इन तथाकथित अपने परिवारों को देख कर अब मेरा दिल नहीं करता ऐसा हो। कितना कष्ट होता है न जब अपना ही परिवार आपको समझ नहीं पाता। क्यूँ भगवान? क्या मैं इतनी जटिल हूँ? 

कितनी मासूम सी तो ख्वाहिशें हैं मेरी और सादी पसंद नापसंद... फिर लोग ऐसा क्यूँ सोचते हैं मेरे बारे में? शायद समाज को आदत नहीं है अभी भी कामकाजी लड़कियों की!! बस हर वक़्त हमारे कपड़े, जूतों और जेवरों पर नज़र  डालने से फुरसत नहीं न! क्या यही सब होता है हमारे जीवन में? क्यूँ चाहते हैं सब कि केवल जिम्मेदारी और मजबूरी में ही हम आत्मनिर्भर बनें॥ क्या अपनी खुशी से नहीं बन सकते? आजकल मेरे परिवार वाले कहते हैं मैं उनसे बहुत दूर हो चुकी हूँ। सच है कि मैं अपनी ही दुनिया में गुम हूँ, पर मेरी और उनकी दुनिया अलग कब और कैसे हुई इस पर शायद किसी ने नहीं सोचा होगा। 

कहूँगी तो सबको लगेगा मैं उनको दोष दे रही पर मैं अपने घर में भी उसी तरह अकेली थी जितनी आज हूँ। बस फर्क इतना है कि अब मुझे समान विचारों वाले कुछ लोग मिल चुके हैं अपना सुख दुख बांटने के लिए। क्या मेरी चाहतें इतनी अधिक थीं कि कोई उन पर पूरा नहीं उतरा? ऐसा कौन सा आसमान का चाँद चाहती थी मैं।

वैसे चाँद जी – अरे वो चन्दा मामा आसमान वाले!! 

आपने मेरी जिंदगी में कम आतंक नहीं मचाया – एक बार मेरी diary पढ़ कर मेरे भाई ने मेरा नाम ही रख दिया था – मैं और मेरा चाँद! 

कितना मुश्किल था न अपने घर में अपनी भावनाओं की रक्षा करना। पता नहीं कब, कौन किस कोने से आता और मेरी निजी सोच, दुख दर्द और भावनाओं का मज़ाक बना कर रख देता। पर मैं तब भी बेशर्म थी और आज भी हूँ।

मैने तब भी लिखना नहीं छोड़ा था और आज भी मेरी कलम चलती है, हमेशा चलेगी। 

रहा विवाह तो जब अपना ही परिवार मुझे समझ नहीं पाता, मेरी पसंद नापसंद से इतना अंजान है तो बाहर का कोई भी इंसान क्या ही समझेगा..... फिर शायद बचपन की तरह एक बार फिर diary के पन्ने आँगन में ज़ोर ज़ोर से पढे जाएंगे और इस बार सिर्फ मज़ाक नहीं बनेगा... तमाशा भी बना दिया जाएगा,

नहीं! मैं एकाकी ही ठीक हूँ।

 

 

 

Thursday 9 September 2021

बहुत बदल गई हो......... और तुम????

  हे ईश्वर

ये देखिये:

मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया?

कोई मिलने आया है क्या?

हाँ, हाँ वहाँ तो बहुत से होंगे न!!

आज से तुम अपने रास्ते और मैं अपने.....

मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें जीवनसाथी मिले......

और मास्टर स्ट्रोक :

कोई मिल गया हो और तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो बता देना मुझे.... मैं फिर कभी बताऊंगा तुम्हें कि जो मैंने कहा वो क्यूँ कहा!!

अच्छा! तो नए परिवेश के साथ मुझ पर बदलता मौसम होने का इल्ज़ाम बड़ी जल्दी लगा दिया तुमने. हाँ! मैंने तो सोचा था कि तुम सब खत्म करना चाहते हो, मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो, मुझसे दूर जाना चाहते हो! फिर भी मैं बस खामोश रहती थी। अगर बात होती थी तो कर लेती थी और नहीं तो न सही! सबका एक ही सवाल है मुझसे मैं खामोश क्यूँ रहती हूँ? कभी कुछ कहती क्यूँ नहीं? तुम्हें छोड़ क्यूँ नहीं देती? तुमसे दूर क्यूँ नहीं चली जाती? न जाने कितने सवाल और जवाब सिर्फ एक है....मेरी खामोशी!

...... क्यूंकि अब मेरे पास तुमसे कहने के लिए अलफाज़ नहीं है। याद है जब आँसू आ जाते थे मेरी आँखों में तुमसे दूर होने के ख्याल से ही। आँसू आज भी आते हैं पर तुम्हारे आगे इनको बहा कर अपनी भावनाओं का अपमान अब और नहीं करवाना चाहती। इसलिए मैंने वो सब अपने मन की गहराइयों मे ही कहीं दफ्न करके छोड़ दिया। अब तुम्हारे हिस्से में बस मेरी ये खामोशी ही आएगी।

रहा सवाल इस बदलाव का! जब कोई नए परिवेश में जाता है न तो उसे थोड़ा समय चाहिए होता है अपने क्लांत मन और शरीर को विश्राम देने के लिए। कितना कुछ तो पीछे छोड़ कर आई हूँ मैं। भरा पूरा सा एक घर, मेरे दोनों श्वान!! हाँ पता है तुमको तो वो कुत्ते ही लगते हैं पर मेरा वो परिवार हैं। मेरे बिना न जाने कैसे खाते पीते होंगे? क्या करते होंगे वो!! यहाँ कौन सा फूलों की सेज पर रहती हूँ मैं? मेरा घर, मेरी हर सुख सुविधा और मेरा परिवार सब तो वहीं छूट गया। फिर भी तुम्हारे दिमाग में न जाने कैसी छवि है मेरी.... कि ये सब कहने से चूकते नहीं।

मैं बहुत बुरी हूँ न। फिर भी तुमने इस बुरी लड़की से बातें कीं, उससे आज भी जुड़े हुए हो। कहूँगी तो यही कहोगे मैं किसी के साथ नहीं जुड़ा। लेकिन जिस इंसान को तुम कहते हो मैं तुम्हारी लाइफ मे कोई रुचि नहीं लेता, उसी से जब उसका हाल पूछते हो हर वक़्त, इसे जुड़ना नहीं तो और क्या कहते हैं? जब उन छोटी छोटी बातों के लिए जिनको तुम आसानी से करवा सकते हो कहीं से भी मुझे करने कहते हो तब बहाने सा लगता है। या तो तुम सच में उतने ही मुसीबत में हो जितना तुम कहते हो या फिर तुम झूठ बोलते हो और मेरे पल पल की खबर रखने का बहाना चाहते हो। 

तुम्हारे मन में भरे हुए शक को मैं नहीं मिटा सकती और न ही तुम्हारे बारे में सच जान सकती हूँ। इसलिए

मान लूँगी कि तुम्हारे विवाह की बात सच है और वही करूंगी जो तब करने वाली थी। स्वतंत्र हूँ मैं, उच्छृंखल नहीं। हाँ, हैं मेरे अपने उसूल जो मुझे किसी शादीशुदा से जुडने की इजाज़त नहीं देते। आईन्दा तुम भी मेरा वही रूप देखोगे जो दुनिया को दिखाया है मैंने। इसके लिए अगर तुम कहो कि:

मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया – क्यूंकि एक नई जगह, नए परिवेश में अपना सब कुछ दुबारा बसाने में व्यस्त रही होंगी। हाँ निकलना पड़ता है कभी कभी बिना प्लान के बाहर। मेरे भी दोस्त हैं कुछ नये बने हुए, तो?

कोई मिलने आया है क्या? – नहीं क्यूंकि यहाँ मुझे कोई जानता ही नहीं, जानेगा भी तो क्यूँ मिलने की ज़िद करेगा

हाँ, हाँ वहाँ तो बहुत से होंगे न!! – नहीं कितने भी लोग हों मैं अपने किताबों और घर में एकांत में सुकून से रहती हूँ। मुझे कोई सरोकार नहीं है किसी से भी।

आज से तुम अपने रास्ते और मैं अपने..... – कितनी बार कहोगे? कर के दिखाओ न बिना किसी द्वेष और कटाक्ष के मुझसे मर्यादित दूरी बनाकर

मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें जीवनसाथी मिले...... झूठ तुम चाहते हो मैं हमेशा तुम्हें अपने जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानूँ

और मास्टर स्ट्रोक :

कोई मिल गया हो और तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो बता देना मुझे.... मैं फिर कभी बताऊंगा तुम्हें कि जो मैंने कहा वो क्यूँ कहा!! – तुम अपने मन के पूर्वाग्रह दुराग्रह मुझ पर केवल आरोपित कर सकते हो साबित नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारे प्रति वफादार और एकनिष्ठ भी। हाँ अगर तुम मुझे बीच रास्ते छोड़ कर किसी और को अपना लो तो... बिना किसी सवाल जवाब के मैं अपना रास्ता बदल लूँगी और तुमसे भी यही उम्मीद करूंगी। हाँ ये अलग बात है कि उसके बाद मैं क्या करती हूँ क्या नहीं ये जानने का हक़ तुम्हारा नहीं रहेगा। इतना तो न्याय होना ही चाहिए न?  

 अब मेरी बात –

कल को तुमको शादी करनी है न तो यही मान लो कि हो गई है तुम्हारी शादी और मुझे छोड़ कर आगे बढ़ो। आगे तुमको ये करना ही है तो मान क्यूं न लेते हो? क्यूँ शादी हो गई फिर भी मुझसे जुड़ना चाहोगे? मेरे अपने संस्कार, उसूल, आदर्श और मेरा ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं देता मुझे।

 इसलिए इन सब बातों के लिए अगर तुम कहो कि मैं बदल गई हूँ, तो हाँ मैं सचमुच बदल गई हूँ।

Friday 14 May 2021

एकांत V/S अकेलापन

 हे ईश्वर 

कोरोना एक बार फिर पूरे देश में पाँव पसार चुका है और इस बार पहले से भी खतरनाक रूप लेकर। इस बार तो किसी को भी नहीं बख्श रहा है। क्या बूढ़े क्या जवान सब इसके चपेट में आते जा रहे हैं। पूरे देश में डर और संशय का माहौल है और मैं यहाँ... अपने घर से इतनी दूर! मैं अपने घर से दूर क्यूँ हूँ? इसका क्या जवाब दूँ? घर पर सब एक साथ हैं और मैं यहाँ हूँ। मेरा भी मन कर रहा है वहाँ होने का... पर हर इच्छा पूरी होने के लिए नहीं बनी होती। मुझे भी घर जाने को ज़रूर मिलेगा पर ऐसे सर झुका कर हार कर मैं नहीं जाऊँगी। बिलकुल भी नहीं... जब तक मेरी स्थिति परिस्थिति सब ठीक नहीं हो जाती तब तक इस तरह एकाकी रहना ही मेरे लिए सही है और श्रेयस्कर भी। 

कभी कभी सोचती हूँ सब कुछ इतना कैसे बिगड़ गया? हालात इतने कैसे खराब हो गए? मैं ऐसे कैसे इतने महीनों से इस स्थिति में ऐसी फंसी कि आज तक इस दलदल से निकल नहीं पा रही हूँ। क्या मैं सच में गलत हूँ? क्या मैं सच में ढीठ हूँ? क्या मैंने सच में एक बेज़ा ज़िद पकड़ रखी है? क्या मैंने सच में कुछ गलत किया था? क्या सचमुच मेरे इरादों में कोई खोट था? 

एक बार को मन होता है सर झुका कर मान लूँ इन प्रभावशाली लोगों का आदेश। लेकिन फिर अपनी सुरक्षा और आत्म सम्मान की कीमत पर कोई समझौता करने को मन नहीं मानता। मैं कितना डर गई हूँ भगवान। भविष्य को लेकर कितनी सशंकित होती जा रही हूँ। वो भविष्य जो कभी पानी की तरह साफ हुआ करता था। आज ऐसा गंदला पानी हो चुका है कि कुछ नज़र ही नहीं आ रहा। एक बात बताइये न आप? अगर किसी के पास प्रभाव है तो क्या ये ज़रूरी है कि अपने पद और प्रभाव को वो लोगों को नीचा दिखाने के लिए इस्तेमाल करे? कोई भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यूँ हमेशा बस शासन करना चाहता है, संरक्षण नहीं? कब ऐसा होगा कि कोई अपने घमंड और दुराग्रह को किनारे कर के अपने फैसले लेगा? कब ऐसा होगा कि एक आत्मनिर्भर, सशक्त स्त्री को नीचा दिखाने के बजाय कोई उसे सराहेगा? 

भगवान  मुझे एक सही राह दिखा दो न, मुझे अब कुछ समझ नहीं आ रहा! 




Monday 8 March 2021

महिला दिवस (!)

 

हे ईश्वर

आज फिर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और शुभकामनाएँ हवा में ऐसे तैर रही हैं जैसे नया साल या दिवाली हो। पता नहीं मेरे ही कान खराब हैं कि मुझे महिला दिवस की शुभकामना save the tiger या save water जैसी सुनाई देती है। ऐसा लगता है जैसे हम सब महिलाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं और इसलिए हमें बचाने के सौ सौ जतन किए जा रही है दुनिया।

महिला दिवस है तो पर अपनी एसी गाड़ी में बैठी उस समाज सेविका के लिए जिसे न जाने कितने व्याख्यान आज देने हैं। है महिला दिवस पर उस स्त्री के लिए जो आज के दिन कहीं घूमने निकल जाएगी और आड़ी टेढ़ी शक्लें बना कर तस्वीरें खिंचवाएगी। महिला दिवस है उस स्त्री के लिए जो बाहर से खाना मंगवाएगी या फिर रोज़ जैसे बाहर खाने निकल जाएगी। या फिर उस स्त्री के लिए जो अपनी महंगी कार में डिज़ाइनर कपड़े पहने कॉलेज जाएगी। महिला दिवस है उस स्त्री के लिए जिसके घरवाले उसके सौ सौ नखरे उठाते नहीं थकते।  

ये महिला दिवस न बड़े लोगों के चोंचले हैं सारे!! उस स्त्री का क्या जिसे अभी चूल्हे के सामने खाना बनाना होगा और सबको गरम रोटी परोस कर खुद बचा खुचा खाना होगा। उस स्त्री के लिए कोई महिला दिवस नहीं जो आज भी नशेड़ी पति की मार खाएगी। महिला दिवस तो उस स्त्री का भी नहीं जिसकी प्रतिकृति उसके कोख से बार बार मिटाई जाती है। उस बच्ची के लिए भी नहीं जिसे रोज़ कि तरह कोई अनचाहा स्पर्श झेलना होगा। उस स्त्री के लिए भी नहीं जो अपने सपने मार कर डोली में चुपचाप बैठ जाएगी। उस स्त्री का भी नहीं जो पढ़ाई छोड़ कर घर के काम काज में बसी रहती है।

उस स्त्री के लिए भी कभी कोई महिला दिवस होगा क्या जो दहेज का पलड़ा हल्का होने पर विवाह वेदी तक नहीं पहुँच पातीं? या वो जिसकी साहस और क्षमता तो आसमान छूने की है पर उसे उसके सपनों को बस इसलिए भूलना पड़ता है क्यूंकि वो एक लड़की है!

अभी तक तो हम उन ज़ख़्मों को भी नहीं सहेज पा रहे जो स्त्री शरीर पर लगते हैं। उन ज़ख़्मों की तो अभी बात भी नहीं हो रही जो मन छलनी करते हैं और आत्मा कलुषित करते हैं। जब तक ये सारे ज़ख्म मिट नहीं जाते तब तक महिला दिवस आप बोलते रहिए मैं तो save the tiger ही सुनुंगी!!

Wednesday 3 March 2021

टुकड़े टुकड़े ज़िंदगी

 

हे भगवान

आपको इतनी बार बुलाया है पर मेरी आवाज़ जैसे आपको सुनाई ही नहीं देती। याद है एक बार मैंने कहा था आपको हर किसी की के लिए कोई न कोई तो होता ही है। रास्ता दिखाने के लिए। साथ चलने के लिए, साथ देने के लिए। मैं क्यूँ अकेली हूँ फिर? आपने किसे बनाया है मेरे लिए? कौन है जो हमेशा मेरा साथ देगा? हाथ पकड़ कर रखेगा मेरा सारी ज़िंदगी?’ बहुत बार आपको बुलाने के बाद एक दिन आप सपने में आयीं थीं मेरे। घर था, दोस्त थे सब लोग थे... सबसे छुड़ा कर आप लेकर गईं थीं न अपने साथ। मैंने आपसे फिर से पूछा, बार बार पूछा फिर भी मुझे जवाब नहीं मिला। सारे रास्ते॥ और उस पहाड़ पर आपके घर पर भी.... आप बस बहुत खूबसूरती और खामोशी से मुस्कुराती रहीं, कुछ बोली भीं नहीं और मेरा सपना भी टूट गया। बाद में मुझे समझ आया, सारे रास्ते आप ही साथ थीं, आपने ही तो पकड़ा था मेरा हाथ। फिर और मुझे क्या चाहिए था?

उसके मैंने ज़िंदगी में कभी भी ये सवाल आपसे कभी नहीं पूछा।  कभी भी नहीं। लोग आते थे, जाते थे। रास्ते में कुछ दूर साथ चलते थे और फिर चले जाते थे। मैंने फिर कभी नहीं पूछा कोई आया तो क्यूँ? गया तो क्यूँ? और कब तक रहेगा। जब भी फिर कभी ये सवाल मुझे परेशान करता है बस वो सपना याद कर लेती हूँ। समझ जाती हूँ कि कोई रहे या न रहे आप हमेशा रहेंगी मेरे साथ।

फिर भी लोग समझते नहीं हैं। न मुझे किसी के आने की उम्मीद है न वापस जाने का दुख। मेरी जिंदगी खुद एक सफर है। पता नहीं कब इस दर से भी भटकना पड़े सब कुछ समेट कर। ठहरना तो जैसे मेरा नसीब ही नहीं। जिसने खुद मेरे साथ चलने से इंकार कर दिया वो खुद किस मुंह से मेरा रास्ता रोकता है, बताओ न?

लेकिन माँ कल जो हुआ मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। जिसे नहीं रहना वो न रहे। पर कम से कम मुझे अपनी ज़िंदगी जीने दे, अपने फैसले खुद लेने दे। मैं आपके अलावा किसी की भी ज़िम्मेदारी नहीं हूँ माँ!

Monday 22 February 2021

काली तुलसी का घर

 

हे ईश्वर

रिश्ता आया है!’ इतने बरसों बाद किसी ने मुझ तक पहुँचने की हिम्मत की है। मेरा हाथ मांगा है, मुझसे मेरी मर्ज़ी पूछी है। कैसे कहूँ कैसा लग रहा है। उनको बताया तो उन्होंने सीधा कह दिया जो मर्ज़ी करो! कर लो न शादी! फिर नाराज़ भी हो गए, बुराइयाँ भी गिनवा दीं मेरी सारी की सारी और धोखेबाज़ी का इल्ज़ाम भी लगा ही दिया। पर सारी की सारी गलती क्या मेरी है भगवान? बोलो? मुझे क्या पता था जिन लोगों की तरफ मैंने दोस्ती का हाथ बढ़ाया वो मुझमें कुछ और ही खोज रहे थे।

मैं क्या करूँ? याद है एक बार घर में काली तुलसी का पेड़ उग आया था और माँ ने कहा था काली तुलसी को घर में नहीं लगाते। वो तो खुद से उगती है लेकिन घर की दहलीज़ के बाहर। उसके लिए कोई शालिग्राम नहीं, उसका कोई घर नहीं। वो तो जहां जड़ें जमाती है वही उसका घर हो जाता है। जहां उग आती है खुद ब खुद। घर में कभी उग भी जाए तो लोग उसे उखाड़ के बाहर कर देते हैं। मैं भी तो वही हूँ। काली तुलसी...

घर के बाहर, दहलीज़ से दूर। खुद से खुद की जड़ें जमाए हुए। वो अलग बात है कि आजकल हमारी जड़ों में मट्ठा कुछ जादे पड़ गया है। मुर्झाऊंगी या झेल जाऊँगी ये तो बस आपको पता है न भगवान। उस सब के बीच में ये एक घर, जो मुझे बुला रहा है अपनाने के लिए।

जिसे मैंने पूरे मन से अपना घर माना उसके दरवाजे तो मेरे लिए कभी न खुलेंगे। वो खुद कहते हैं मेरे घर के लिए तुम सही नहीं हो। मेरे क्या किसी भी घर के लिए तुम सही नहीं हो। जो कुछ भी पिछले कुछ महीनों में हुआ उसके लिए भी मेरे कर्मों को दोष देते हैं वो। पता नहीं भगवान मैंने सच में कोई ऐसा करम किया भी था या बस मेरा बुरा वक़्त किसी को बोलने का मौका दे रहा है।

ईश्वर, बुरा वक़्त सब का आता है जैसे मेरा आया है। गुज़र तो जाएगा और सब शायद कल ठीक भी हो जाए। इसी बीच जितने भी दिन थे, कितने प्यार से बिताए उन्होंने। जैसे दिया बुझने के ठीक पहले लौ अपने पूरे ज़ोर पर होती है। क्या सच में ये दिया बुझने वाला है ईश्वर? क्या सच में जाना है मुझको ये सब छोड़ कर ऐसे ही?

काश कि किसी ने ऐसा सोचा ही नहीं होता, न चाहा होता। काश कि मेरी तरफ कदम बढ़ाने से पहले मिल जाए उसे कोई और मुझसे बेहतर। मेरी हर इच्छा जब मर चुकी थी जब मैंने सोच ही लिया था पक्के मन से अकेले ही काट देनी है अपनी जिंदगी मैंने... तब आकर कोई कहता है आओ मेरे साथ चलो। क्या इतना आसान है ये करना, भगवान? बताइये?

आजकल कहते हैं वो चली जाओ। क्या सच में चली जाऊँ? बताइये मुझे! काश कि सब मुझे छोड़ कर आगे बढ़ जाएँ और मैं बस यूं ही रह जाऊँ। जिसने भी मुझसे उम्मीद लगा रखी है मुझे उसकी उम्मीद से डर लगता है। अतीत कभी भी वर्तमान के सामने आकर खड़ा हो गया तो जवाब देना मुश्किल हो जाएगा ईश्वर। काश जो बीत गया वो पूरी तरह बीत जाता। फिर शायद मैं भी आगे बढ़ सकती। पर मैं हमेशा से वहीं खड़ी हूँ और ताजिंदगी शायद यहीं रहूँगी। मेरा मन अभी भी नहीं मानता है। बरसों से तो ज़िद ठाने बैठा है, इतनी जल्दी क्या मानेगा? जो भी कल हो नहीं पता मगर अपनी उलझनों के चलते किसी और को नहीं उलझा सकते हम। ये सब उलझनें और दुश्वारियां हमारी अपनी हैं, किसी से नहीं बाँट सकते। अपनी उलझन में किसी और की सीधी सादी ज़िंदगी भी उलझा ली तो कभी माफ नहीं कर पाएंगे खुद को। हमसे ऐसा पाप मत करवाइए ईश्वर। मोड़ दीजिए हर उस कदम को जो मेरी तरफ बढ़ते देखा है आपने। हम शायद सच में ऐसे किसी घर के लायक नहीं हैं जो हमने खुद न बनाया हो।

Thursday 28 January 2021

टूटी हुई चूड़ियाँ

 

हे ईश्वर

आज से पहले कभी इतना दुस्साहस शायद मेरा न हुआ होगा। जिनके बारे में आपसे हाथ जोड़ते, दुआएं मांगते नहीं थकती थी मैं उनसे आज मैंने इतना अपमानजनक व्यवहार क्यूँ किया? वो कौन सी ज़ुबान थी जिससे मैं उनसे प्यार से बात किया करती थी और कौन सी है ये जिसने उनको अपशब्द ही अपशब्द बोल डाले। फिर भी भगवान कुछ बचा था जो शायद तब टूट गया जब मेरे झटके हुए हाथ के साथ मेरी चूड़ियों के टुकड़े पूरे कमरे में बिखर गए।

क्यूँ भगवान? जिसे मैंने साफ कहा था जाओ अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं वो किस अधिकार से मेरे घर में घुसे चले आए? बिना पूछे, बिना बताए? क्या देखने आए थे वो? क्या ये कि उनकी जगह कौन ले रहा है मेरी ज़िंदगी में? मेरी ज़िंदगी है भगवान, बस की सीट तो नहीं जो एक गया तो दूसरा कोई बैठ जाएगा। वैसे भी यही तो चाहते थे न वो? जिस इंसान ने मेरे भविष्य की ख़ातिर एक दिन का भी समय नहीं निकाला वो किसी एक ही बार कहने पर इतनी दूर चला गया वो भी सब काम छोड़छाड़ कर। उनके गए हुए पैसे तो शायद वापस आ भी जाएँ मेरे भविष्य पर तो अभी भी तलवार लटकी है न।

सब कहते हैं जो भी हुआ उनके कारण ही हुआ पर मैं नहीं मानती। जो हुआ सब मेरे कारण। मेरी सच्चाई, मेरी ईमानदारी, मेरे उसूल और समझौता न करने की आदत। लेकिन फिर भी! जिसने हर कदम मेरा साथ देने का वादा किया था वो क्यूँ इस तरह मुझसे बेपरवाह हो गया? उसे तो जैसे गुजरते हुए महीनों से फ़र्क ही नहीं पड़ता! पर हर एक बीतता हुआ पल मुझ पर भारी पड़ रहा है।

कैसे कहूँ और किसको कहूँ? जब उन्होंने बताया था घरवाले नहीं मानेंगे कभी। तब से पता था कभी न कभी हमें अलग होना ही है। वो क्या सोचते हैं कि मेरी जैसी स्वाभिमानी लड़की कभी अपने सम्मान पर आंच आने देगी? क्यूँ मैं अपने मान सम्मान को दांव पर लगा दूँ? वो भी उसके लिए जो कभी समाज के सामने ये तक नहीं मान सकता कि वो मुझसे वाकिफ़ है। जिसने मेरी कोई उम्मीद कभी पूरी नहीं कि उसे मुझ पर भी कोई अधिकार नहीं। मैं आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगी। उन टूटी हुई चूड़ियों के साथ मेरा रिश्ता भी टूट गया है शायद।

Sunday 24 January 2021

अब बस!!

हे भगवान

क्या ही करूँ मैं बताओ तो? इतना सब कुछ सुनना सहन करना और चुप रहना... क्या इतना आसान है? होगा शायद भगवान वरना आप मुझसे ऐसे करने को क्यूँ कहते? दुनिया में किसी की भी जिंदगी आसान नहीं होती। सब यही तो कहते हैं कि जैसा मेरे साथ हुआ वैसा किसी के साथ नहीं होता। सबने मुझे धोखा दिया है, सबने मेरा फायदा उठाया, सबने मुझसे केवल अपना मतलब निकाला और मुझे छोड़ दिया! मुझे कोई प्यार नहीं करता। ऐसा क्या नया मैं आपको कहती हूँ? आप बताओ।

मैंने इस साल के शुरू होने पर यही सोचा था कि हर उस रिश्ते को जिसे मेरी कदर और परवाह नहीं मैं भी ठोकर मार दूँगी। कभी नहीं देखूँगी उस इंसान की तरफ जिसे मुझसे प्यार तो है पर उस प्यार के लिए एक पल का भी समय नहीं हैं। कभी कुछ नहीं मांगूँगी दुनिया से, न भगवान से! हाँ तो और क्या! पहले भी कौन सी इल्तजा सुनी आपने मेरी? इसलिए इस जिंदगी और मेरे सारी उपलब्धियों के लिए धन्यवाद देने के अलावा और कोई दुआ भी अब नहीं मांगती हूँ मैं।

लेकिन भगवान ऐसा तय करने के बाद मैंने अपने चारों तरफ देखा तो मैं अकेली ही थी। ऐसा एक भी इंसान मेरे आस पास था ही नहीं जिसे मेरी परवाह या कदर हो! वैसे भी मैं जब अकेली होती हूँ, तब ही सुकून से रहती हूँ। किसी और के ख़्वाब पूरे करने के चक्कर में न जाने कितनी रातें जागते बिताई हैं मैंने। मेरा सुकून तो तभी मिलता है जब मेरी आँखों में कोई ख़्वाब न हो।

रिश्ते आते हैं तो उनके साथ उनके खोने का डर भी साथ आता है। इस खोने के डर ने न जाने क्या क्या करवा लिया। फिर भी कहाँ टीका है मेरा एक भी रिश्ता। तो अगर अकेले ही रह जाना है तो फिर किसलिए खुद को बदलूँ? क्यूँ किसी की परवाह करूँ। आप बताओ?

दोस्त मिले थे कुछ नए पर वो भी न जाने क्यूँ गलतफहमी के शिकार होकर किनारा कर गए। इतना ही जान पाते हैं क्या लोग मुझे? नहीं जानते तो क्यूँ घुस आते हैं ज़िंदगी में मेरी? अब तो ये भी नहीं कहूँगी कि आप बताओ। कहा था न कुछ नहीं मांगूँगी...सफाई भी नहीं।  

Thursday 14 January 2021

तुम्हारी मदद.....करूँ?

 

हे ईश्वर

आज खुश तो बहुत होगे तुम? अमिताभ बच्चन से ये dialogue उधार लेकर पूछती हूँ मैं अपने आपसे। क्या मैं खुश हूँ कि उनके साथ ये सब हुआ? क्या मैं खुश हूँ कि उनके जीवन में ये कठिनाई आई है? क्या मैं खुश हूँ कि उनको वो नहीं मिल पाया अब तक जो वो चाहते हैं? क्या मैं खुश हूँ कि एक अच्छा अवसर उनके हाथ में आते आते रह गया?

खुश हूँ क्या मैं कि उनकी राह में अभी भी कांटे बचे हैं? बताइये न भगवान? नहीं! इन सब सवालों का जवाब है। मैं ज़रा भी खुश नहीं हूँ कि वो किसी मुसीबत में हैं और मुझसे मदद मांग रहे हैं। मैं सोच रही हूँ उन पर ऐसी मुसीबत आई भी क्यूँ जिसका अंदेशा किसी को नहीं था। वो तो कहते हैं वो आपके बहुत नजदीक हैं। उन्हें सताने वाला, बुरा भला कहने वाला पानी भी नहीं मांगता कहीं।  फिर? क्या हुआ?

भस्म क्यूँ नहीं कर दिया उन्होंने रास्ते में कांटे बिछाने वालों को? लांघ क्यूँ नहीं गए रास्ते की हर मुसीबत को? क्यूँ भगवान? क्यूँ छोड़ दिया उनका हाथ आपने? मैं तो आपके भरोसे उनको छोड़ कर आई थी। वो भी इसलिए क्यूंकि उनकी व्यस्त जिंदगी में मेरी बकवास (!) के लिए कोई जगह नहीं थी।

मेरा कैरियर, भविष्य, मान प्रतिष्ठा सब इनके हाथ में था और इन्होंने किसी और की मदद करना जादे ज़रूरी समझा। बिना ये सोचे कि मैं क्या दांव पर लगा रहा हूँ खड़ा कर दिया मुझे firing squad के सामने। किसी का सामना करने से पहले बेहद ज़रूरी है कि आपको उसकी शक्ति का यथोचित अंदाज़ा हो। आज वो कहते हैं तुम minor थोड़ी हो। 18 से ऊपर हो, तुम्हें खुद समझ होनी चाहिए। मैंने इन पर विश्वास किया और आज ये कहते हैं मैंने थोड़ी कहा तुम्हें आग में कूदने!

ठीक है मुक्त करती हूँ तुम्हें हर आरोप से। ये सारा किया धरा मेरा है और मैं तैयार हूँ इसकी सज़ा भुगतने को। चली जाऊँगी मैं जहां जिंदगी लेकर जाएगी मुझे। कर लूँ सभी कठिनाइयों का सामना जो भी राह में आएँगी मेरी। बस इतना चाहती हूँ जिस तरह निज स्वार्थवाश उन्होंने मुझे छोड़ दिया, उस तरह कोई कभी उनको छोड़ कर न जाए।

बस इतना और... मुझसे कहीं ज़ादे काबिल, कहीं अधिक शिक्षित, कहीं अधिक समझदार लोग आपके साथ हैं और ये आप ही के शब्द हैं। इसलिए अब आप मुझे नहीं, उनको जाकर कहिए मेरी मदद करो!

 

Sunday 10 January 2021

तेरे बिना...

 

मैंने आपको खुद अपनी जिंदगी से निकाल दिया, वो भी ऐसे? पर आप ही बताइये मैं क्या करती? आप मेरे साथ अपना भविष्य नहीं देखते, मेरे साथ रहना नहीं चाहते, साफ साफ कहते हैं कि तुम्हारी दिक्कतें तुम खुद जानो, मैं क्या करूँ…. और पैसे! पैसे तो मेरी मदद के लिए आपके पास कभी नहीं होते।

मैं एक रिश्ते में रह कर भी बेहद अकेली थी। हमेशा से थी। कब कौन सी दिक्कत में आप साथ खड़े हुए हैं, बताइये तो? केवल एक बार कह भी देते कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तो शायद मुझे थोड़ा सुकून होता। पर आप तो किसी एक ऐसी औरत के कहने पर मुझे ही गलत समझते हैं जो मुझे कभी मिली तक नहीं।

कैसे आगे बढ़ती मैं इस रिश्ते में जब आगे बस एक गहरी खाई है। अपने प्यार से कुछ न चाहना मैं मान सकती हूँ। पर उसी प्यार को अपनी आँखों के सामने किसी और का होते हुए देखना कैसे बर्दाश्त करती? उस पर ये बात कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता!

उन्हें फर्क नहीं पड़ता तो फिर मैं भी क्यों सोचूँ?

मुझे थोड़ा हिम्मत रखनी होगी। वो यही सब तो कहा करते थे। तुम बांझ हो, कामचोर हो, तुम्हें फ्री में मिला है ये सब कुछ, तुम चरित्रहीन हो। आज जब उनका हर आरोप स्वीकार करके मैं कह रही हूँ कि ऐसी लड़की के साथ आप मत रहो तो मानते क्यूँ नहीं? अब क्या चाहते हैं? मैंने अपना सब कुछ खो दिया और ये कहते हैं मैंने थोड़ी कुछ किया। ऊपर से ये भी कि तुम अपने किए का फल भुगतोगी!

क्या किया है मैंने भगवान? खून किया किसी का? बेईमानी की? अपने फायदे के लिए किसी के साथ गद्दारी की? अपनी किसी भी गलती का जिम्मा लेने से इंकार किया? कभी बिना मेहनत के कुछ पाने की कोशिश की? पीठ पीछे बुराई की क्या किसी की? बोलिए न?

सिर्फ उनको कुछ कड़वे बोल कह देने से हम इतने दोषी हो गए कि सारी जिंदगी झेलेंगे हम! तो फिर उनके लिए क्या सज़ा सोची आपने जिन लोगों ने मेरे साथ ये किया? या इनके लिए जिन्होंने मुझे एक स्वर्ग का द्वार दिखाया और फिर मुझे उसी नर्क में झोंक दिया जिसमें से इतने प्यार से निकाला था। कौन दोषी है और किसकी ये सज़ा है, सोचने के लिए सारी जिंदगी है भगवान।

पर फिलहाल जिंदगी का ये पन्ना जिसमें उनका प्यार लिखा था मैंने... आज अपने ही हाथों से फाड़ कर जलाना ही होगा मुझे।

Sunday 3 January 2021

गले की हड्डी

 

हे ईश्वर

4 फुट 9 इंच की एक छोटी सी काया से आपके समाज को इतनी समस्या क्यूँ है? सारा का सारा आजकल इस नन्हीं सी जान का दुश्मन बना हुआ है। क्यूँ? आप बताइये कि मैं ऐसा क्या करूँ कि मुझ पर टिकी हुई ये नज़रें कहीं और फिर जाएँ। क्यूँ मैं अपनी जिंदगी सुकून से नहीं जी सकती। मेरी 7 साल की मेहनत आज धुआँ होने की कगार पर है। आप बताइये न क्यूँ?

आपको इतना क्यूँ यकीन है कि ये मायापंछी (Phoenix) एक बार फिर अपनी राख़ से उठ कर खड़ी हो जाएगी, फिर नई हो जाएगी? कैसे भगवान? मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं समझ नहीं पा रही हूँ कैसी जिंदगी होगी आगे मेरी? क्या होगा? क्या सच में मुझे मेरे साथ हो रहे अन्याय के आगे सर झुकाना पड़ेगा। आज तो मेरे अपने मेरे साथ हैं फिर भी उनकी आँखों में उनकी नाराजगी साफ नज़र आती है। अक्सर पूछते हैं वो मुझसे अब तुम आगे क्या करोगी?’ साफ दिखता है उनकी आँखों में कहीं हम पर बोझ तो नहीं बन जाओगी?’ नहीं भगवान! मैं किसी पर बोझ नहीं बनूँगी क्यूंकि आपका आशीर्वाद और प्यार हमेशा मेरे साथ है। जब मेरे पास कुछ भी नहीं था तब भी विश्वास तो था एक दिन सब ठीक हो जाएगा उसी तरह आज ये समय मुश्किल सही पर आगे सब ठीक होगा। मुझे बस ये समय किसी तरह काटना है।

पता नहीं मेरा विश्वास तोड़ कर, मुझे इन मुश्किलों में अकेला छोड़ कर उनको क्या मिला? ठीक ही चल रही थी मेरी जिंदगी। थोड़ा सा ठोकर ही तो लगी थी, संभल जाते हम देर सवेर। हमें क्या पता था गिरने से बचने के लिए cactus की टहनी थाम ली हमने। सहारा तो मिला लेकिन हाथ भी तो ज़ख्मी हो गए। आज लगता है ऐसा सहारा मैंने चाहा ही क्यूँ था? हर इंसान अपने जीवन में किसी न किसी पर तो विश्वास करता ही है। मैंने भी किया तो क्या गलत किया?

लेकिन उनके लिए, मेरे अपनों के लिए और हर उस इंसान के लिए जिसे मैं जानती हूँ... पैसे से जादे ज़रूरी कुछ नहीं। न मेरी जान, न मेरी इज्ज़त, न मेरा आत्म सम्मान!

ईश्वर मुझे तुम्हारी दुनिया में नहीं रहना पर मैं आपकी इजाजत के बिना नहीं जा सकती। जितना मेरा जीवन लिखा है उतना मुझे काटना ही होगा। इसलिए जैसा भी है मैं जिऊंगी और बहुत अच्छा जीवन जिऊंगी.... वादा करती हूँ।

बस अब इतना और.... अब किसी भी इंसान को मेरे नजदीक मत लाना। मैं आदमजात की परछाई से भी बहुत दूर रहना चाहती हूँ भगवान।

किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...