Thursday 30 May 2019

अधूरी अलविदा III


हे ईश्वर

मैं जा रहा हूँ, मेरा इंतज़ार मत करना। अब मैं कभी वापस नहीं आऊँगा। मैं किसी और के साथ हूँ अब क्या नया बोला तुमने जो मैंने पहले नहीं सुना। कुछ भी नहीं। पर इस बार कुछ नया ज़रूर होगा। जैसा कल हुआ। कल पहली बार माँ ने मुझे अपने मंदिर में बुलाया। ऐसा लगा जैसे वो मुझे आश्वस्त करना चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम फिक्र मत करना। आगे आने वाली मुश्किलों को झेलने की ताकत देने के लिए और मेरी आँखों में झिलमिलाते आँसू पोंछने के लिए।

मुझे क्या पता था जिसकी नाराजगी से घबरा कर माफी मांगने मैं आपके पास आई थी वो मुझे ऐसी सज़ा देगा। जिसकी सफलता और खुशी के लिए दुआ करने मैं आपके पास आई थी वो मुझे मेरे जीवन की सबसे बड़ी हार से नवाज़ देगा। पर माँ, इस बार मैं टूटने बिखरने वाली नहीं। उनकी बात वहाँ खत्म भी नहीं हुई। इसके बाद भी कहना बाकी था कि अब हम कभी बात नहीं करेंगे।

मत कीजिएगा। आपकी जिसमें खुशी हो वही कीजिएगा। और मैं क्या करूंगी? मैं सिर्फ आपका इंतज़ार करूंगी और आपसे उतना ही प्यार करूंगी जितना आज करती हूँ। पर इसके साथ आज से मैं अपने आप को भी उतना ही प्यार करूंगी जितना आपने मुझसे किया। बहुत प्यार किया है आपने मुझसे। अब आपके हिस्से का प्यार भी मुझे खुद को देना है। अपना ख्याल रखना है।

मेरे ईश्वर आप इनको हमेशा खुश रखिएगा। मुझे नहीं पता हमने साथ में जो भी शुरू किया था उस सपने का क्या होगा? पर मैं इतना जानती हूँ कि जो भी होगा अच्छा ही होगा। इनकी खुशी, इनकी सफलता और इनकी आगे की जिंदगी के साथ मैं अपना वो सपना भी अब आपको ही सौंप रही। ख्याल रखिएगा, प्लीज।   



Tuesday 28 May 2019

कल, आज और कल


हे ईश्वर

ये कैसी ज़िंदगियाँ हैं हमारे चारों तरफ। हर किसी की आँखों में थकान दिखती है, हर कोई कहा अनकहा दर्द समेटे, अपने जख्म छुपाता फिरता है। हर किसी के होठों पर हंसी और आँखों में न जाने कितने आँसू हैं। फिर भी हम हँसते हैं, जीते हैं। अपने आस पास इतनी रंगीनी और रोशनी समेट लेते हैं कि अपने मन के अंधेरे का हमें एहसास न हो। क्यूँ है आपकी दुनिया ऐसी भगवान?

आपने जब बनाई थी तो क्या सोचा था कि ये इंसान अपने ही बनाए हुए रिश्तों में ऐसे उलझेंगे कि अपने आस पास की खूबसूरती से बेपरवाह अपने में गुम होके रह जाएंगे। इतनी सारी कहानियाँ बनी हैं इन्हीं उलझे हुए रिश्तों के चारों तरफ। क्यूँ उलझा ली लोगों ने अपनी ज़िंदगियाँ इस तरह?

कितनी सरल थी आपकी दुनिया जब केवल प्रेम इसका आधार था। फिर परिवार बना, मुहल्ला बना, देश बने और बनीं बहुत सारी सीमाएं। पहले पहल तो ये सीमाएं केवल एक सुविधा थीं। वक़्त के साथ ये बंधन बन गईं हैं। ये भी कम पड़ती हैं तो लोग धर्म और फिर जात बिरादरी बना लेते हैं। इंसान को इंसान से अलग करने का एक भी मौका नहीं खोना चाहते आपकी दुनिया के लोग।

एक बच्चा जब आपकी दुनिया में आँखें खोलता था तो उसके सामने एक ऐसा संसार होता था जो बाहें फैला कर उसे बुलाता था। अकेले होने नहीं देता था। पर आज किसी की गोद में अपने बच्चे को देने से पहले हम निशंक नहीं हो पाते। एक पल के लिए भी छोड़ दें तो यही लगता है कि इस मासूम जिंदगी पर कोई आंच तो नहीं आ जाएगी।

घर, स्कूल, खेल के मैदान.. वो बेफिक्री अब नहीं रही। कहाँ तो सुबह के गए शाम ढले ही आते थे फिर भी माँ से फिक्र की जगह डांट ही पड़ती थी। पर आज तो एक एक पल की खबर रखने के बाद भी माँ सशंकित ही रहती है। क्यूँ भगवान? वो कौन सी दुनिया के लोग हैं जो इंसानियत को शर्मिंदा करने में ही सुकून महसूस करते हैं? क्यूँ चैन से नहीं जीते न जीने देते हैं। अपनी कुंठाएं, अपनी विकृत सोच और घृणित मानसिकता से समाज को मैला करने वाले ये लोग... इनके लिए भी कोई सीमा क्यूँ नहीं बनी? जिसे ये कभी न लांघ सकें और रहें अपने ही नरक में, अपने जैसे लोगों के साथ। उन्हीं लोगों के बीच।


Friday 24 May 2019

दोराहा


हे ईश्वर

तुम शादी कर लो। पढ़ी लिखी हो, अच्छे घर से हो, अच्छा कमाती भी हो! क्यूँ अपनी जिंदगी खराब कर रही?’ प्यार, समर्पण और एकनिष्ठा के एवज़ में कल ये समझाईश मिली मुझे। अक्सर मिलती रहती है! पर मैं किसी को कैसे समझाऊँ? क्या चाहती हूँ कैसे कहूँ? जिस इंसान ने मुझे मेरे लिए कोशिश करने का वचन दिया था आज वो हार चुका है समाज के खोखले नियम क़ानूनों और रीति रिवाजों से। आँख बंद करके चलता जा रहा है उस रास्ते पर जहां से वो मुझसे इतनी दूर हो जाएगा कि उसे आवाज़ भी नहीं दे सकूँगी। अब वो कहता है तुम भी शादी कर लो सिर्फ इसलिए क्यूंकि उसके अंदर सबके सामने मुझे स्वीकार करने का साहस नहीं है।

अपने सपने बेच दूँ तो बदले में मिलेगा मुझे समाज का बनाया एक खोखला रिवाज। वो रिवाज जिसमें मेरा शरीर तो होगा पर आत्मा नहीं। लोग कहते हैं हो सकता है तुम्हें उससे प्यार हो जाए। हो सकता है वो बहुत अच्छा हो। तुम्हें खुश रखे, तुम्हारा ख्याल रखे। पर नहीं हुआ तो? इसका जवाब नहीं मिला मुझे। लोग कहते हैं कैसे नहीं होगा और नहीं हुआ तो उसे छोड़ देना तुम। एक रिश्ता टूट जाने के बाद मैंने फिर से एक नया रिश्ता बनाने की हिम्मत की थी, सपने देखने का साहस किया और उनके पूरे होने की उम्मीद भी की। इसलिए क्या सब को लगता है कि टूटते हुए रिश्तों का मुझ पर असर नहीं पड़ता?

माना कि मैं अभी समाज के सामने उसका नाम अपने नाम के साथ नहीं ले सकती, पर फिर भी मेरा नाम उससे ही जुड़ा है। मैं भी उसी की हूँ, उसी के साथ हूँ। बदलते वक़्त का भरोसा न सही। पर आज तो मेरा प्यार और मेरी वफादारी उस इंसान के लिए है। आने वाले कल के डर से मैं क्यूँ अपना आज भूल जाऊँ? मुझे पता है ईश्वर आप जो करेंगे अच्छा करेंगे।

जब आदि से अंत तक एक भटकन ही मेरी नियति है तो किसी को साथ घसीट के मुझे क्या मिलेगा। मेरा सफर बहुत लंबा है। पर मैं तो अभी थकी नहीं। इस बीच कभी कभी बीता हुआ कल आँखों के आगे आ जाता है। कल जब मैं किसी के साथ चलने को तैयार थी, इंतज़ार करने को तैयार थी... बेशर्त प्यार किया था। तब न उसे मेरा प्यार अच्छा लगा, न इंतज़ार, न साथ। आज जब मैं उस अतीत से बाहर आ चुकी हूँ, भूल चुकी हूँ सब तो क्यूँ लौटना चाहता है?

बस इतना और भगवान। उनके मुंह से ये सब कहला कर मेरे प्यार, मेरी वफादारी और मेरे रिश्ते को गाली मत दो। किसी को कोई हक़ नहीं कि मुझसे मेरा इंतज़ार करने का हक़ छीन ले। मैं इंतज़ार करूंगी और मुझे यकीन है कि मेरा भी एक वक़्त है, जो ज़रूर आएगा। उस दिन लोगों को उनके सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे और मुझे मिलेगा मेरा हक़। समाज के सामने किसी को अपना कहने का हक़।



Thursday 23 May 2019

नई सुबह


हे ईश्वर

आपके पास मेरे हर सवाल का जवाब है, हर दुविधा का अंत। आज जब मैंने सोच लिया था कि मेरे इस प्यारे से रिश्ते का शायद इतना ही साथ था। लेकिन आपने मुझे हारने नहीं दिया। आजकल तो ऐसे लगता है जैसे ये मेरा नया जन्म है। सब कुछ पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत है। मन सुलझा और शांत। ये तो नहीं जानती कि कब तक है ये सुकून। पर इसको बनाए रखने के लिए जो भी करना पड़ा करूंगी।

अच्छा लगता है जब वो प्यार से सर पर हाथ रख देते हैं। मन एकदम से शांत हो जाता है। कुछ भी कहने की ज़रूरत ही नहीं रहती। काश हमारा साथ हमेशा ऐसे ही सुकून से भरा हो। हे ईश्वर, कितनी कम होती हैं हमारी जरूरतें। बस एक प्यार भरी नज़र, एक छोटा सा आश्वासन कि हम हमेशा साथ हैं। तुम मेरे लिए मायने रखती हो। न जाने कौन कहता है कि हम एक रिश्ते से न जाने कौन कौन सी आसमान छूती उम्मीदें रखते हैं।

हमारी उम्मीद बस एक प्यार भरी नज़र है और कुछ भी नहीं। एक इंसान जिसके लिए सब कुछ छोड़ के एक अनजानी दुनिया में कदम रखते हैं, सोचते हैं उसकी नज़र में हमारे लिए हमेशा प्यार हो, परवाह हो। उस प्यार के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। वही परवाह किसी और के लिए हो तो सारी तपस्या व्यर्थ लगने लगती है। एक छोटी सी तारीफ हमारे लिए वो जादू कर देती है जो बड़े से बड़ा ईनाम न कर सके।

वो अक्सर कहते हैं कि कुछ करके एहसास दिलाने से अच्छा कुछ करो ही मत। पर मैं सोचती हूँ एहसास दिलाने की ज़रूरत ही क्यूँ पड़े? क्यूँ नहीं हम पहले ही हमारे रिश्ते को प्यार से इतना भर दें कि और किसी एहसास के लिए जगह ही न बचे। एक दूसरे से प्यार जताना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए आसमान से तारे तोड़ने की ज़रूरत नहीं। तारों भरी रात में हाथ थाम कर कुछ कदम चलना भी बहुत है।

Wednesday 22 May 2019

दो पाटन के बीच में..


हे ईश्वर

दो ही पंक्तियों में कबीर जी ने न जाने कितने लोगों की कथा कहानी कह डाली। चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय’…

चाकी के ये दो पाट कोई भी हो सकते हैं। परिस्थितियाँ, अपनी खुशी और परिवार की खुशी, माँ और बीवी, पति और संतान... न जाने ऐसी कितनी चक्कियों के पाट हैं जो इंसान को पीसते चले जा रहे हैं। गुज़रता हुआ वक़्त मुट्ठी भर अनाज की तरह न जाने कब हाथ से निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। लोग सोचते हैं एक बार मेरे पास वक़्त होगा तो ये करेंगे वो करेंगे। वो भी तो कहते हैं... इस वक़्त मेरे पास वक़्त नहीं है। परिवार, ज़िम्मेदारियाँ, भविष्य, दोस्त, रिश्तेदार और ढेर सारे सामाजिक मेल जोल। इस सब के बीच में हमारा रिश्ता बड़ी आस लगा कर देखता है उनकी तरफ कि कब वो मुझे याद करेंगे, थोड़ा सा ही सही वक़्त देंगे। ये शिकायत तो शायद हर पति या पत्नी की होती है कि एक दूसरे के लिए उन्हें वक़्त ही नहीं मिलता।

वक़्त होता नहीं है ईश्वर, वक़्त निकाला जाता है। उसके लिए जो आपके लिए खास हो, अहम हो। किसी की एक आवाज़ पर उसके पास भागते जाने वाली मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि मैं पुकारूंगी तो शायद आ नहीं सकेगा वो। कैसे कहूँ कि मुझे कोई शिकायत नहीं। पर शिकायत करूँ भी तो किस से? और क्यूँ? कभी कहा भी है मैंने पर वो कहते हैं तुम्हारे पास बहुत सा खाली वक़्त है इसलिए इतना सब कहा करती हो। सोचा करती हो। पर ऐसा नहीं है ईश्वर। मेरे पास भी सीमित ही समय है फिर भी उनका असर ही कुछ ऐसा है। बुलाते हैं तो भाग कर जाने का मन करता है। कुछ करने को कहते हैं तो इफ़रात खुशी होती है। क्या है ये खुशी ईश्वर? क्यूँ मिलता है इतना सुकून?

आपसे एक बात कहूँ? बचा लीजिये मेरे इस प्यारे से रिश्ते को वक़्त नहीं है के जहर से। ऐसा एक दिन ला दीजिये भगवान कि उनकी ये भागती दौड़ती जिंदगी ज़रा सा थमे और उनको कुछ वक़्त मेरे साथ बिताने का ख्याल आए। करेंगे न?




Sunday 19 May 2019

अच्छी लड़की


हे ईश्वर

बहुत सी दुविधाएँ होती है मन में अपने भविष्य को लेकर। मेरा क्या होगा अविवाहित रहने का निर्णय लेकर मैंने अपने माँ बाप की आँखों में हमेशा के लिए इस सवाल को जगह दे दी। आज मेरे पास कुछ नया नहीं है कहने के लिए। बस भविष्य की चिंता हो रही है। इनका क्या होगा?’ मन यही सोचता रहता है। ईश्वर ऐसा बहुत कुछ है जो अनकहा है और जिसे कहने के लिए मेरे पास न शब्द हैं न हिम्मत।

पर मैं इतना ज़रूर कहूँगी। मेरे माता पिता कभी उस दर्द से नहीं गुज़रेंगे जिससे मैंने सैकड़ों लोगों को गुजरते देखा है। मैं हमेशा उनका साथ दूँगी, उनके पास रहूँगी। मेरे माँ बाप को बुढ़ापे में सहारे की जरूरत नहीं, हाँ साथ चाहिए होगा। मैं उनको वो साथ ज़रूर दूँगी। मैं कभी कभी मज़ाक में कहा करती थी कि मेरे दो बच्चे हैं – मम्मी और पापा। अगर ये मज़ाक सच भी हुआ तो भी मैं खुशी से इस मज़ाक को सच कर लूँगी।

कभी कभी सोशल मीडिया और अपराध कथाएँ देख देख कर दिल दहल जाता है। डर लगता है उन दोनों के लिए। पर मैं जो हूँ उनके साथ, उनके लिए।

सोशल मीडिया की बात चली है तो एक बात कह दूँ – थोड़ी विवादास्पद है पर बोलनी होगी। अभी कुछ दिन पहले एक शिक्षित सी लड़की एक जाति विशेष को अपशब्द कहती नज़र आई। जिसने वीडियो बनाया उसकी भी बलिहारी। उस लड़की की जानकारी के बिना उसकी आवेश में कही हुई बातों को सार्वजनिक कर दिया। आवेश की कोई जात नहीं होती, आक्रोश का कोई धर्म नहीं होता। वो अपनी बेरोजगारी के दुख में अंधी थी। पर फिर भी उसकी बातों का सार बस ये था कि उसको एक जाति विशेष के कारण सरकारी नौकरी नहीं मिल पा रही। बाद में उसने माफी भी मांगी। पर उसकी बातों और लहजे ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या होगा अगर उसके जैसी सोच के लोग देश के किसी जिम्मेदार पद पर आसीन हो जाएँ? या उनको सामाजिक सुधार का जिम्मा दे दिया जाए। लोग जब भी किसी पद को सुशोभित करते हैं उनकी सोच भी उनके साथ आती है। यह सोच लेकर तो एक परिवार तक नहीं चलाया जा सकता, देश तो दूर की बात है।

सोशल मीडिया की ताकत और असर का लोगों को अंदाज़ा तक नहीं। एक गैर जिम्मेदार वक्तव्य किसी गंभीर घटना को भी जन्म दे सकता है। क्या ये लोग नहीं जानते? एक गलत सूचना के चलते भीड़ मासूम लोगों को घेर कर कत्ल तक कर डालती है। फिर उसके मीडिया प्रोफ़ाइल पर अशिष्ट और आपत्तिजनक वक्तव्य देना तो इनके लिए मामूली बात है।

एक अपराध उसने किया था और एक जवाबी हमला लोग भी कर सकते हैं। आँख के बदले आँख का ये नया चलन पूरे देश को अंधा भी बना सकता है। पर इसी समस्या का एक सार्थक हल भी हो सकता है,। अगर सचमुच लोग अपनी योग्यता को साबित करते जाएँ। भूल जाएँ कि आज वो जहां है वहाँ पहुंचे कैसे थे। केवल अपनी योग्यता और ज्ञान को ज़्यादा से ज़्यादा साबित करने का प्रयास करें। ऐसा करने से भले किसी की सोच न बदले पर अपने मन को ये सुकून ज़रूर रहेगा कि आज हम जहां भी हैं, अपने दम पर हैं, अपनी योग्यता के कारण हैं।  

Wednesday 15 May 2019

गूंगी गुड़िया


हे ईश्वर

अपने रिश्ते को निभाने के लिए इंसान बहुत सी कुर्बानियाँ देता है, खुद की बहुत सी अच्छी बुरी आदतों को बदलता है, कुछ चीजों को अपनाता है तो कुछ को पीछे छोड़ देता है। आज एक पल के लिए लगा शायद मैं इतनी बुरी हूँ कि वो मुझे छोड़ के आगे बढ़ जाएंगे। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक रात बेहद परेशान होने के बाद सुबह probation पर ही सही उन्होंने मुझे वापस अपना लिया।

ये मेरे लिए आखिरी मौका है ऐसा वो कहते हैं। इसके बाद कोई भी गलती हुई तो वो कुछ भी नहीं सुनेंगे, ये भी कहा। सच कहूँ तो अपनी गलती पर मैं खुद शर्मिंदा थी। मैंने तो इनसे भी यही कहा था कि जब कोई आपको नहीं समझ रहा, बार बार आपके लिए परेशानियाँ बढ़ा रहा है तो आपको पूरा हक़ है अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का, खुश रहने का। मन को भी समझा लिया था कि टूट जाने दो ये रिश्ता, मैं तुमको संभाल लूँगी। कम से कम ये अनिश्चय तो खत्म होगा। बार बार का ये अबोला तो नहीं झेलना पड़ेगा। कोई बार बार किसी और का नाम लेके तुम्हें सताएगा तो नहीं।

पर फिर सब ठीक हो गया। मैंने चैन की सांस ली और मन भी सुकून से है। लेकिन कब तक?

सिर्फ तब तक न जब मैं समदर्शी होके अच्छा या बुरा सब चुपचाप सहन कर लूँ। कोई उनके लिए मुझसे ज्यादा अहम है ये स्वीकार कर लूँ और नज़रअंदाज़ कर दूँ उनकी जिंदगी में किसी और के होने को।

ये अलग बात है कि वो कभी ऐसा नहीं करते। मेरे दोस्त, मेरे जानने वाले, परिचित सभी से एक सुरक्षित दूरी बना कर चलती हूँ मैं। कभी किसी से दो बातें कर लूँ तो कटघरे में खड़ी नज़र आती है मेरी वफादारी। क्यूँ कह रही हूँ आपसे मैं ये सब? ईश्वर एक रिश्ते में बराबरी की उम्मीद करना छलावा है। औरत और मर्द कभी बराबर नहीं होते, हो ही नहीं सकते। मर्द की बराबरी का दम भरने वाली हर औरत को आखिरकार किसी न किसी मर्द के लिए झुकना ही पड़ता है। प्यार में इतना तो करना ही पड़ता है। मैंने भी सिर झुकाया, उनकी बात मान ली। मैं भी अब गांधारी हूँ, कुछ नहीं देखूँगी। वादा करूँ? नहीं कर सकती! पता नहीं कब मेरा सोया हुआ आत्मसम्मान जग जाए और मैं फिर किसी गलत बात के विरोध में उठ खड़ी हुई तो?  ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दो, आईना दिखाओ। इतना ही कह सकती हूँ आपसे। कह सकती हूँ न?


Thursday 9 May 2019

कुछ न कहो


हे ईश्वर
मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं है। आज यही कहा है उसने। बड़ी आसानी से... मैंने भी उसको कह दिया हमारा रिश्ता है या नहीं ये तो वक़्त बताएगा। पर बड़ी खोखली लगी आज अपनी ये दलील। भगवान... आप तो कुछ कहेंगे नहीं। अगर मैंने मुंह खोला तो खुद को बचाने के लिए सबके सामने मुझ पर लांछन लगाने से चूकेगा नहीं ये इंसान। पर आप तो सारा सच जानते हैं। कुछ बोलते क्यूँ नहीं कभी? यही है न जिसकी खुशी और सफलता के लिए मन्नतें मांगती रहती हूँ। यही है न जिसके लिए, जिसके अपनों के लिए खून का घूंट पी कर उसे आज़ाद कर दिया था मेरे प्रति किसी भी ज़िम्मेदारी से। यही है न जिसके लिए आपसे कितनी बार हाथ जोड़ कर प्रार्थना की है। यही है जिसने मेरा हाथ उस वक़्त पकड़ा था जब मैंने अपने लिए कुछ अच्छा सोचना ही छोड़ दिया था। उस नाउम्मीदी के अंधेरे से मेरा हाथ पकड़ कर ले आया था। आज कितनी बेदर्दी से हाथ छुड़ा रहा है।
क्या यही प्यार है भगवान? वो प्यार जिसे आपके समकक्ष खड़ा करने से भी नहीं चूकते लोग। मेरी आँखों ने आज जो देखा था उसके बाद शक की कोई गुंजाइश नहीं। वो किसी और के साथ थे। अब वो कहते हैं मैंने तुमसे कुछ छुपाया तो नहीं। पर बताया भी तो नहीं था। वो तो अचानक मेरी आँखों के आगे एक सच आ गया। आप ही तो लाना चाहते थे।
क्या बताना चाहते हैं मुझे? क्या करूँ? सब कुछ नज़रअंदाज़ करके उस पर विश्वास करने की कसम खाई है मैंने। पर मेरे विश्वास का मान रखना अब आपके हाथ में है ईश्वर। कभी कुछ ऐसा मत दिखाना मुझे कि प्यार, विश्वास और अपनापन सब बेमानी लगने लगे मुझे। मेरे ईश्वर आपके सिवा किसी ने भी, कभी भी मुझे प्यार नहीं किया। अजीब मृगतृष्णा है मेरा जीवन भी।
पर मैं आज आपसे कुछ मांगना चाहती हूँ। हे ईश्वर उनको और उनके जैसे लोगों को आईना ज़रूर दिखाना। वो दुनिया, समाज, रीत रिवाज़ सबसे भले बंधे रहें, पर उनका एक हिस्सा मेरे पास हमेशा रखना। जिस प्यार को, जिस रिश्ते को समाज के डर से वो आज नकार रहे हैं, उसे इतनी शक्ति देना कि एक दिन वो खुद सबके सामने इसे स्वीकार भी करें और अपनाएँ भी। हमें एक ही मंच पर, एक ही जगह पर एक साथ खड़ा करना ईश्वर। प्रतिद्वंदी बना कर नहीं, सहयोगी बना कर। आज भले ही समाज के खोखले नियमों का पलड़ा भारी हो। आने वाले कल को मेरा बना देना। इतना तो आपको मेरे लिए करना ही होगा। साबित करना ही होगा कि हमारा रिश्ता है और इतना गहरा है कि हर हाल में, हर परिस्थिति में हम हमेशा साथ रहेंगे। तुम्हारे समाज के खोखले नियम कानून की आँखों में मिर्च झोंक कर सिर उठा कर खड़ा होगा मेरा प्यार और मेरा रिश्ता भी। मैं उस दिन का इंतज़ार करूंगी। प्लीज भगवान इतना तो आपको मेरे लिए करना ही होगा।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            
 

Tuesday 7 May 2019

अबोला


हे ईश्वर
एक गलती क्या मेरी पूरी जिंदगी पर भारी पड़ेगी? मैं क्यूँ इतनी परेशान हूँ भगवान? क्या सच में टूट जाएगा हमारा रिश्ता? बहुत से काश मेरी आँखों के सामने आज आ रहे हैं। काश मैं उस वक़्त चुप रहती। काश थोड़ा और संयम रखती। काश मैं उस बारे में बात ही न करती। काश ये, काश वो।
ईश्वर आपने मेरे लिए एक अंतहीन प्रतीक्षा ही बनाई है क्या? अभी कुछ दिन ही शांति से बीते थे और अब ये सब? क्या मेरा विश्वास और मेरा रिश्ता इतना कच्चा और कमजोर है? मेरा रिश्ता है क्या भगवान? आपकी दुनिया जिन रिश्तों को मानती है उसमें से तो है भी नहीं।
लोग कहते हैं खुद के लिए जियो, अपने आप को खुश रखना सीखो और किसी से कोई उम्मीद मत करो। पर वही लोग मुझसे उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जो हुआ उसे भूल जाऊँ। एक नई (!) शुरुआत करूँ। कोई बताता नहीं कि जो नई शुरुआत अब अंत बन रही है उसको क्या करूँ? वो कहते हैं ये अंत नहीं है। हम हमेशा साथ हैं। पर जब नाराज़ होकर खुद तक पहुँचने का हर रास्ता बंद कर देते हैं तब बहुत डर लगता है।
लोग कहते हैं कि एक इंसान के जाने से जिंदगी थोड़े न खत्म हो जाती है। लेकिन ये बताना भूल जाती है कि एक लंबे समय के लिए आप जीना भूल जाते हैं। समझ ही नहीं आता कि जाना कहाँ है और करना क्या है? कुछ वक़्त के लिए सब बेमानी लगता है। सब व्यर्थ लगता है। जैसा आज मुझे लग रहा है।
उनको वापस ला दो भगवान। हिम्मत करूँ और ठान लूँ तो शायद उनके बिना जी सकूँ। पर ऐसी आधी अधूरी जिंदगी किसे चाहिए ईश्वर? क्यूँ चाहिए? वो जब से मेरे साथ हैं मैंने कभी किसी और अंत की कल्पना ही नहीं की। उनका साथ मेरी मुस्कान भी है और आंसू भी। राहत भी है और बेचैनी का कारण भी। उनका साथ ही मेरे लिए सब कुछ है भगवान।

Thursday 2 May 2019

किसका दोष?


सोशल मीडिया भी अजीब शै है। कभी भी कोई भी मुद्दा उठाओ और कुछ दिन के लिए लोग दो खेमों में बंट जाते हैं। एक वीडियो पर नज़र पड़ी आज। एक महिला और कुछ लड़कियों में बहस चल रही थी। मुद्दा था कि लड़कियों के छोटे कपड़े पहन कर चलने पर उनको इतना ऐतराज़ हुआ कि महिला ने वहाँ बैठे कुछ लड़कों को उन लड़कियों के साथ रेप करने की सलाह दे डाली। अब लोग हैं कि उसी पुरानी बहस में उलझ गए। रेप के लिए दोषी कौन?
क्या वो लड़कियां जो अपने मनचाहे परिधान पहनने को अपना अधिकार बताती हैं। या उन महिला जैसी सोच वाले हमारे संस्कृति रक्षक जो लड़कों को खुलेआम ऐसा घृणित अपराध करने के लिए उकसाती नज़र आईं? छोटे कपड़े से आपका मतलब कुछ भी हो सकता है। अभी कुछ दिन पहले इंदौर शहर में एक स्कर्ट पहने लड़की की स्कूटी में टक्कर मार कर कुछ लड़के चलते बने। उस लड़की को भी यही सलाह दी गई थी। कितना बोझिल होता जा रहा है हर बार इसी बहस में पड़ना। किस तरह के कपड़े पहनें हम कि भीड़ में कोई नज़र हम पर न पड़े।
इसका जवाब बड़ा साफ है। इस दुनिया में ऐसा कोई परिधान नहीं बना जिसे पहन कर एक लड़की खुद को सुरक्षित महसूस कर सके। वो जो भी करे, जो भी कहे समाज का एक तबका उसकी कोई न कोई गलती खोज ही लेगा। इसलिए सच में आप दोषी नहीं हैं। आपका परिधान दोषी नहीं है। आपकी उम्र, आपकी सोच, आपका काम और आने जाने का समय भी दोषी नहीं है। समाज अपनी सुविधानुसार नियम बनाता है और उनका पालन करता है। वरना घर के अंदर हो रहे शोषण को घर की इज्ज़त के नाम पर सात पर्दों में क्यूँ रखा जाता?
अब सवाल ये भी उठा कि सोशल मीडिया ट्रायल के बजाय लड़कियों ने पुलिस की मदद क्यूँ नहीं ली? अगर पुलिस आ भी जाती तो क्या उस महिला के खिलाफ मामला दर्ज़ करती? ये एक अलग ही बहस का मुद्दा है। पता नहीं क्या होता? हो सकता है लड़कियों को उनके भविष्य और इज्ज़त की दुहाई देकर पूरा मामला ही दबा दिया जाता। अब कुछ ऐसे भी महनुभाव हैं, जो उन महिला की सुरक्षा के लिए चिंतित नज़र आए। ये सच है कि उन पर तरह तरह की फब्तियाँ कसी जा रही हैं, लोग बिना सोचे समझे उनको भी तरह तरह की बातें कह सुन रहे हैं। पर ये भी सच है कि जिस वक़्त ये पूरा मामला हो रहा था, उस वक़्त शायद सब मूक होकर तमाशा देख रहे थे। अब उनके और उनके परिवार के अवसादग्रस्त होने तक पर चिंता जताई जा रही है।
अब रहा वो सवाल जिससे ये मुद्दा शुरू हुआ था। रेप के लिए दोषी कौन? रेप के लिए दोषी कोई एक व्यक्ति नहीं होता। रेप के लिए दोषी एक कुंठा, एक सोच, एक पूरी की पूरी विचारधारा है। वो मानसिकता है जिसने स्त्री को एक वस्तु से आगे कभी बढ़ने ही नहीं दिया। रेप के लिए दोषी वो लोग हैं जो स्त्री को सदा एक दायरे में देखना चाहते हैं। उस दायरे से आगे बढ़ते ही उसे सज़ा देने पर उतारू हो जाता है एक पूरा का पूरा समाज। दोष उस समाज का है जो किसी पुरुष को उकसाता है और स्त्री की मदद की गुहार को अनसुना करता है।


किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...