हे
ईश्वर
बहुत
सी दुविधाएँ होती है मन में अपने भविष्य को लेकर। ‘मेरा क्या
होगा’ अविवाहित रहने का निर्णय लेकर मैंने अपने माँ बाप की
आँखों में हमेशा के लिए इस सवाल को जगह दे दी। आज मेरे पास कुछ नया नहीं है कहने
के लिए। बस भविष्य की चिंता हो रही है। ‘इनका क्या होगा?’ मन यही सोचता रहता है। ईश्वर ऐसा बहुत कुछ है जो अनकहा है और जिसे कहने के
लिए मेरे पास न शब्द हैं न हिम्मत।
पर
मैं इतना ज़रूर कहूँगी। मेरे माता पिता कभी उस दर्द से नहीं गुज़रेंगे जिससे मैंने
सैकड़ों लोगों को गुजरते देखा है। मैं हमेशा उनका साथ दूँगी, उनके पास रहूँगी। मेरे माँ बाप को बुढ़ापे में सहारे की जरूरत नहीं, हाँ साथ चाहिए होगा। मैं उनको वो साथ ज़रूर दूँगी। मैं कभी कभी मज़ाक में
कहा करती थी कि मेरे दो बच्चे हैं – मम्मी और पापा। अगर ये मज़ाक सच भी हुआ तो भी
मैं खुशी से इस मज़ाक को सच कर लूँगी।
कभी
कभी सोशल मीडिया और अपराध कथाएँ देख देख कर दिल दहल जाता है। डर लगता है उन दोनों
के लिए। पर मैं जो हूँ उनके साथ, उनके लिए।
सोशल
मीडिया की बात चली है तो एक बात कह दूँ – थोड़ी विवादास्पद है पर बोलनी होगी। अभी
कुछ दिन पहले एक शिक्षित सी लड़की एक जाति विशेष को अपशब्द कहती नज़र आई। जिसने वीडियो
बनाया उसकी भी बलिहारी। उस लड़की की जानकारी के बिना उसकी आवेश में कही हुई बातों
को सार्वजनिक कर दिया। आवेश की कोई जात नहीं होती, आक्रोश का
कोई धर्म नहीं होता। वो अपनी बेरोजगारी के दुख में अंधी थी। पर फिर भी उसकी बातों
का सार बस ये था कि उसको एक जाति विशेष के कारण सरकारी नौकरी नहीं मिल पा रही। बाद
में उसने माफी भी मांगी। पर उसकी बातों और लहजे ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या
होगा अगर उसके जैसी सोच के लोग देश के किसी जिम्मेदार पद पर आसीन हो जाएँ? या उनको सामाजिक सुधार का जिम्मा दे दिया जाए। लोग जब भी किसी पद को सुशोभित
करते हैं उनकी सोच भी उनके साथ आती है। यह सोच लेकर तो एक परिवार तक नहीं चलाया जा
सकता, देश तो दूर की बात है।
सोशल
मीडिया की ताकत और असर का लोगों को अंदाज़ा तक नहीं। एक गैर जिम्मेदार वक्तव्य किसी
गंभीर घटना को भी जन्म दे सकता है। क्या ये लोग नहीं जानते? एक गलत सूचना के चलते भीड़ मासूम लोगों को घेर कर कत्ल तक कर डालती है। फिर
उसके मीडिया प्रोफ़ाइल पर अशिष्ट और आपत्तिजनक वक्तव्य देना तो इनके लिए मामूली बात
है।
एक
अपराध उसने किया था और एक जवाबी हमला लोग भी कर सकते हैं। आँख के बदले आँख का ये नया
चलन पूरे देश को अंधा भी बना सकता है। पर इसी समस्या का एक सार्थक हल भी हो सकता है,। अगर सचमुच लोग अपनी योग्यता को साबित करते जाएँ। भूल जाएँ कि आज वो जहां
है वहाँ पहुंचे कैसे थे। केवल अपनी योग्यता और ज्ञान को ज़्यादा से ज़्यादा साबित करने
का प्रयास करें। ऐसा करने से भले किसी की सोच न बदले पर अपने मन को ये सुकून ज़रूर रहेगा
कि आज हम जहां भी हैं, अपने दम पर हैं,
अपनी योग्यता के कारण हैं।
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