Thursday 18 July 2019

वक़्त वक़्त की बात


हे ईश्वर

वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। ये कहने वाले ने शायद कभी वक़्त गुजरते नहीं देखा। वो वक़्त जब एक पल भी गुज़ारना भारी लगता है। वो वक़्त जब आप सांस तक नहीं ले पाते ठीक से। वो वक़्त जब आप अपने देखे हुए सारे सपनों को खुद अपने ही हाथों से आग लगा रहे होते हैं। नहीं देखा होगा उसने वो वक़्त जब आपकी ही आँखों के सामने आपका कोई रिश्ता मरता है और आप उसे बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाते। वो वक़्त जब आपकी हर कोशिश बेकार हो जाती है। वो वक़्त जब छोटी बड़ी हर याद आँखों के सामने से ऐसे गुजरती है जैसे अभी कुछ ही देर पहले की बात हो। वो वक़्त जब आप रात रात जागकर सोचते हैं कि काश ऐसे कहा होता, काश ऐसे किया होता। वो वक़्त जब आपके आस पास की हर एक चीज़ आपको वही गुज़रा हुआ वक़्त याद दिलाने लगती है।

सच है वक़्त हर जख्म भर देता है। पर भरे हुए जख्म भी कभी कभी एक छोटी सी बात पर हरे हो जाते हैं। जैसे आज हुआ है। सबको लगता है जो लोग टूटे हुए रिश्तों से गुजरे होते हैं उनको रिश्तों के टूटने से कोई फर्क नहीं पड़ता। पर किसी को नहीं पता कि हर टूटता हुआ रिश्ता हमें अंदर से किस कदर तोड़ देता है, खाली कर देता है। खुद पर बहुत गुस्सा आता है। आप पर भी बहुत गुस्सा आता है।
आपकी दुनिया हमेशा गिर कर उठने वाले को शाबाशी तो देती है पर कभी नहीं देख पाती कि उसको उठने में कितनी कोशिश करनी पड़ती है। कितना हौसला जुटाना पड़ता है। एक बार जब असफल हो जाए तो दुबारा इम्तेहान देने के लिए किस कदर हिम्मत चाहिए, तुम्हारी दुनिया को कोई अंदाज़ा नहीं है।
पर मैं अब उठना नहीं चाहती। मैं नहीं चाहती कि मेरा कोई ज़ख्म भरे। मैं भूलना भी नहीं चाहती कुछ। मैं बस इतना चाहती हूँ कि आज जो मेरे साथ हुआ वो मुझे जिंदगी भर याद रहे। मैं बस इतना चाहती हूँ कि तुम्हारी दुनिया और इसके लोगों पर से मेरा भरोसा आज हमेशा के लिए उठ जाए। मैं अब किसी का भरोसा नहीं करना चाहती। मैं अब दुबारा ठोकर खाना नहीं चाहती। मैं अब कभी भी किसी के भी पास नहीं रहना चाहती। मैं तुम्हारी दुनिया में रहकर भी तुम्हारी दुनिया से इतना दूर रहना चाहती हूँ कि इसकी परछाई भी मुझे न छू सके। इतना तो मेरे लिए कर ही सकते हैं न आप? ईश्वर जो ठहरे!

निमकौरी


हे ईश्वर

बहुत कुछ कहते हैं लोग साफ़गोई के बारे में। पर वो सब कुछ एक सफ़ेद झूठ है। सच ये है ईश्वर की तुम्हारी दुनिया में सच के सिवा सब कुछ कहते हैं लोग। एक सच ये भी है कि बहुत सोचती हूँ मैं। कल की रात भी एक बेहद मुश्किल रात थी। मैंने सोच लिया था कि शायद यही है हमारे रिश्ते का आखिरी पड़ाव। सोचा था कि अब अपने उस बुराई के दलदल में फिर से डूब जाऊँगी। दोस्तों ने समझाया था बेहद प्यार से। तुम बहुत कुछ deserve करती हो, आगे सब ठीक होगा। खुद को संभालो और आगे बढ़ो। आज सुबह यही सोच कर चुपचाप उठ कर अच्छे बच्चों की तरह सारा काम निपटाया था।

हम एक दूसरे से कितने भी नाराज़ क्यूँ न हों पर मैंने आपके पास आने का वादा किया था। वही वादा निभाने के लिए मैं आई आपके पास। मन भटक रहा था पर मैं उसको साधने की कोशिश करती रही। अच्छा ही किया। दोपहर तक वो एक बार फिर मेरे पास लौट आए थे। मैं खुद को न जाने कितनी बार समझा चुकी थी कि अब मैं कुछ नहीं सोचूँगी। बस चुपचाप रहूँगी और अपने पर ध्यान दूँगी। ये भी सोचा था कि अब कभी किसी को अपने इतने नजदीक नहीं आने दूँगी। पर उनकी आवाज़ सुनी तो लगा कि मैं खुद किस कदर खो जाती हूँ उनके न होने से। उनके साथ साथ मैं भी वापस लौट आई अपने आप में।   

मन करता है हमेशा के लिए आपके पास आने का। पर बड़ी मेहनत से बनाई है मैंने अपनी ये जिंदगी। क्या इतनी आसानी से हार मान लूँ? नहीं न! लोग सोचेंगे कि एक आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी लड़की भी अकेलेपन का बोझ नहीं संभाल सकी। पर ईश्वर तुम्हारे लोगों को कौन समझाए? मैं अपने अकेलेपन से उतना नहीं घबराती जितना तुम्हारी दुनिया की टटोलती हुई नज़रों से। जाने क्या जानना चाहते हैं मेरी जिंदगी के बारे में? पर मैं भी आपकी बेटी हूँ। इतनी आसानी से अपनी जिंदगी में किसी को सेंध नहीं लगाने दूँगी। वादा करती हूँ।


Friday 12 July 2019

अब नहीं आऊँगी


हे ईश्वर

आपने मेरे साथ ऐसे क्यूँ किया? कुछ भी कह लेते वो मैं सुन लेती। पर यही क्यूँ? गले पड़ी हो ऐसे जैसे कोई फांस होती है। इतने साल के रिश्ते का इतना मान भी नहीं रखा गया? तो क्या हमारे बीच जो भी था सब ज़बरदस्ती था? एकतरफा था? क्यूँ भगवान? सोच कर भी खुद से घिन आ रही है। मैं ऐसी लड़की हूँ जो किसी की मर्ज़ी की परवाह किए बिना खुद को उस पर थोप रही है? आपसे भी डर नहीं लगा उसको ऐसा बोलते हुए? क्यूँ बोलने दिया आपने उसे ऐसा?

क्यूँ करने दिया आपने उसे ऐसा? मानती हूँ मैंने भी बोला था उसे बुरा भला। पर जैसे कि वो हमेशा कहता है कुछ तो कारण होगा ऐसे कहने का। मेरे पास थी तो वजह इतना कड़वा बोलने की। मैंने अपनी पूरी जिंदगी जिसके नाम लिख दी है उसके पास मेरे लिए कुछ लम्हे भी नहीं। बार बार मुझसे यही कहता है तुम होती कौन हो?

मन तो किया बताऊँ उसे कि मैं वो हूँ जो अपनी हर चीज़ तुमको ऐसे दे देती है जैसे वो तुम्हारी ही तो है। मैं वो हूँ जिसने तुम्हारी खुशी और सफलता के लिए खुद को ऐसे झोंक दिया है जैसे तुम्हारी हर ज़िम्मेदारी मेरी है। मैं वो हूँ जिसने तुम्हारे परिवार की खुशियों की खातिर अपने दिल पर पत्थर रख लिया। मैं वो हूँ जिसे तुम्हारी हर सुख सुविधा का ख्याल रहता है। मैं वो हूँ जो तुम्हें वक़्त पर घर पहुंचा कर ही घर वापस जाती है। चाहे जितनी देर रात हो जाए मैंने कभी तुम्हें बीच रास्ते पर नहीं छोड़ा। मैं वो हूँ जिसे मिलने बुला कर तुम घंटों इंतज़ार करवाते हो और मेरे माथे पर एक शिकन तक नहीं आती। मैं वो हूँ जो तुम्हारे लिए किसी से भी टकरा सकती है। मैं वो हूँ जो हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में तुम्हारे लिए मन्नतें मांगती फिरती है। मैं वो हूँ जिसे तुम चाह कर भी भूल नहीं सकते। मैं वो हूँ जिसे याद करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। मैं वो हूँ जो तुम्हें गलत करने से रोकने के लिए खुद तुमसे भी लड़ जाती है। मैं वो हूँ जिससे तुम जितना दूर चाहे चले जाओ पर हमेशा तुम्हारे साथ ही रहेगी।

बहुत कुछ हूँ मैं तुम्हारी मानो चाहे न मानो। आज वो प्यार नहीं है तुम्हारे मन में मेरे लिए पर कभी था। मेरे लिए उतना ही काफी है। तुम कहते हो मैंने ही खुद से दूर किया है तुमको। पर इसकी वजह तुम खुद से पूछना कभी। अभी फिलहाल बस इतना ही आज के बाद मैं कभी तुम्हारे गले पड़ने नहीं आऊँगी

Tuesday 9 July 2019

नियति का दांव


हे ईश्वर

सबको सबकुछ नहीं मिलता ये बात कह कह कर न जाने कितने लोग खुद को समझा लेते हैं। किसी चीज़ के लिए अदम्य इच्छा होने पर भी उसे यह कह कर छोड़ देते हैं कि किस्मत में होगी तो मिल जाएगी। विवाह, जन्म और मरण को किस्मत का लिखा बताते हैं। ऐसे सारे लोगों को आप रिश्ते बनाने का हक़ ही क्यूँ देते हैं। क्यूँ नहीं बंद रखते आप इन सबको इनके अपने बनाए खोल में? ये तब ही बाहर निकाले जाएँ जब इनका समय आ जाए।

समाज के सामने हार माननी ही है तो फिर ऐसे रिश्ते बनाने का इन लोगों को क्या अधिकार है जिसे समाज स्वीकार नहीं करता। फिर ये कहते हैं मेरी तरफ से तुम आज़ाद हो! ऐसा लगता है जैसे कोई कह रहा हो अब नया ठिकाना ढूंढ लो। पर चिंता मत करना। वो भी मेरे जैसा कायर ही होगा। कायरता ही तो है। आप किसी के हमदर्द भी बनना चाहते हैं। उसके सुख, दुख और हर एक बात साझा भी करते हैं। उसका हौसला भी बढ़ाते हैं। उसके कमजोर क्षण में उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। जब वो आपकी तरफ हाथ बढ़ाता है आप थाम भी लेते हैं। फिर धीरे धीरे बदलाव दिखने लगते हैं। आप उसे ही समझाने लगते हो कि बुराई उसमें ही है। कमी उसके ही अंदर थी, गलती उसी की है।

अपने अकेलेपन से जूझ रहा कोई भी इंसान वैसे भी हारा हुआ ही होता है। पर आपका ऐसा कहना उसकी हार के दर्द को कई गुना बढ़ा देता है। क्यूँ करते हैं तुम्हारे लोग ऐसा भगवान? उनको भी तो इंतज़ार करना चाहिए उसका जिसे उनके लिए समाज ने चुना हो। उसी के हमदर्द बनो, उसी का सुख दुख साझा करो। उसी का हाथ थाम कर चलो।
किसी को सपने दिखा कर उससे उसके सपने छीन लेना तुम्हारी दुनिया का चलन है। फिर मैं ऐसी क्यूँ नहीं हूँ भगवान? बताओ न?

Thursday 4 July 2019

कबीर सिंह : प्रेम कहानी या पुरुषवाद का महिमामंडन (*contains Kabir Singh spoilers)


कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक नई कहानी की बहुत चर्चा सुनी। कुछ लोगों ने उसे एक गलत किरदार का महिमामंडन बताया तो कुछ उसे नारीवाद का विरोधी भी करार देने लगे। कहानी बेहद सादी और साधारण सी थी। प्रेम कहानी में परिवार के विरोध पर हम पहले भी बहुत कुछ देख चुके हैं। कहानी का नायक एक प्रतिष्ठित और कुशल सर्जन है। यानि वो ऐसा व्यक्ति है जो न सिर्फ काफी पढ़ा लिखा बल्कि सुलझा और संतुलित भी है। साथ ही वो किसी से बेइंतेहा प्रेम करता है। उस प्रेम के लिए वो उसे पूरे कॉलेज के सामने मेरी बंदी भी बोल देता है। लड़कों को उससे दूर रहने की चेतावनी भी देता है और उस पर उंगली उठाने वालों को सज़ा भी देता है। उससे अलग होकर वो शराब को अपना साथी बना लेता है पर खुद को बचाने के लिए झूठ का सहारा नहीं लेता। उसके ही शब्दों में ‘I am not a rebel without a cause’

वो लड़की पूरे कथानक में कुछ ही शब्द बोलती है। पर उसकी आँखों में कहीं भी कबीर के व्यवहार के लिए वितृष्णा या विरोध नहीं दिखता। वो चुपचाप कबीर के प्यार को स्वीकार कर लेती है। अपने परिवार के विरोध के बावजूद अपना रिश्ता बचाने की कोशिश करती है। एक अनचाहे रिश्ते को अस्वीकार करके अपना घर परिवार भी छोड़ देती है। उसके साथ जो भी होता है वो सहती है पर हार नहीं मानती। वो अपने आप में बेहद शांत लेकिन बेहद मज़बूत किरदार है। रहा कबीर तो वो कहीं से भी उसके व्यक्तित्व को दबाता नहीं दिखता। खासकर जब गुस्से में उस पर चिल्लाने के लिए नायिका उसे थप्पड़ मारती है, वो उग्र होने के बजाए अपनी गलती स्वीकार कर लेता है। एक और दृश्य में वो नायिका से कहता है ‘Talk to your father like you are your own woman. Talk with the same self-confidence with which you talk to me.’

वो उसे पढ़ाता भी है और कोई विषय न जानने पर चुपचाप क्लास से बाहर भी चला जाता है। वो कोई उन्मादी प्रेमी नहीं जो नायिका न मिले तो उसकी हत्या कर दे। वो चुपचाप उसके रास्ते से हट कर उसे मौका देता है खुद का निर्णय लेने का। ऐसे व्यक्ति के प्रेम में उत्कंठा है, उन्माद नहीं। कबीर नायक है, खलनायक नहीं।


Wednesday 3 July 2019

परीक्षा की घड़ी


किसी को गलत रास्ता पकड़ने से रोकना इतना आसान भी नहीं है भगवान। आज उसने मेरे सब्र का एक इम्तहान और लिया। आज फिर वो उसको मिलने आया, मेरी आँखों के सामने आया, मुझे बता कर। पर बात आज यहाँ खत्म नहीं हुई। मैंने पहली बार उस औरत का रास्ता काटा है। अब तक तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मैंने कभी उसे मौका ही नहीं दिया मुझ पर उंगली उठाने का। पर आज उसके खिलाफ आवाज़ उठा कर मैंने अपना पैर कुल्हाड़ी पर दे मारा है। पता नहीं मेरा क्या अंजाम होगा। पर आज पहली बार मैंने सच बोलने से उपजी शांति को दिल से महसूस किया। मैं एक बार फिर कटघरे में खड़ी की जाऊँगी। एक बार फिर लोग मुझसे सवाल करेंगे। पर मेरी इतनी ही अरज है ईश्वर मैं जब उन सब सवालों का जवाब दूँगी तब आप मुझे इन लोगों से नज़रें मिलाने की हिम्मत देना। ईश्वर मेरी आवाज़ को खरे सिक्के सी खनक देना। मुझे हिम्मत देना कि मैं बिना नतीजे की परवाह किए सच कह सकूँ। 

आज वो मिले तो बेहद शांत थे। पर मैं जानती हूँ ये सिर्फ तूफान से पहले की शांति है। न जाने क्या होगा जब हम सब आमने सामने होंगे। ईश्वर इतना सब होने के बाद भी डर सिर्फ एक ही है।

मुझे डर लग रहा है भगवान पर एक अजीब सा सुकून भी है। सच का रास्ता वैसे भी बहुत से काँटों से भरा होता है। बस इतनी शांति है कि मैंने सच की टेक नहीं छोड़ी। मुश्किल है ईश्वर पर आप साथ हैं तो ये समय भी पार हो जाएगा। मुझे उनकी आवाज़ में धोखा खाए इंसान का दर्द महसूस होता है। पर गलत करके भी वो मुझे गलत ठहराते हैं। इस बात का मलाल ज़्यादा है कि आज भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। मुझसे कहते हैं तुम सब कुछ खो दोगी। अपना ये मान प्रतिष्ठा, ये नौकरी और मुझे भी। ईश्वर मेरे लिए आपका न्याय ही सर्वोपरि है। जो आप ठीक समझेंगे वही होगा मेरे जीवन में।

किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...