Wednesday 5 February 2020

वापस आ जाओ....


हे ईश्वर
वो सारे दिन वापस आ गए हैं। वो फिर से नाराज़ हैं और इनको मनाना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है। मैं अकेली तो पहले भी थी पर वो मेरे साथ थे। दूर होकर भी हमेशा मेरे साथ थे। अब न जाने क्यूँ ऐसा लगता है अब मैं अकेली हूँ। उनके बिना एक दिन भी काटना कितना मुश्किल है। आपने मेरे साथ ऐसे क्यूँ किया? हम जब भी सोचते हैं हमें अकेले जिंदगी काटनी है आप हमारी जिंदगी में किसी को भेज देते हैं। हम खुशी से उनको स्वीकार कर लेते हैं। हमें पता है कोई भी लड़का कभी हमें समझ नहीं पाएगा। समझ भी गया तो आपका समाज उसे हमारे साथ रहने नहीं देगा। हर कोई सिर्फ कुछ दिन या कुछ साल का ही साथ है।

फिर किसलिए शादी का नाटक रचा लूँ? वो भी तो इसी समाज का हिस्सा होगा। कल को मेरे तौर तरीके, रंग ढंग (!) या मेरा व्यवहार उसे अच्छा नहीं लगा तो कहाँ जाऊँगी? बाहर की दुनिया में जो गंदगी है वही मेरे घर में होगी। हो सकता है सब अच्छा हो। पर विष खा कर कौन देखता है कि जहरीला है या नहीं।

मुझे जहर की परीक्षा करके नहीं देखनी। चाहे तो आपकी दुनिया मुझे अंगूर खट्टे हैं कहती रहे। पर ये अंगूर मुझे खाने ही नहीं।

जानती हूँ एक दिन उनके मन की कड़वाहट खत्म होगी। एक दिन वो मुझ पर भरोसा भी करेंगे। एक दिन मेरे साथ भी होंगे। पर वो दिन आते आते मेरी आत्मा कुछ इस कदर छलनी हो चुकी होगी कि मेरे अंदर किसी खुशी के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। मेरे जीने की इच्छा बहुत पहले ही खत्म हो चुकी है। मेरी ज़रूरत भी किसी को नहीं है। मैं बस इसलिए जिए जा रही हूँ क्यूंकि जिंदगी हर किसी को नहीं मिलती। इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो सिर्फ एक दिन या एक साल और जीना चाहते हैं। ऐसी भी आखें हैं जो आपकी इस खूबसूरत दुनिया को नहीं देख पाती। ऐसे भी हाथ हैं जो आपकी इस खूबसूरत दुनिया को नहीं छू सकते। फिर मेरे तो सब कुछ सलामत है। अपनी जिंदगी को एक दिशा देना मेरे हाथ में है। वो दिशा मैं उसको ज़रूर दूँगी।

किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...