Saturday 23 November 2019

अग्निकुंड II



हे ईश्वर
मेरे जन्मदिन का तोहफा तो बहुत शानदार चुना है आपने। मेरे घरवाले नाराज़ हैं, वो भी! पिछले कुछ दिनों से हम दोनों रोज़ काफी वक़्त साथ बिताते हैं, हँसते हैं, अच्छी बातें करते हैं। पर उन्होने जो भी सोचा था उसकी काली छाया हमारी इस खुशी पर मंडरा रही है। आज आपसे मिलने भी नहीं आ पाई। उन्होने कहा कि ईश्वर हर जगह है, चाहे जहां मिलो उनसे। पर सच कहूँ बड़ा अधूरा सा लगा था आज आपसे नहीं मिल पाने पर। क्यूँ नाराज़ हो इतना आप?

मैं एक बार फिर अपनी जिंदगी से हार रही हूँ। शुरू तो किया था इतने अच्छे से। क्यूँ बिगड़ गया मेरा दिन? आप मुझसे इतने नाराज़ क्यूँ हैं? बताइये? सब कहते हैं कि आप ही किसी की जिंदगी में कोई भी चीज़ लेके आते हैं, उसे सीखने का मौका देने के लिए, उसे बेहतर इंसान बनाने के लिए। मैं और कितनी बेहतर बनूँगी बताइये? मुझे अब किसी से कोई खुशी की उम्मीद नहीं। किसी तरफ से नहीं। मैं खुद को खुश न रखती होती, इतनी हिम्मत न रखती होती तो बहुत पहले हार मान लेती।

पर मैं आपसे वादा करती हूँ, मैं हार नहीं मानूँगी। खुशी जाएगी कहाँ, सुकून कितना दूर भागेगा मुझसे? मैं खोज लूँगी सुकून, ढूंढ लूँगी अपनी खुशी। मैंने बहुत मेहनत से बनाई थी अपनी जिंदगी। आपने मुझे इतना कुछ दिया है। खुशी भी मिल ही जाएगी। नहीं भी मिली तो क्या?

मैं आज आपसे कुछ माँगूँ? मुझे अपने पास आने दीजिये, प्लीज़। मैं आपसे मिलना चाहती हूँ। आज के बाद कभी भी, किसी के भी लिए मैं अपना निर्णय नहीं बदलूँगी। मुझे सुबह ही आपसे मिल लेना चाहिए था। है न? अब से मिल लिया करूंगी भगवान। 

थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी मुझे तभी सब ठीक होगा। मेरा सफर तो बड़ा लंबा है भगवान। बस एक चीज़ मत करना। मुझे मजबूरी में कोई भी निर्णय लेने को बाध्य मत करना। मजबूरी कायर लोगों के लिए होती है और मैं कायर नहीं हूँ। मैं अपने अकेलेपन को भरपूर जियूँगी, खुश रहूँगी। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो मैं हमेशा अपना सिर ऊंचा रखूंगी और पाँव ज़मीन पर।

Thursday 21 November 2019

मुंह की बात सुने हर कोई...


हे ईश्वर
आज मन बहुत उदास है... सुबह से। मेरा जन्मदिन आने वाला है और मेरी कोई योजना नहीं है। कभी होती भी नहीं थी पर आज पता नहीं क्यूं मन बहुत उदास है। कभी कभी लगता है मेरा अपना कोई है ही नहीं। न किसी की आँखों में मेरे लिए कोई चाह है न ही किसी के पास मेरे लिए वक़्त। क्या इसी खालीपन से बचने के लिए बार बार मुझे शादी करने की सलाह देते हैं सब? लेकिन भगवान इतने सारे रिश्तों से घिरे होकर भी मैं अकेली ही हूँ! इसके आगे आप चाहे रिश्तों की संख्या जितनी भी बढ़ा दो, मैं हमेशा इतनी ही अकेली रहूँगी जितनी आज हूँ।

मेरा कोई अपना नहीं है, ईश्वर। जिनके बीच मैं पैदा हुई, पली बढ़ी वो भी मेरे नहीं है। कहने को है मेरा एक भरा पूरा परिवार। लेकिन इतने बड़े परिवार में मुझे समझने वाला कोई भी नहीं। आजकल एक बार फिर तरह तरह के इल्जामों से छलनी कर देते हैं ये लोग मुझे। मैं दुनिया भर से लड़ सकती हूँ पर मेरे अपने खुद मुझे हारते हुए देखना चाहते हैं।

मैं बचपन से ही अकेली थी भगवान। इस बात का एहसास मुझे हर साल होता है इसी बीच में। जब मेरा जन्मदिन आता है। इस बार भी मेरे लिए कोई फोन नहीं आएगा, कोई तोहफा मेरा दरवाजा नहीं खटखटाएगा। मेरे घरवाले आजकल मेरे खिलाफ मोर्चा सा खोले बैठे हैं। पर एक बात कहूँ? एक बच्चे को दूसरे की छाया में ही बड़ा करना है तो आपको कोई अधिकार नहीं दूसरा बच्चा पैदा करने का।

दोनों अलग होते हैं, दो अलग इंसान। उसके रंग रूप, शौक, रुचियाँ, निर्णय और चुनाव सब अलग होते हैं। फिर भी अपने बड़े बच्चे से लगातार छोटे की तुलना करना कहाँ का इंसाफ है। मैं किसी की फोटोकॉपी नहीं हूँ, ईश्वर। एक भरी पूरी अलग इंसान हूँ। मेरे शौक अलग हैं मेरे निर्णय अलग हैं। उसमें और मुझमें उतना ही अंतर है जितना आकाश और पाताल में होता है। फिर भी आकाश तक नहीं पहुँच पाने वाले अपनी ही आग में झुलसते इस पाताल को नर्क बनाने पर तुले हैं। कैसे समझाऊँ इन लोगों को?

ये भी तो नहीं होता कि अगर वो मुझे नहीं समझ पा रहे तो एक सुरक्षित सम्मानजनक दूरी बना लें। पर नहीं! इन्हें मेरे नजदीक शायद इसलिए रहना है कि मुझे छलनी करते रह सकें। लगातार मुझे ये एहसास दिला सकें कि मैं कितनी गलत हूँ। गलत या सही मुझे आपने बनाया है। मैं अपने आप को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करती हूँ। मेरे निर्णय, मेरे शौक, मेरी रुचियों और मेरी हर कमी के साथ। मुझे किसी तोहफे, किसी फोन, किसी भी सहारे की ज़रूरत नहीं। थोड़ा सा टूटी ज़रूर हूँ पर संभल जाऊँगी, वादा करती हूँ!

जानती हूँ आज थोड़ा मुश्किल है, पर आने वाले कल में कोई न कोई खुशी, कोई न कोई उम्मीद मेरा इंतज़ार कर रही है। है न?

Saturday 16 November 2019

खोया खोया चाँद


हे ईश्वर

आपसे क्षमा मांगू या सोच लूँ कि मैंने जो किया सही किया। दिल की पहली आवाज़ कभी गलत नहीं होती। जिस दिन हमारे बीच की कड़वाहट भुला कर मैंने उस औरत की चौखट पर कदम रखा था, उस दिन ही लग गया था कि मैंने कुछ गलत किया है। गलत तो था। वहाँ जो कुछ भी हुआ उसके बाद मुझे नहीं जाना चाहिए था। उस दिन भी तो कितना तमाशा हुआ था। फिर भी मैंने यही सोचा कि जो हो गया सो हो गया। अब एक नई शुरुआत करती हूँ। गलत सोचा भगवान।

जिस भी इंसान को मैं अपने दिल और अपनी जिंदगी से निकाल देती हूँ, उसकी तरफ मुझे पलट कर कभी नहीं देखना चाहिए। मुझे नहीं जाना चाहिए था। उस औरत के लिए सारी दुनिया कदमों में पड़ी है, मैं नहीं भी जाती तो शायद फर्क नहीं पड़ता। पर फिर भी मैंने उनकी बात का मान रखा। उस मान रखने के एवज़ में आज उन्होने मुझे कितना अच्छा सिला दिया है। कहते हैं तुम्हारी कोई इज्ज़त नहीं, मान सम्मान नहीं। मैं होता तुम्हारी जगह तो कभी नहीं जाता।

अब जब मेरे मन में उसके लिए वो कड़वाहट है ही नहीं, तो फिर झूठे अहम का नाटक क्यूँ करूँ? पर नहीं। वो तो चाहते हैं कि मैं अपने उसी दायरे में लौट जाऊँ, जहां मेरे अलावा कोई है ही नहीं। मैंने सच ही कहा था, ज़रा सी सफलता मिलते ही वो मुझे ऐसे भूल जाएंगे जैसे मैं कभी थी ही नहीं। सच ही सोचा था मैंने कि आगे जैसे ही कुछ और आकर्षक अवसर मिले, वैसे ही खत्म हो जाएगा मेरे किए हुए की कोई भी अहमियत।

आपका शुक्र अदा करती हूँ कि अपनी रोज़ी रोटी के लिए मैं उन पर निर्भर नहीं। कभी हो भी नहीं सकती। किसी पर भी। मुझे आपकी मर्द जात पर इतना विश्वास कभी नहीं होगा। होना भी नहीं चाहिए। लोगों को लगता है कि मेरी जिंदगी में पैसा ही सब कुछ है। पर सच तो ये है कि पैसे से ज़्यादा मैंने हमेशा अपने रिश्तों को अहमियत दी है।

पर अब से नहीं दिया करूंगी। मैंने उनको इतना प्यार दिया पर वो मेरे प्यार को मेरी कमजोरी समझे बैठे हैं। वैसे भी मैंने तो यही तय किया था न कि जिस दिन वो एक ऐसे मक़ाम पर पहुंचे जहां से आगे उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं रही, तो मैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दूँगी। मेरी जिंदगी में उनकी ज़रूरत तो पानी जैसे है, कभी खत्म नहीं होने वाली। पर कितनी भी प्यास लगी हो मैं जूते में दिया हुआ तो पी नहीं सकती। अगर ये प्यास ही मेरा नसीब है तो यही सही। कम से कम कोई मेरे आत्म समान को तो चुनौती नहीं देगा। है न?

Tuesday 12 November 2019

टुकड़े टुकड़े इश्क़


हे ईश्वर

उनको वापस लाने के लिए शुक्रिया। पता नहीं क्या है उनके साथ मेरा! कभी सोचती हूँ कि मैं खुद को और मजबूत बनाऊँगी, उनके बिना रहना सीखूंगी। यही सोच कर कहा था कि अगर आप नहीं चाहते तो कभी नहीं करूंगी आपसे बात। उनको अंदाज़ा भी नहीं मैं किस कदर दिल पर पत्थर रख कर जीती हूँ। जिस इंसान के बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकती वो मेरे साथ एक पल भी बिताना नहीं चाहता। फिर भी मैं अपनी जिंदगी ऐसे जिए जा रही हूँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हँसती हूँ, बोलती हूँ, काम भी करती हूँ। पर किसी भी सफलता का कोई मोल ही नहीं रह गया है जैसे।

आज जब उनकी आवाज़ सुनी तो लगा मैं कितनी खो जाती हूँ उनके बिना। मैं बहुत कुछ चाहती हूँ अपनी जिंदगी से पर मेरी हर ख़्वाहिश, मेरा हर अरमान अधूरा ही लगता है अगर वो साथ न हो। मैं सब कर सकती हूँ पर उन्हें मेरी तरफ से निराश होते नहीं देख सकती।

आज किसी ने उनको थोड़े से पैसे क्या दे दिए मेरा सारा किया धरा उनको अकारथ ही लग रहा है। किसी के रुपयों की चकाचौंध के आगे धूप में जली हुई मेरी उँगलियों की कोई कीमत नहीं। कहते हैं तुमने किया ही क्या है? मैंने किया ही क्या है? उसकी तरह मैंने अपनी नौकरी तो नहीं छोड़ी। उसकी तरह झोली भर रुपए तो नहीं दिए मैंने। मैंने तो बस हर कदम पर उनका साथ दिया है। कभी पैसे दिए, कभी समय, कभी श्रम, कभी मौके। पर नहीं। वो सब काफी नहीं है।

मैं आज अपनी जिंदगी में जिस मुकाम पर हूँ, मैं खुश हूँ। पर उनको मेरी सफलता से कोई सरोकार नहीं। अगर आज मैं उनके लिए ये सब कुछ छोड़ भी दूँ तो किस भरोसे से? वो क्या मेरा भविष्य संवार पाएंगे? अपनी ही कंपनी में एक मामूली कर्मचारी बन के क्या मैं रह पाऊँगी? सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिस तरह ये मुझे बार बार अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने पर उतारू हो जाते हैं, ऐसे में अपनी रोज़ी रोटी के लिए मैं इन पर कैसे निर्भर रह सकती हूँ? वैसे देखा जाए तो अब इन्हें मेरी कोई ज़रूरत भी तो नहीं। आ गए हैं न उनको झोली भर रुपए देकर उनकी मदद करने वाले। उन्हें मेरी काबिलियत पर विश्वास भी तो नहीं। वो कहते हैं कि तुम्हें काम करने का सलीका ही नहीं।

मेरे चारों तरफ फैली मेरी सफलता की कहानियों पर खुद मुझे भी अब विश्वास नहीं रहा। कितना भी अच्छा काम कर लूँ कानों में बस वही गूँजता है तुम इस सफलता के लायक नहीं हो। ये सारी तारीफ तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हें भीख में मिली है ये नौकरी। मैं दुनिया से लड़ सकती हूँ भगवान और उसे हरा भी सकती हूँ। पर मेरे बारे में उनकी इस राय के चलते मैं बार बार हार रही हूँ अपने ही आप से। काश उनकी जगह कोई और होता तो उसे मुंह तोड़ जवाब देती। पर उनको क्या कहूँ और कैसे कहूँ। उनके लिए मेरी कोई भी सफलता तब तक बेकार है जब तक उससे उन्हें कोई लाभ न हो। इसलिए अब मैं भी उनके लिए बेकार की हूँ। है न?


Thursday 7 November 2019

तुम ही हो...


हे ईश्वर

मुझे माफ कर दो! किस मुंह से कहूँ आज मैं। एक मन है जो कहता है मेरी गलती नहीं है। एक है जिसे लगता है मैं थोड़ा और प्रयास कर सकती थी। इतना नाराज़ हो गए वो मुझसे कि बीच रास्ते में मुझे छोड़ कर चल दिए। बिना ये सोचे कि मैं वहाँ से कहाँ जाऊँगी। एक पल के लिए नज़र हटी और वो वहाँ नहीं थे। कैसे कहूँ मुझे कैसा लगा?

वो कहते हैं तुम ईश्वर से दुआ करो कि कभी मेरे नीचे तुम्हें काम न करना पड़े। मैं तो आपसे यही दुआ करती हूँ कि मुझे हमेशा उनके साथ काम करने का मौका मिले। आज वो मुझे गलत समझ रहे हैं ईश्वर क्यूंकि मेरी परिस्थितियाँ मेरा साथ नहीं दे रहीं। कारण चाहे जो भी हो, मैं सिर्फ उनके सुख और आराम के बारे में सोचती हूँ। उनका सुकून ही चाहती हूँ। उनकी सफलता की दुआ करती हूँ।

इतने पर भी आज मैं उनकी परेशानी की वजह बन गई। क्या करूँ मैं कि उनको सुकून मिले। क्या करूँ कि उनके रास्ते की सारी मुसीबतें दूर हो जाएँ। एक से एक अवसर उन्हें मिलें। यही चाहती हूँ मैं। जिस इंसान की आवाज़ सुने बिना मैं अपने दिन की कल्पना भी नहीं कर सकती आज उसी ने कह दिया मैं तुमसे बात करना ही नहीं चाहता इसलिए उसे दिखाने के लिए ही सही मैंने भी अपने आप को उससे थोड़ा दूर कर लिया है।

फिर भी मन का एक छोटा सा कोना है जिसमें बहुत से सवाल हैं। एक कोना जिसमें मेरे सहमे हुए अरमान हैं जो कहते हैं हम पूरे होने की कब तक राह देखें? कुछ सपने हैं जो टूटने के लिए ही देखे थे शायद। कुछ वादे हैं जो उन्होने तोड़ दिए।

ईश्वर मुझे माफ कर दो। मेरे प्रयास ईमानदार सही पर कम ज़रूर थे। मेरे प्रयासों में जो भी कमी है उसे दूर कर दो भगवान। उनके लिए जो भी कुछ सोचा है उसे पूरा कर दो। मेरी कमियों को दूर कर दो। फिर कभी ऐसा कोई मौका मत दो कि मेरे कारण उनको कष्ट पहुंचे। मैं खुद कुछ भी सह सकती हूँ पर उनकी नज़र में अपने लिए नफरत नहीं देख सकती। उस नफरत को प्यार में बदल दो भगवान।

किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...