हे ईश्वर
आपसे क्षमा मांगू या सोच
लूँ कि मैंने जो किया सही किया। दिल की पहली आवाज़ कभी गलत नहीं होती। जिस दिन हमारे
बीच की कड़वाहट भुला कर मैंने उस औरत की चौखट पर कदम रखा था, उस दिन ही
लग गया था कि मैंने कुछ गलत किया है। गलत तो था। वहाँ जो कुछ भी हुआ उसके बाद मुझे
नहीं जाना चाहिए था। उस दिन भी तो कितना तमाशा हुआ था। फिर भी मैंने यही सोचा कि जो
हो गया सो हो गया। अब एक नई शुरुआत करती हूँ। गलत सोचा भगवान।
जिस भी इंसान को मैं अपने
दिल और अपनी जिंदगी से निकाल देती हूँ, उसकी तरफ मुझे पलट कर कभी नहीं देखना चाहिए।
मुझे नहीं जाना चाहिए था। उस औरत के लिए सारी दुनिया कदमों में पड़ी है, मैं नहीं भी जाती तो शायद फर्क नहीं पड़ता। पर फिर भी मैंने उनकी बात का मान
रखा। उस मान रखने के एवज़ में आज उन्होने मुझे कितना अच्छा सिला दिया है। कहते हैं तुम्हारी
कोई इज्ज़त नहीं, मान सम्मान नहीं। मैं होता तुम्हारी जगह तो कभी
नहीं जाता।
अब जब मेरे मन में उसके लिए
वो कड़वाहट है ही नहीं, तो फिर झूठे अहम का नाटक क्यूँ करूँ? पर
नहीं। वो तो चाहते हैं कि मैं अपने उसी दायरे में लौट जाऊँ, जहां
मेरे अलावा कोई है ही नहीं। मैंने सच ही कहा था, ज़रा सी सफलता
मिलते ही वो मुझे ऐसे भूल जाएंगे जैसे मैं कभी थी ही नहीं। सच ही सोचा था मैंने कि
आगे जैसे ही कुछ और आकर्षक अवसर मिले, वैसे ही खत्म हो जाएगा
मेरे किए हुए की कोई भी अहमियत।
आपका शुक्र अदा करती हूँ कि अपनी रोज़ी रोटी के लिए
मैं उन पर निर्भर नहीं। कभी हो भी नहीं सकती। किसी पर भी। मुझे आपकी मर्द जात पर इतना
विश्वास कभी नहीं होगा। होना भी नहीं चाहिए। लोगों को लगता है कि मेरी जिंदगी में पैसा
ही सब कुछ है। पर सच तो ये है कि पैसे से ज़्यादा मैंने हमेशा अपने रिश्तों को अहमियत
दी है।
पर अब से नहीं दिया करूंगी।
मैंने उनको इतना प्यार दिया पर वो मेरे प्यार को मेरी कमजोरी समझे बैठे हैं। वैसे भी
मैंने तो यही तय किया था न कि जिस दिन वो एक ऐसे मक़ाम पर पहुंचे जहां से आगे उन्हें
मेरी ज़रूरत नहीं रही, तो मैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दूँगी। मेरी जिंदगी में उनकी ज़रूरत
तो पानी जैसे है, कभी खत्म नहीं होने वाली। पर कितनी भी प्यास
लगी हो मैं जूते में दिया हुआ तो पी नहीं सकती। अगर ये प्यास ही मेरा नसीब है तो यही
सही। कम से कम कोई मेरे आत्म समान को तो चुनौती नहीं देगा। है न?
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