हे ईश्वर
उनको वापस लाने के लिए
शुक्रिया। पता नहीं क्या है उनके साथ मेरा! कभी सोचती हूँ कि मैं खुद को और मजबूत
बनाऊँगी, उनके बिना रहना सीखूंगी। यही सोच कर कहा था कि अगर आप नहीं चाहते तो कभी
नहीं करूंगी आपसे बात। उनको अंदाज़ा भी नहीं मैं किस कदर दिल पर पत्थर रख कर जीती
हूँ। जिस इंसान के बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकती वो मेरे साथ एक पल भी बिताना
नहीं चाहता। फिर भी मैं अपनी जिंदगी ऐसे जिए जा रही हूँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हँसती
हूँ, बोलती हूँ, काम भी करती हूँ। पर किसी
भी सफलता का कोई मोल ही नहीं रह गया है जैसे।
आज जब उनकी आवाज़ सुनी तो
लगा मैं कितनी खो जाती हूँ उनके बिना। मैं बहुत कुछ चाहती हूँ अपनी जिंदगी से पर मेरी
हर ख़्वाहिश, मेरा हर अरमान अधूरा ही लगता है अगर वो साथ न हो। मैं सब कर सकती
हूँ पर उन्हें मेरी तरफ से निराश होते नहीं देख सकती।
आज किसी ने उनको थोड़े से
पैसे क्या दे दिए मेरा सारा किया धरा उनको अकारथ ही लग रहा है। किसी के रुपयों की चकाचौंध
के आगे धूप में जली हुई मेरी उँगलियों की कोई कीमत नहीं। कहते हैं तुमने किया ही क्या
है? मैंने किया ही क्या है? उसकी तरह मैंने अपनी नौकरी तो
नहीं छोड़ी। उसकी तरह झोली भर रुपए तो नहीं दिए मैंने। मैंने तो बस हर कदम पर उनका साथ
दिया है। कभी पैसे दिए, कभी समय, कभी श्रम, कभी मौके। पर नहीं। वो सब काफी नहीं है।
मैं आज अपनी जिंदगी में जिस
मुकाम पर हूँ, मैं खुश हूँ। पर उनको मेरी सफलता से कोई सरोकार नहीं। अगर आज मैं
उनके लिए ये सब कुछ छोड़ भी दूँ तो किस भरोसे से? वो क्या मेरा
भविष्य संवार पाएंगे? अपनी ही कंपनी में एक मामूली कर्मचारी बन
के क्या मैं रह पाऊँगी? सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिस तरह ये
मुझे बार बार अपनी जिंदगी से निकाल फेंकने पर उतारू हो जाते हैं, ऐसे में अपनी रोज़ी रोटी के लिए मैं इन पर कैसे निर्भर रह सकती हूँ? वैसे देखा जाए तो अब इन्हें मेरी कोई ज़रूरत भी तो नहीं। आ गए हैं न उनको झोली
भर रुपए देकर उनकी मदद करने वाले। उन्हें मेरी काबिलियत पर विश्वास भी तो नहीं। वो
कहते हैं कि तुम्हें काम करने का सलीका ही नहीं।
मेरे चारों तरफ फैली मेरी
सफलता की कहानियों पर खुद मुझे भी अब विश्वास नहीं रहा। कितना भी अच्छा काम कर लूँ
कानों में बस वही गूँजता है ‘तुम इस सफलता के लायक नहीं हो। ये सारी तारीफ
तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हें भीख में मिली है ये नौकरी’। मैं
दुनिया से लड़ सकती हूँ भगवान और उसे हरा भी सकती हूँ। पर मेरे बारे में उनकी इस राय
के चलते मैं बार बार हार रही हूँ अपने ही आप से। काश उनकी जगह कोई और होता तो उसे मुंह
तोड़ जवाब देती। पर उनको क्या कहूँ और कैसे कहूँ। उनके लिए मेरी कोई भी सफलता तब तक
बेकार है जब तक उससे उन्हें कोई लाभ न हो। इसलिए अब मैं भी उनके लिए बेकार की हूँ।
है न?
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