मेरे ईश्वर
अपमान का एक नया घूंट आज
फिर ये मुझे पिलाने आ गए। एक बार फिर मेरी प्रतिभा,निष्ठा, विश्वास,योग्यता सब पर सवाल उठा दिया। कैसे कैसे
विशेषण है न मेरे लिए – काहिल, कुटिल,
झूठी और आज विभीषण। उनके अनुसार मैं इनका
वो अपना हूँ जो इनका ही गला काटने को तत्पर है। अलसुबह से देर रात तक बिना रुके
काम करने वाली मैं इनके लिए बेकार हूँ। सिर्फ इसलिए कि मैंने इनके तय किए हुए समय
के अनुसार इनको लाभ नहीं पहुंचाया। इनकी हर बात बिना शर्त मान लेने वाली मैं आज
इनकी रखी शर्तों के बोझ तले दबती जा रही। कितना ही कर लूँ कुछ न कुछ रह ही जाता
है। अभी कल ही तो इतने प्यार से बात कर रहे थे। आज ज़रा सी मुसीबत क्या आई, वो सारा प्यार हवा हो गया।
ये सिलसिला अब ज़रा
पुराना हो चला है भगवान। ये मुझे कोसते हैं, गलीज से गलीज बातें बोलते हैं, मुझे दुख होता है। कभी बाद में ये माफी मांगते हैं,
कभी मेरा दोष बता के मामला रफा दफा हो जाता है। अभी कुछ दिन पहले तो कह रहे थे तुम
मेरे लिए कितना सोचती हो, कितना करती हो। सच तो है। मैं तो
वो थी जो पड़ी रहती थी दफ्तर के एक कोने में। दीन दुनिया से अलग चुप चाप अपने में
डूबी हुई। फिर इनके सारे संघर्ष मैंने अपना लिए। बीड़ा उठाया कुछ करने का और फिर
मैंने अपने ही सुकून को खुद अपने ही हाथों से आग लगा ली। कितना भी कर लूँ, कुछ न कुछ रह ही जाता है। फिर उनके सारे ताने,
उलाहने और किसी न किसी का नाम लेके मेरी योग्यता, शिष्टता, संस्कार और शिक्षा दीक्षा पर सवाल।
दुनिया के लिए हूँ मैं
एक मेहनतकश, प्रतिभाशाली इंसान। उनके लिए तो किस्मत की धनी हूँ बस। मेरी
योग्यता, मेरे संघर्ष और आज की मेरी हर सफलता उनकी नज़र में
नगण्य है। क्या फर्क पड़ता है उन्हें अगर मैं बेहद नपे तुले शब्द बोलती हूँ। क्या
फर्क पड़ता है अगर मेरे वक्तव्य प्रभावशाली हैं, मेरी आवाज़
में कशिश है, मेरा व्यवहार सौम्य है। ये सब कुछ उनकी नज़र में
तुच्छ है, बेकार है।
मैंने हमेशा इनके ही
सुकून के लिए, सुख चैन के लिए सोचा। आप जानते हैं न?
तो बताओ क्यूँ बिछा रखे हैं इतने कांटे मेरे जीवन में? क्यूँ
ईश्वर? कैसे पार करूँ ये नागफनी का जंगल? बोलो न!
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