Tuesday, 24 September 2019

तुम्हारी बददुआ


हे ईश्वर
एक चाणक्य हुआ करते थे जिनके अपमान ने एक पूरे साम्राज्य को धूल में मिला दिया। एक वो हैं जो आज मुझे बर्बाद करने की धमकी दे रहे हैं। आज का दिन जब मैं आपके पास दुआ करने आई थी उस दिन ये मुझे श्राप दे रहे हैं। मुझे अपने कानों पर और अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हो रहा। ईश्वर मैंने सिर्फ प्यार किया था। उस प्यार की इतनी बड़ी सज़ा आप मुझे क्यूँ दे रहे हैं? कुछ भी तो नहीं मांगा था मैंने आपसे? जो गलती मैंने की ही नहीं उसके लिए क्यूँ वो मुझे सज़ा देने पर उतर आए हैं? बोलो भगवान? आपको मुझ पर ज़रा भी दया नहीं आती न?

मैंने भी अब पक्का इरादा कर लिया है। मैं कुछ भी प्रतिवाद नहीं करूंगी और कोई सफाई भी नहीं दूँगी। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसकी मुझे सफाई देनी पड़े। मेरे सही गलत का फैसला करने का हक़ केवल आपका ही है। वैसे भी वो मुझे जितना दर्द देते रहे हैं वो कौन सा बददुआ से कम है। बस एक ही बात का मुझे दुख होता है। मैंने जिस इंसान के लिए फूल ही फूल बिछाने चाहे हैं वो मेरे रास्ते में कांटे बिखेरना चाहता है। कोई और करता ये सब तो समझती। पर वो तो मेरे अपने ही हैं। आज भले ही वो मुझे अपने रास्ते का पत्थर समझें पर असल में मैं उनके रास्ते की हर रुकावट ही हटाती आई हूँ और आगे भी हटाती रहूँगी।

बस विश्वास नहीं हो रहा कि जिसे मैं इतना प्यार करती हूँ वो मुझे बर्बाद देखना चाहता है, रोता हुआ देखना चाहता है। भगवान, इन्हें तो मेरे आँसू पोंछने चाहिए थे। मेरा साथ देना चाहिए, मेरे लिए लड़ना चाहिए। वही इंसान आज मेरे आमने सामने खड़ा है। क्यूँ?

बचपन से आज तक न जाने कितनों की बददुआ लेती आई हूँ। पहले अपने अभिभावकों की क्यूंकि मैंने किसी से प्यार किया था और उन पर विश्वास करके ये बात मैंने उनको बता दी। आज भी गूँजती है कानों में उनकी बात "भटकोगी जिंदगी भर। कभी इसके साथ कभी उसके साथ।" वही भटकन मेरी नीयति बन गई। मैं सचमुच प्यार की तलाश में न जाने कहाँ कहाँ भटकती फिरी। फिर ली थी उसकी बददुआ जिसने मेरा हाथ मांगा था। उसके हाथ में मेरा हाथ देने की हर तैयारी धरी रह गई थी जब मैंने उसका साथ देने से ही इंकार कर दिया। उसने भी तो कहा था "सब कुछ होगा तुम्हारे पास सिर्फ प्यार नहीं होगा।" तब से लेके आज तक मैं सिर्फ भटकती जा रही हूँ। सच कहूँ तो मैं तो सिर्फ अपने ही रास्ते चलती हूँ। लोग हैं कि मेरा रास्ता रोकते भी हैं, साथ भी चलना चाहते हैं और फिर छोड़ के भी खुद ही जाना चाहते हैं। वापस भी आ जाते हैं कभी कभी। पर मैं आगे बढ़ने के बाद कभी पीछे मुड़ने में विश्वास ही नहीं रखती।

मुझे लगा था इनके साथ शायद मेरी भटकन पर विराम लग जाएगा। चलते चलते थक सी गई थी। सोचा था कि शायद अब मुझे आराम आएगा। पर मेरी किस्मत में आराम आपने कहाँ लिखा है? वो कहते हैं मैं वो नहीं हूँ जिससे वो मिले थे। पर मैं आज भी वही हूँ। अगर आपकी इतनी बड़ी दुनिया में उनके जैसा इंसान मुझे नहीं पहचान सका तो फिर ऐसा कोई नहीं जो कभी मुझे सच में जान सकेगा। आज आपने मेरा प्यार पर से विश्वास ही उठा दिया ईश्वर। अच्छा किया। आप जो भी करते हैं अच्छा ही करते हैं। मुझे विश्वास है।

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