हे ईश्वर
मेरी और कितनी परीक्षा
लेना चाहते हैं आप? बताइये? पूछ पूछ कर हार गई पर आज
उन्होने कोई जवाब नहीं दिया। कहते हैं कहने को कुछ नहीं बचा। ये किस किस्म का मज़ाक
करते हैं कि मेरे होंठो पर हंसी की जगह आँखों में आँसू छलक जाते हैं! ‘मैं और जीना नहीं चाहती’ कह कर आपके दिए जीवन का
अपमान क्यूँ करूँ? इस दुनिया में न जाने कितने लोग बस एक और
पल जीना चाहते हैं और उन्हें वो मुहलत नहीं मिलती। फिर मुझे क्यूँ आप जल्दी रुखसत
की इजाज़त देंगे? क्यूँ आपकी दी हुई जिंदगी पर सवाल उठाऊँ? मैं खुश हूँ भगवान कि आपने मुझे सब्र का सबक सीखने के इतने मौके दिए।
ग़ालिब भी तो कह कर गए
“रगों में दौड़ते रहने के हम नहीं कायल, जो आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?” तो ठीक है! मैं भी तैयार हूँ खून के आँसू रोने के लिए। रुला लीजिये आप
और भी मुझे। प्यार में शर्तें नहीं होतीं और शर्तों पर प्यार नहीं होता कहने वाली
मैं अपने प्यार की हर शर्त मानती चली जा रही हूँ। उनकी शर्तें हैं कि खत्म ही नहीं
होतीं! अब एक नई शर्त है। छोड़ दो मुझे! जिस चीज़ को बनाने के लिए मैंने इतनी
कोशिशें की थीं उसी के लिए आज ये कहते हैं कि अगर तुम उसका हिस्सा होती तो वो भी
बर्बाद हो जाती। सही तो है! जिस सपने के लिए मैंने इतनी सारी कोशिशें की हैं, आज वो कहते हैं वो कभी तुम्हारा था ही नहीं।
मैं कहाँ साथ हूँ आपके? आप भी
अकेले हैं और मैं भी। आपने खुद ही तो वो रास्ता चुन लिया था जो आपको मुझसे अलग
लेके गया। मैं भी जानती हूँ आपको मेरे मरने जीने से कोई फर्क नहीं पड़ता, पड़ेगा भी क्यूँ? आपके चारों तरफ की इस भीड़ में मैं
आपको नज़र ही कहाँ आती हूँ? आपको ही क्या मैं किसी को भी नज़र
नहीं आती। आपको लगता है न कि मैं किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। सच तो ये है कि लोग
खुद ही अपना सब कुछ बिगाड़ते चले आ रहे हैं। मैं भी। कहाँ से कहाँ आ चुकी हूँ पर न
मेरा सफर खत्म होता है न मेरी तलाश।
मेरे ईश्वर इस सफर, तलाश और
बनने बिगड़ने में मैं खुद को भी खो चुकी हूँ। बाहर की दुनिया के लिए मैं एक सफल, आत्मविश्वासी और बेहद प्रतिभाशाली इंसान हूँ। पर अपने घर की चारदीवारी
में मैं खुद से ही हारी हुई हूँ। मेरा आत्मविश्वास और मेरे जीने की इच्छा सब मर
चुके हैं। मैं न जाने क्यूँ और किसलिए ज़िंदा हूँ। जिनका मैंने इतना ख्याल रखा वो
ही बोलते हैं मुझे कुछ पता नहीं। न जाने कैसे मिली मुझे ये नौकरी! आप ही बताओ न
कैसे मिली थी मुझे ये नौकरी? क्या था मुझमें ऐसा? अभी कुछ दिन पहले एक ग्राम विकास अधिकारी ने अपनी प्रतिभा पर उठे सवालों
से तंग आकर अपनी जान दे दी। कितने सारे प्रशासनिक उच्चाधिकारी अपनी नौकरी से
त्यागपत्र दे रहे हैं। इंसान ही इंसान का दम ऐसा घोंट देता है कि साँसो का रुक
जाना साँसों के चलते जाने से ज्यादा आसान लगने लगता है। मुझे भी अब ऐसा ही लगने लगा है। जिंदगी हो या हमारा रिश्ता दोनों रेत की तरह हाथों से फिसलते जा रहे हैं।
काश इस रिश्ते के बदले आप मुझसे मेरी जिंदगी ही ले लो। मैं अपना रिश्ता बचाना
चाहती हूँ। मेरी मदद करो ईश्वर। प्लीज।
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