Wednesday 27 May 2020

चुप नहीं रहूँगी...


हे ईश्वर

आज मेरे सोशल मीडिया अकाउंट पर संदेशों का आदान प्रदान कुछ जादे ही लंबा खिंच गया है। आज कोई फिर एक बार मेरा सिर झुकाने पर अड़ा हुआ है। ज़िद पकड़ रखी है मुझे गलत साबित करने की। पर नहीं भगवान, आज नहीं। आज न तो मैं चुप रहूँगी न ही हार मानूँगी। इसलिए किसी के हर तर्क का जवाब दिया है आज मैंने। बहुत आसान समझती है आपकी दुनिया मेरी ज़ुबान पर लगाम लगाना। पर इतना आसान भी नहीं है। भले ही मेरी आवाज़ दबाने के हजारों लाखों षड्यंत्र हों, मैं कभी हार नहीं मानूँगी। ये आर या पार की लड़ाई मैं ज़रूर लड़ूँगी।

मैंने इतना ही सवाल तो किया था प्यार हो या न हो हमें एक दूसरे का इस तरह तमाशा बनाने का क्या हक़ है’? पर मुझे कोई जवाब नहीं मिला। मेरे लिए उनके पास बस ये कडवे बोल हैं, चुनौतियाँ हैं और इनके ये जहरबुझे शब्द जिनकी जद में मैं ही नहीं मेरे अपने भी आ चुके हैं।

ईश्वर मैंने इनका क्या बिगाड़ा है? हजारों लाखों बार पूछा है मैंने आपसे ये सवाल। मैंने किसी का भी क्या बिगाड़ा है? आप ही क्यूँ नहीं जवाब दे देते? आपकी दुनिया मुझसे इतनी नफरत क्यूँ करती है? क्यूँ मेरी सफलता से इतना जलती है? हजारों लाखों लोगों की तरह मैंने भी तो केवल एक अच्छी जिंदगी की चाहत की थी। उस जिंदगी के लिए बेहिसाब मेहनत भी की है, आज भी कर रही हूँ। किसी से कुछ नहीं मांगा था मैंने। मुझे रास्ता दिखाने वाला भी तो कोई नहीं था। आज जब अपने आप, अपनी मेहनत से मैंने कुछ हासिल किया तो मुझे आराम क्यूँ नहीं करने देते आपके लोग?

कैरियर और जीवनसाथी इंसान की जिंदगी के दो अहम फैसले होते हैं। मेरी जिंदगी में एक फैसला सही हुआ और एक... एक बार गलत हुआ तो होता ही चला गया। मैंने इतना ही तो सोचा था कि अब इस खोज पर एक बार में पूर्णविराम लगा ही देते हैं। खत्म ही कर देते हैं ऐसी उम्मीद को जो बार बार मुझे नाउम्मीद कर देती है। पर नहीं इतनी आसानी से कैसे खत्म होगा सब कुछ? जब तक दुनिया के सामने मेरा तमाशा न बने, सारी दुनिया मुझ पर हँसे नहीं और जब तक मैं खून के आँसू न रो दूँ... कैसे चैन पड़ सकता है आपकी दुनिया को।

पहले तो रोना आया करता था पर अब गुस्सा आता है, बेहिसाब गुस्सा! देखें इस गुस्से की जद में कौन कौन आता है।

Sunday 17 May 2020

किनारे मिलते नहीं....


हे ईश्वर

एक बार मैंने आपको कहानीकार कहा था, याद है? मेरी कहानी में फिर लिख दिया वही मोड़ आपने। वही तन्हा दिल, तन्हा सफर! क्यूँ? बताइये न? अच्छी नहीं लगती क्या मेरे होठों की हंसी? अधूरापन मेरी हर कहानी का वो मोड़ है जो कभी न कभी आता ही है। अब ये कहानी भी एक मोड़ से अधूरी ही रहेगी। आपकी बेटी हमेशा अकेली ही रहेगी। उम्मीद रखना ही छोड़ दिया है अब हमने भी। टूटेगी तो कौन संभालेगा हमें? सब तो मैंने तो पहले ही कहा था में व्यस्त रहेंगे, है न?
कोई बात नहीं। मैंने भी सोच लिया है, ये मेरी आखिरी कोशिश थी, अंतिम विकल्प। अब इसके आगे न कोई कोशिश, न विकल्प। अब होगी बस एक अंतहीन चुप्पी। उनको भी सिर्फ मेरा गुस्सा ही नज़र आता है। मेरे गुस्से के पीछे जो तकलीफ है वो तो किसी को दिखाई ही नहीं देती। शायद कभी नहीं नज़र आएगी।

आपकी दुनिया ने मुझे धोखे के सिवाय कभी कुछ नहीं दिया और मैं अब इससे कोई भी उम्मीद लगाना छोड़ चुकी हूँ। पर मेरे अपने क्यूँ ऐसा करते हैं? मुझे तकलीफ देकर उनको कौन सी खुशी मिल रही है? बताइये न? सब हैं फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है इस दुनिया में मेरा आपके सिवा कोई नहीं है। भगवान कल वो कह रहे थे सब अपनी करनी का फल भोगते हैं। जो जैसा करता है उसे वैसा ही मिलता है। इसलिए मैं आपसे कह रही हूँ उन्होंने मेरे साथ जो भी किया है उसके लिए उन्हें माफ कर दीजिए। मैं नहीं चाहती वो भोगें अपनी करनी का फल। हर उस शख्स को माफ कर दीजिए आप जिसने मेरे साथ बुरा किया है और अब आप मुझे भी माफ कर दीजिए।

मैं थक गई हूँ। अब नहीं करना कोई हिसाब किताब किसी से। दुनिया बदलने वाली तो है नहीं। मैं भी उसके लिए खुद को क्यूँ बदल दूँ? इसलिए अब चाहे जो हो मैं चुपचाप रहना चाहती हूँ। अपनी इस दुनिया में जहां सिर्फ आप और मैं हैं। आपकी दुनिया और उसके किसी भी शख़्स से मुझे कुछ नहीं चाहिए... मैं प्यार चाहती थी वो मुझसे नफरत करते हैं। विश्वास जीतना चाहती थी उनका पर वो तो मुझ पर भरोसा करते ही नहीं। उनका साथ चाहती थी पर वो मुझसे बहुत दूर हैं और इस दूरी को पाटना उनके वश का रहा ही नहीं। मेरी किस्मत ही ऐसी है। मैं क्यूँ इसको बदलने चली थी? पता नहीं.... पर अब वापस लौटूँगी। अब कभी नहीं करूंगी कोई उम्मीद! नहीं चाहिए किसी का साथ....

किस किनारे.....?

  हे ईश्वर मेरे जीवन के एकांत में आपने आज अकेलापन भी घोल दिया। हमें बड़ा घमंड था अपने संयत और तटस्थ रहने का आपने वो तोड़ दिया। आजकल हम फिस...