हे ईश्वर
आज से पहले कभी इतना
दुस्साहस शायद मेरा न हुआ होगा। जिनके बारे में आपसे हाथ जोड़ते, दुआएं मांगते नहीं थकती थी मैं उनसे आज मैंने इतना
अपमानजनक व्यवहार क्यूँ किया? वो कौन सी
ज़ुबान थी जिससे मैं उनसे प्यार से बात किया करती थी और कौन सी है ये जिसने उनको
अपशब्द ही अपशब्द बोल डाले। फिर भी भगवान कुछ बचा था जो शायद तब टूट गया जब मेरे
झटके हुए हाथ के साथ मेरी चूड़ियों के टुकड़े पूरे कमरे में बिखर गए।
क्यूँ भगवान? जिसे मैंने
साफ कहा था ‘जाओ अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं’ वो किस अधिकार से मेरे घर में घुसे चले आए? बिना पूछे, बिना बताए? क्या देखने आए थे वो? क्या ये कि उनकी जगह कौन ले रहा है मेरी ज़िंदगी में? मेरी ज़िंदगी है भगवान, बस की सीट तो नहीं जो एक गया
तो दूसरा कोई बैठ जाएगा। वैसे भी यही तो चाहते थे न वो? जिस इंसान
ने मेरे भविष्य की ख़ातिर एक दिन का भी समय नहीं निकाला वो किसी एक ही बार कहने पर इतनी
दूर चला गया वो भी सब काम छोड़छाड़ कर। उनके गए हुए पैसे तो शायद वापस आ भी जाएँ मेरे
भविष्य पर तो अभी भी तलवार लटकी है न।
सब कहते हैं जो भी हुआ उनके कारण
ही हुआ पर मैं नहीं मानती। जो हुआ सब मेरे कारण। मेरी सच्चाई, मेरी ईमानदारी, मेरे उसूल और समझौता न करने की आदत। लेकिन फिर भी! जिसने हर कदम मेरा साथ
देने का वादा किया था वो क्यूँ इस तरह मुझसे बेपरवाह हो गया?
उसे तो जैसे गुजरते हुए महीनों से फ़र्क ही नहीं पड़ता! पर हर एक बीतता हुआ पल मुझ पर
भारी पड़ रहा है।
कैसे कहूँ और किसको कहूँ? जब उन्होंने
बताया था घरवाले नहीं मानेंगे कभी। तब से पता था कभी न कभी हमें अलग होना ही है। वो
क्या सोचते हैं कि मेरी जैसी स्वाभिमानी लड़की कभी अपने सम्मान पर आंच आने देगी? क्यूँ मैं अपने मान सम्मान को दांव पर लगा दूँ? वो भी
उसके लिए जो कभी समाज के सामने ये तक नहीं मान सकता कि वो मुझसे वाकिफ़ है। जिसने मेरी
कोई उम्मीद कभी पूरी नहीं कि उसे मुझ पर भी कोई अधिकार नहीं। मैं आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगी। उन टूटी हुई चूड़ियों के साथ मेरा रिश्ता भी टूट गया है शायद।
No comments:
Post a Comment