हे ईश्वर
आज खुश तो बहुत
होगे तुम? अमिताभ बच्चन से ये dialogue उधार लेकर पूछती हूँ मैं अपने आपसे।
क्या मैं खुश हूँ कि उनके साथ ये सब हुआ? क्या मैं खुश हूँ
कि उनके जीवन में ये कठिनाई आई है? क्या मैं खुश हूँ कि उनको
वो नहीं मिल पाया अब तक जो वो चाहते हैं? क्या मैं खुश हूँ
कि एक अच्छा अवसर उनके हाथ में आते आते रह गया?
खुश हूँ क्या मैं कि
उनकी राह में अभी भी कांटे बचे हैं? बताइये न भगवान? नहीं!
इन सब सवालों का जवाब ‘न’ है। मैं ज़रा
भी खुश नहीं हूँ कि वो किसी मुसीबत में हैं और मुझसे मदद मांग रहे हैं। मैं सोच रही
हूँ उन पर ऐसी मुसीबत आई भी क्यूँ जिसका अंदेशा किसी को नहीं था। वो तो कहते हैं वो
आपके बहुत नजदीक हैं। उन्हें सताने वाला, बुरा भला कहने वाला
पानी भी नहीं मांगता कहीं। फिर? क्या हुआ?
भस्म क्यूँ नहीं कर दिया
उन्होंने रास्ते में कांटे बिछाने वालों को? लांघ क्यूँ नहीं गए रास्ते की हर मुसीबत को? क्यूँ भगवान? क्यूँ छोड़ दिया उनका हाथ आपने? मैं तो आपके भरोसे उनको छोड़ कर आई थी। वो भी इसलिए क्यूंकि उनकी व्यस्त जिंदगी
में मेरी बकवास (!) के लिए कोई जगह नहीं थी।
मेरा कैरियर, भविष्य, मान प्रतिष्ठा सब इनके हाथ में था और इन्होंने किसी और की मदद करना जादे ज़रूरी
समझा। बिना ये सोचे कि मैं क्या दांव पर लगा रहा हूँ खड़ा कर दिया मुझे firing
squad के सामने। किसी का सामना करने से पहले बेहद ज़रूरी है कि आपको उसकी
शक्ति का यथोचित अंदाज़ा हो। आज वो कहते हैं तुम minor थोड़ी हो।
18 से ऊपर हो, तुम्हें खुद समझ होनी चाहिए। मैंने इन पर विश्वास
किया और आज ये कहते हैं मैंने थोड़ी कहा तुम्हें आग में कूदने!
ठीक है मुक्त करती हूँ तुम्हें
हर आरोप से। ये सारा किया धरा मेरा है और मैं तैयार हूँ इसकी सज़ा भुगतने को। चली जाऊँगी मैं
जहां जिंदगी लेकर जाएगी मुझे। कर लूँ सभी कठिनाइयों का सामना जो भी राह में आएँगी मेरी। बस
इतना चाहती हूँ जिस तरह निज स्वार्थवाश उन्होंने मुझे छोड़ दिया, उस तरह कोई
कभी उनको छोड़ कर न जाए।
बस इतना और... मुझसे कहीं
ज़ादे काबिल, कहीं अधिक शिक्षित, कहीं अधिक समझदार लोग
आपके साथ हैं और ये आप ही के शब्द हैं। इसलिए अब आप मुझे नहीं, उनको जाकर कहिए ‘मेरी मदद करो!’
No comments:
Post a Comment