हे भगवान
क्या ही करूँ मैं बताओ तो? इतना सब कुछ सुनना सहन करना और चुप रहना... क्या इतना आसान
है? होगा शायद भगवान वरना आप
मुझसे ऐसे करने को क्यूँ कहते? दुनिया में किसी की भी जिंदगी आसान नहीं
होती। सब यही तो कहते हैं कि जैसा मेरे साथ हुआ वैसा किसी के साथ नहीं होता। सबने
मुझे धोखा दिया है, सबने मेरा फायदा उठाया, सबने मुझसे केवल अपना मतलब निकाला और मुझे छोड़ दिया! मुझे कोई प्यार नहीं
करता। ऐसा क्या नया मैं आपको कहती हूँ? आप बताओ।
मैंने इस साल के शुरू
होने पर यही सोचा था कि हर उस रिश्ते को जिसे मेरी कदर और परवाह नहीं मैं भी ठोकर मार
दूँगी। कभी नहीं देखूँगी उस इंसान की तरफ जिसे मुझसे प्यार तो है पर उस प्यार के लिए
एक पल का भी समय नहीं हैं। कभी कुछ नहीं मांगूँगी दुनिया से, न भगवान
से! हाँ तो और क्या! पहले भी कौन सी इल्तजा सुनी आपने मेरी? इसलिए
इस जिंदगी और मेरे सारी उपलब्धियों के लिए धन्यवाद देने के अलावा और कोई दुआ भी अब
नहीं मांगती हूँ मैं।
लेकिन भगवान ऐसा तय करने
के बाद मैंने अपने चारों तरफ देखा तो मैं अकेली ही थी। ऐसा एक भी इंसान मेरे आस पास
था ही नहीं जिसे मेरी परवाह या कदर हो! वैसे भी मैं जब अकेली होती हूँ, तब ही सुकून
से रहती हूँ। किसी और के ख़्वाब पूरे करने के चक्कर में न जाने कितनी रातें जागते बिताई
हैं मैंने। मेरा सुकून तो तभी मिलता है जब मेरी आँखों में कोई ख़्वाब न हो।
रिश्ते आते हैं तो उनके साथ
उनके खोने का डर भी साथ आता है। इस खोने के डर ने न जाने क्या क्या करवा लिया। फिर
भी कहाँ टीका है मेरा एक भी रिश्ता। तो अगर अकेले ही रह जाना है तो फिर किसलिए खुद
को बदलूँ? क्यूँ किसी की परवाह करूँ। आप बताओ?
दोस्त मिले थे कुछ नए पर
वो भी न जाने क्यूँ गलतफहमी के शिकार होकर किनारा कर गए। इतना ही जान पाते हैं क्या
लोग मुझे? नहीं जानते तो क्यूँ घुस आते हैं ज़िंदगी में मेरी? अब
तो ये भी नहीं कहूँगी कि आप बताओ। कहा था न कुछ नहीं मांगूँगी...सफाई भी नहीं।
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