मैंने आपको खुद अपनी जिंदगी
से निकाल दिया, वो भी ऐसे? पर आप ही बताइये मैं क्या करती? आप मेरे साथ अपना भविष्य नहीं देखते, मेरे साथ रहना
नहीं चाहते, साफ साफ कहते हैं कि तुम्हारी दिक्कतें तुम खुद जानो, मैं क्या करूँ…. और पैसे! पैसे तो मेरी मदद के लिए आपके
पास कभी नहीं होते।
मैं एक रिश्ते में रह कर
भी बेहद अकेली थी। हमेशा से थी। कब कौन सी दिक्कत में आप साथ खड़े हुए हैं, बताइये तो? केवल एक बार कह भी देते कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तो
शायद मुझे थोड़ा सुकून होता। पर आप तो किसी एक ऐसी औरत के कहने पर मुझे ही गलत समझते
हैं जो मुझे कभी मिली तक नहीं।
कैसे आगे बढ़ती मैं इस रिश्ते
में जब आगे बस एक गहरी खाई है। अपने प्यार से कुछ न चाहना मैं मान सकती हूँ। पर उसी
प्यार को अपनी आँखों के सामने किसी और का होते हुए देखना कैसे बर्दाश्त करती? उस पर ये
बात कि ‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता!’
उन्हें फर्क नहीं पड़ता तो
फिर मैं भी क्यों सोचूँ?
मुझे थोड़ा हिम्मत रखनी होगी।
वो यही सब तो कहा करते थे। तुम बांझ हो, कामचोर हो, तुम्हें फ्री
में मिला है ये सब कुछ, तुम चरित्रहीन हो। आज जब उनका हर आरोप
स्वीकार करके मैं कह रही हूँ कि ऐसी लड़की के साथ आप मत रहो तो मानते क्यूँ नहीं? अब क्या चाहते हैं? मैंने अपना सब कुछ खो दिया और ये
कहते हैं मैंने थोड़ी कुछ किया। ऊपर से ये भी कि तुम अपने किए का फल भुगतोगी!
क्या किया है मैंने भगवान? खून किया
किसी का? बेईमानी की? अपने फायदे के लिए
किसी के साथ गद्दारी की? अपनी किसी भी गलती का जिम्मा लेने से
इंकार किया? कभी बिना मेहनत के कुछ पाने की कोशिश की? पीठ पीछे बुराई की क्या किसी की? बोलिए न?
सिर्फ उनको कुछ कड़वे बोल
कह देने से हम इतने दोषी हो गए कि सारी जिंदगी झेलेंगे हम! तो फिर उनके लिए क्या सज़ा
सोची आपने जिन लोगों ने मेरे साथ ये किया? या इनके लिए जिन्होंने मुझे एक स्वर्ग का द्वार
दिखाया और फिर मुझे उसी नर्क में झोंक दिया जिसमें से इतने प्यार से निकाला था। कौन
दोषी है और किसकी ये सज़ा है, सोचने के लिए सारी जिंदगी है भगवान।
पर फिलहाल जिंदगी का ये पन्ना
जिसमें उनका प्यार लिखा था मैंने... आज अपने ही हाथों से फाड़ कर जलाना ही होगा मुझे।
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