Sunday 17 May 2020

किनारे मिलते नहीं....


हे ईश्वर

एक बार मैंने आपको कहानीकार कहा था, याद है? मेरी कहानी में फिर लिख दिया वही मोड़ आपने। वही तन्हा दिल, तन्हा सफर! क्यूँ? बताइये न? अच्छी नहीं लगती क्या मेरे होठों की हंसी? अधूरापन मेरी हर कहानी का वो मोड़ है जो कभी न कभी आता ही है। अब ये कहानी भी एक मोड़ से अधूरी ही रहेगी। आपकी बेटी हमेशा अकेली ही रहेगी। उम्मीद रखना ही छोड़ दिया है अब हमने भी। टूटेगी तो कौन संभालेगा हमें? सब तो मैंने तो पहले ही कहा था में व्यस्त रहेंगे, है न?
कोई बात नहीं। मैंने भी सोच लिया है, ये मेरी आखिरी कोशिश थी, अंतिम विकल्प। अब इसके आगे न कोई कोशिश, न विकल्प। अब होगी बस एक अंतहीन चुप्पी। उनको भी सिर्फ मेरा गुस्सा ही नज़र आता है। मेरे गुस्से के पीछे जो तकलीफ है वो तो किसी को दिखाई ही नहीं देती। शायद कभी नहीं नज़र आएगी।

आपकी दुनिया ने मुझे धोखे के सिवाय कभी कुछ नहीं दिया और मैं अब इससे कोई भी उम्मीद लगाना छोड़ चुकी हूँ। पर मेरे अपने क्यूँ ऐसा करते हैं? मुझे तकलीफ देकर उनको कौन सी खुशी मिल रही है? बताइये न? सब हैं फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है इस दुनिया में मेरा आपके सिवा कोई नहीं है। भगवान कल वो कह रहे थे सब अपनी करनी का फल भोगते हैं। जो जैसा करता है उसे वैसा ही मिलता है। इसलिए मैं आपसे कह रही हूँ उन्होंने मेरे साथ जो भी किया है उसके लिए उन्हें माफ कर दीजिए। मैं नहीं चाहती वो भोगें अपनी करनी का फल। हर उस शख्स को माफ कर दीजिए आप जिसने मेरे साथ बुरा किया है और अब आप मुझे भी माफ कर दीजिए।

मैं थक गई हूँ। अब नहीं करना कोई हिसाब किताब किसी से। दुनिया बदलने वाली तो है नहीं। मैं भी उसके लिए खुद को क्यूँ बदल दूँ? इसलिए अब चाहे जो हो मैं चुपचाप रहना चाहती हूँ। अपनी इस दुनिया में जहां सिर्फ आप और मैं हैं। आपकी दुनिया और उसके किसी भी शख़्स से मुझे कुछ नहीं चाहिए... मैं प्यार चाहती थी वो मुझसे नफरत करते हैं। विश्वास जीतना चाहती थी उनका पर वो तो मुझ पर भरोसा करते ही नहीं। उनका साथ चाहती थी पर वो मुझसे बहुत दूर हैं और इस दूरी को पाटना उनके वश का रहा ही नहीं। मेरी किस्मत ही ऐसी है। मैं क्यूँ इसको बदलने चली थी? पता नहीं.... पर अब वापस लौटूँगी। अब कभी नहीं करूंगी कोई उम्मीद! नहीं चाहिए किसी का साथ....

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किस किनारे.....?

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