मेरे ईश्वर
Lockdown के
कारण आप तक पहुँचने के रास्ते बंद हो चुके हैं। मैं अपने आप को थोड़ा बेबस महसूस कर
रही हूँ। इंतज़ार कर रही हूँ कि सब कुछ ठीक हो जाए और मुझे फिर से आप के पास आने का
मौका मिले। न जाने क्यूँ ये मुसीबत हम पर आई है और न जाने क्यूँ हम ऐसे अकेले हैं।
इस सब के बीच एक नये संकट ने रास्ता रोका है मेरा। भगवान, कोई
भी लड़की कभी भी किसी आक्षेप का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाती कभी। लोगों की अदालत बिना
किसी अपराध उसे दोषी ठहरा ही देती है। जैसे अभी ठहरा दिया। अब मैं नहीं जानती क्या
करूँ? कैसे समझाऊँ उन्हें कि मैं निर्दोष हूँ, निष्कलंक हूँ। भगवान, उनकी नश्तर जैसी कड़वी बातें एक
बार फिर मेरा कलेजा चीर रही हैं और मैं कुछ नहीं कर पा रही। प्रेम, निष्ठा, समर्पण और वफादारी के बदले में यही मिला है
आज मुझे।
उनका कहना है 10 लोग अगर
कोई बात कहते हैं तो वो ज़रूर सच होगी। पर कैसे समझाऊँ? ये 10 लोग
वही 10 लोग हैं जिनके पास अपने लगाए हुए आक्षेप का कोई आधार नहीं। वो तो केवल मेरी
छवि खराब करके तमाशा देखना चाहते हैं। लेकिन अजीब लगता है जब उनके जैसा समझदार इंसान
मुझे ऐसे कहता है। कितना मज़ा आ रहा होगा न लोगों को? है न?
पर आप चुप क्यूँ हैं? आप क्यूँ
नहीं बोलते कि मैं सच्चरित्र हूँ, पवित्र हूँ! आपने ही दी थी न साक्षी तुसली रामायण पर हस्ताक्षर करके? फिर आज अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं करेंगे? बोलिए? वो अगर मुझसे अलग होना भी चाहे तो मैं समझा लूँगी खुद को। लेकिन अपने पर ये
झूठे आक्षेप लेकर सिर झुका कर जाना मुझे बिलकुल मंजूर नहीं। न उस युग में स्त्री के
पास अपनी सच्चरित्रता का कोई सबूत था, न आज है। कोई बात नहीं
भगवान। कभी न कभी उनको एहसास दिला देना कि मैं निर्दोष हूँ, पवित्र
हूँ और मेरे मन में कोई कपट नहीं है।
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