Friday, 17 April 2020

मेरी मदद करो!


हे ईश्वर

मैं आपको किन शब्दों में शुक्रिया कहूँ? मैं जब भी निराश होती हूँ, आप मेरे लिए आशा की नई किरण बन कर आते हैं। आपने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया है, मुझे हिम्मत दी है। आपके भरोसे मैंने पार की है अपने जीवन की कठिन से कठिन परीक्षा। लेकिन आज तक जो भी था मुझ तक सीमित था। आज मेरे कारण उनको कष्ट हुआ। मेरे कारण उनकी आँखों में नमी है। क्यूँ भगवान? जिस इंसान को मैं तेज़ धूप से भी बचा के रखना चाहती हूँ, उसे ही क्यूँ ऐसे कष्ट हुआ मेरे कारण? क्या मुझे प्यार करने वाले हर शख्स के लिए ऐसी ही कठिन चुनौतियाँ लिखीं हैं आपने?

उनकी गलती बस इतनी है कि वो मुझ पर विश्वास करते हैं। करना भी चाहिए। मैंने भी तो विश्वास ही किया था। है न? फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ? क्यूँ इतनी नफरत करते हैं मुझसे लोग? बताइये न?

ईश्वर मैं आपकी बेटी हूँ। मैंने कभी आपके किसी भी निर्णय पर सवाल नहीं किए। पर अब नहीं जानती क्या करूँ? बताइये। आप तो जानते थे कि आगे चल के ऐसी ही चुनौतियाँ आने वाली हैं। इस तरह का कष्ट उनको देने से लाख दर्जे अच्छा होता अगर मैं ही थोड़ा सा अपमान सह लेती। आज जैसे हमारे रिश्ते पर आंच तो नहीं आई होती। बोलो भगवान?

आप हमेशा की तरह चुप बैठे हो और मैंने अपने आप को समझा लिया है। आगे चाहे जैसा भी कष्ट हो, जैसी भी पीड़ा हो, मैं चुपचाप सह लूँगी। मैं अभी भी अपने हक़ के लिए लड़ रही हूँ पर मेरा वो हौसला अब टूट चुका है, मैं भी टूट चुकी हूँ। भगवान उसकी बातें अभी भी मेरे कानों में चुभ रही हैं। बहुत डर लग रहा है।क्या सचमुच लोग मेरे बारे में ऐसा ही सोचते हैं?  

मुझे प्लीज सही रास्ता दिखा दो।

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