Sunday, 8 March 2020

महिला दिवस (!)


हे ईश्वर

# Save the tiger की तरह आज महिला दिवस की शुभकामनाएँ हवा में तैर रही हैं। लोग खुश हैं, नाच गा रहे हैं, महिलाओं को सम्मानित कर रहे हैं। पर एक बात बताइए? आज क्या सड़क पर बेखौफ चलेगी लड़कियां? क्या आज से भ्रूण हत्या बंद हो जाएगी? क्या अब किसी लड़की पर कोई तेज़ाब नहीं फेंकेगा? क्या अब किसी लड़की का बलात्कार नहीं होगा? क्या आज भी किसी लड़की को नहीं सताया गया होगा? क्या आज दहेज के लिए किसी लड़की की बलि नहीं चढ़ी होगी? क्या आज दफ्तर के किसी कोने में किसी लड़की ने नहीं झेला होगा अनचाहा स्पर्श? मैं जानती हूँ इनमें से हर एक सवाल का जवाब नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी भी दिन महिलाओं के दमन और शोषण का ये सिलसिला रुक जाए। ऐसा कभी नहीं हो सकता।

मैं जानती हूँ ईश्वर!

फिर किसलिए मैं खुशी मनाऊँ? क्यूँ नाचूँ? बोलो न?

इसलिए मैं आज के दिन आपसे बोल रही हूँ अपनी सारी शिकायतें। मैं जानती हूँ लड़कियों की बातों पर बहुत कम गौर किया जाता है। असल में किया ही नहीं जाता है। पर फिर भी कह रही हूँ।

जब तक इस दुनिया के किसी भी कोने में एक भी लड़की दर्द से चीख रही है, सिसक रही है तब तक महिला दिवस का कोई औचित्य नहीं है। न मेरे लिए न आपके इस दोगले समाज के लिए। जो मंच पर महिलाओं को सम्मानित करने का ढोंग कर रहा है और मंच के नीचे से उन पर छींटाकशी करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। मुझे ऐसे समाज और परिवेश का हिस्सा बन कर अपनी आत्मा की हत्या नहीं करनी।

कौन कहता है महिलाएं आत्मनिर्भर हैं, सक्षम हैं? ये सब एक झूठा दिखावा है ईश्वर। न तो हम आत्मनिर्भर हैं, न ही सक्षम। हम तो अतिशय दुस्साहसी हैं। जो इस समाज के इतना पीछे खींचे जाने के बावजूद आगे आने से बाज़ नहीं आते। कभी आएंगे भी नहीं।

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