Sunday 29 April 2018

भूल जाऊं तुम्हें...?


अध्याय १५

हे ईश्वर!!

‘मैं शादी कर रहा हूँ; आप आयेंगी न?’ क्या हुआ? पहले कहीं सुना है ये मैंने. अरे हाँ! पिछले वाले ने भी तो यही कहा था. तभी तो शुरू हुआ था हमारा रिश्ता, वही तो थी हमारी दोस्ती और प्यार की पहली सीढ़ी. जब मेरे सारे दर्द को ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था तुमने. मेरी मदद करने को हाथ बढ़ाया था. एक अनकहा वादा किया था कि तुम कभी मेरा दिल नहीं टूटने दोगे. कितने यकीन से कहा था ‘मैं तुम्हें तुम्हारा हर दर्द भुला दूंगा.’ तब कहाँ जानती थी मैं कि उस दर्द को भुलाने के लिए उससे कई गुना गहरा दर्द तुम मुझे दोगे. आज न जाने कहाँ है तुम्हारा वो वादा और कहाँ है वो यकीन. मैं उतनी ही अकेली हूँ जितनी मैं तब थी. इतनी ही बेबस हूँ...बल्कि ज्यादा ही. पिछली बार मैंने उसे आड़े हाथों लिया था, पूछी थी वजह. आज तक नहीं भूली उसने जो कहा था. ‘आप कोई सती सावित्री नहीं हैं.’ जीने नहीं देती है उसकी ये बात मुझे. पर तुम...तुम तो न जाने कब से मुझे एहसास दिला रहे हो कि मैं तो उस लायक हूँ ही नहीं कि कोई मेरे साथ जीवन बिताने की सोच भी सके. तो अब तुमसे सवाल करूँ भी तो कैसे? क्या पूछूँ?

हाँ एक एहसान तो रहेगा तुम्हारा मुझ पर. जाने से पहले ही सारे कसमें वादे ले लिए हैं मुझसे. किसी और को नहीं आने दूंगी. अपने आप से प्यार करूंगी. अपना ख्याल रखूंगी. अपनी ज़िंदगी और उससे जुड़ी सारी चीज़ों की कद्र करूंगी. अपने रिश्तों को मान सम्मान दूंगी. और भी बहुत सी बातें. बहुत गुस्सा आ रहा है.मन करता है तोड़ दूँ तुमसे किये सारे वादे, पार कर दूँ अपनी हर हद, डूब जाऊं उसी दलदल में जिससे बच बच कर निकल रही हूँ मैं. भूल जाऊं कि कभी आए थे मेरी ज़िंदगी में तुम और आज तुम ही मेरी ज़िंदगी बन गए हो. भूल जाऊं कि तुमने मुझे वादा किया था कि तुम मुझे कभी दुःख नहीं पहुँचाओगे. वादा किया था कि तुम हमेशा मेरा साथ दोगे. मुझे तो कभी कभी लगता है वो सारी बातें जिसने मुझसे की थीं वो कोई और था. तुम वो हो ही नहीं क्यूंकि अगर होते तो याद रहता तुम्हें कि कितनी निराशा हुई थी मुझे जब मेरा रिश्ता टूटा था. मैंने किस तरह खुद को संभाला था. वजह तुम भी देते हो, उसने भी दी थी. पर ये दोनों ही कहानियां एक ही अंजाम की तरफ क्यूँ बढ़ गईं? इसका जवाब शायद मुझे कभी नहीं मिलेगा.

इसका जवाब तो मेरे ईश्वर ही दे सकते हैं. याद आता है जब आपने कहा था ‘अब अगर तुम खो गयी, तो मुझसे रास्ता मत पूछना. मैं तुम्हें रास्ता बताने नहीं आऊंगा. बहुत कुछ याद आ रहा है. दिल कर रहा है सब भूल जाऊं मैं. भूल जाऊं कि हम कभी मिले थे, दोस्त बने थे. प्यार किया है! आज जब भूलने बैठी हूँ न जाने क्या क्या याद आ रहा है. पता नहीं तुम कैसे सब भूल गये. मैं भी अब सब भूलना चाहती हूँ. मैं खो गई हूँ एक बार फिर. पर रास्ता नहीं पूछूंगी तुमसे. भूल जाऊँगी कि एक दिन तुमने ही मुझे रास्ता दिखाया था, चलने की ताक़त दी थी. मैं भूल जाऊँगी अपने हर सपने को. तुमसे जुड़ी हर बात को, हर याद को. भूल जाऊँगी कि मैंने कितना प्यार किया है तुमसे. भूल जाऊँगी. सब भूल जाऊँगी.

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