अध्याय ९
हे भगवान्
हे भगवान्
मुझसे इतनी भयानक
गलती क्यूँ हुई, कैसे हो गई? मैंने क्या कुछ कहा उसे!! सच कड़वा होता है कहने वाले
कड़वे सच की एक घूँट भी बर्दाश्त नहीं कर सके. अब समझ आया मुझे कि मैंने अपनी
ज़िन्दगी में इतना धोखा खाया क्यूँ? मुझमें सच बोलने की ताक़त और हिम्मत ही नहीं. जब
भी मैं किसी को एहसास दिलाने की कोशिश करती हूँ अपनी तकलीफ का, मैं खुद उसकी तकलीफ
में डूब जाती हूँ. मुझे नींद नहीं आई कल पूरी रात. मेरे सारे ज़हर बुझे शब्द, मेरे कानों
में पिघले सीसे की तरह उतरते रहे. इससे तो अच्छा होता वो उस दिन आता ही नहीं. कम
से कम उसे इतना दुःख तो नहीं होता. मुझे माफ़ कर दो भगवन. मैंने उस इन्सान का दिल
दुखाया जिसे मैंने अपनी दुनिया माना, जिसके आगे सर झुकाया, जिसकी हमेशा इज्ज़त की.
आज मैंने उसको ऐसे धिक्कारा की एक पल के लिए मुझे खुद भी अपने कानों पर विश्वास
नहीं हुआ. आखिर क्या गलती थी उसकी?
कांच के जैसा
खूबसूरत सा रिश्ता, आज मैंने उसमें दरार डाल दी. पर अब भी वो मेरी उतनी ही फिक्र
करता है, मुझसे उतना ही प्यार करता है, मुझे उतनी ही इज्ज़त देता है. बस बराबरी
नहीं देता. यही था न भगवान्, मेरे किसी से बात करने पर मुझे क्या कुछ सुना दिया
था. कितने सारे इलज़ाम लगाये थे सिर्फ इसलिए कि मैंने किसी से सिर्फ बात की थी. आज
वही मुझसे कहता है, मै सिर्फ घूमने ही तो गया था. ये सिर्फ न बड़ा ही खतरनाक लफ्ज़
है! कुछ भी कर के लोग उसके आगे सिर्फ की तलवार लटका देते हैं. किसी ने सिर्फ मुझसे
अपने शादीशुदा होने की बात ही तो छुपाई थी. ऐसी भी क्या बड़ी गलती कर दी? तो क्या
हुआ अगर उसके सच बताने तक बहुत देर हो चुकी थी. वो मेरे दिल दिमाग में घर कर चुका
था. मेरी सारी उम्मीदें उससे जुड़ चुकी थीं. सिर्फ मेरे सारे सपने ही तो टूटे थे.
और हुआ ही क्या था. सिर्फ मेरा आत्मविश्वास ही तो तोड़ा था उसने मुझे ये एहसास दिला
कर कि मैं किसी के एकनिष्ठ प्यार के लायक ही नहीं. उस पल के बाद भगवान्, मैंने
सपने देखना ही छोड़ दिया. मेरी सच्चरित्र रहने की इच्छा ही मर गई.बस तभी ऐसा हुआ था
की अपनी कमतरी के एहसास में कुछ इस तरह डूब गई मैं कि मैंने आधे अधूरे मिले हुए हर
प्रतिदान को ही अपनी नियति मान लिया.
कितना समझाते हैं
मेरे लोग मुझे. कितना कहते हैं कि तुम ख़ास हो, तुम अपने आपको पहचानो, अपने आप को
समझो, प्यार करो. पर मेरे मन में खुद के लिए ज़हर ही ज़हर भरा है. मैं अपनी हर चीज़
से नफरत करती हूँ. अपने प्रति अतिशय क्रूर भाव से पेश आती हूँ. यही सच है. इसलिए
जो मुझे प्यार करता है वो मुझे एक आंख नहीं भा रहा. मै नहीं जानती कल के बाद हमारा
रिश्ता कैसा होगा. पर इतना जानती हूँ कि गलती उसकी नहीं थी. उसने तो कभी न सोचा
होगा कि उसे सर आँखों पर बिठाने वाली ये लड़की उसे इस तरह गिरा भी सकती है. मेरा
इतना प्यारा रिश्ता दरका कर अब शांत हुआ है मेरा अंतर्मन. मुझे रोते देख कर मुझे
चैन सा आ गया. पता नहीं क्यूँ मेरा हँसता हुआ चेहरा खुद मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा
था. अब जो फूट फूट कर रोई हूँ तो लगा कि यही होना चाहिए था मेरे साथ.
पर भगवान् अब जानते
हो क्या होगा? अब फिर एक बार भीख मांगूंगी की वो वापस आ जाए. एक बार फिर घुटने टेक
कर माफी मांगूंगी अपनी सारी गलतियों की. जानती हूँ कि तौबा करुँगी अपने गुनाहों
की. एक गलती करके मुझे इस तरह महसूस हो रहा है. न जाने कैसे तुम्हारी दुनिया के
लोग न जाने कितनी गलतियाँ करते हैं और फिर भी कितने सुकून से रहते हैं. बिना
ग्लानि के जीते हैं. चैन की नींद सोते हैं. मैं तो साँस भी ठीक से नहीं ले पा रही.
मेरे ईश्वर! उसे अब
भी उतनी ही परवाह है मेरी. वरना वो मुझसे पूछता नहीं कभी भी. मैंने इसे इतना दुःख
दिया फिर भी मेरे लिए फिक्र करने से बाज़ नहीं आता वो. माँ कहती हैं कि सिर्फ पत्नी
को ये हक होता है कि वो अपने पति पर लगाम लगा सके. पर प्यार के अपने तर्क होते
हैं, अपने कुछ अधिकार. मेरा इतना अधिकार तो उस पर रहेगा ही. ईर्ष्या ने मेरे घर
में आग लगा दी है भगवान्, मेरी मदद करो इसे बुझाने में. प्लीज भगवान्. मुझे ज़रा भी
चैन नहीं आ रहा है. पता नहीं कब सब ठीक होगा. पर इतना विश्वास तो है कि सब ठीक हो
जायेगा. जल्दी ही. मेरी मदद करो भगवन. उसे
कह दो मुझे माफ़ कर दे.
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