अध्याय १५
हे ईश्वर
मैंने उसका दिल
दुखाया! कैसे कह दी इतनी कड़वी बात मैंने? फिर से वही सब किया जो न करने का मन ही
मन वादा किया था खुद से. अब क्या करूँ? कैसे माफ़ी मांगूं उससे? इतने पर भी मेरी
परवाह थी उसको. मेरे लिए इतना किया, मुझे इतने प्यारे प्यारे पल दिए और मैंने क्या
किया? शायद मैं उसके प्यार और परवाह के लायक ही नहीं हूँ. मेरे जैसे लापरवाह और
मुंहफट इन्सान के पास कैसे रह सकता है कोई भी? क्या सच ही नहीं देख पाउंगी अब उसका
चेहरा, नहीं सुन पाउंगी उसकी आवाज़, अब नहीं करेगा मेरी फिक्र? नहीं पूछेगा कि घर पहुंची या नहीं? मन भी न जाने कहाँ कहाँ भटक
रहा है....काश वो सपना सच हो जाये. सचमुच उसका एक हिस्सा मेरे अंदर हो...धीरे धीरे
बढ़ता हुआ, आकार लेता हुआ. देश, दुनिया, समाज...सब से लड़ लूंगी मैं. हाँ
भगवान्...सब सह लूंगी.
मैंने कभी सोचा भी
नहीं था की जिस इंसान ने मुझसे इतना प्यार किया, मेरे बारे में इतनी फिक्र
की...उसे इस तरह उसकी बचपन की नादानियों के लिए आड़े हाथों लूंगी मैं. लेती तो
लेती..पर इस तरह उस पर उंगली उठाने और उन घटिया लोगों की जमात में उसको शामिल करने
का मुझे कोई हक नहीं था. पर बचपन की एक टीस आज मेरे प्यार पर भारी पड़ गई. काश उसे
याद आ जाए. उसके लिए नहीं कही थी वो बात मैंने..मेरे बचपन की सब से भयानक याद इसी
तरह की बदमाशियों से जुड़ी है. जब भी ऐसी कोई बात सुनती हूँ, बस वही एक चेहरा आँखों
के सामने आ जाता है. काश उसे याद आए, काश...
हे ईश्वर आपने मुझे
ऐसा बनाया ही क्यूँ है? कितनी सारी बातें वो मुझसे बाँटने लगा था...क्या फिर कभी
वो दिन लौटेंगे? पता नहीं इस बार गलती किसकी है? क्या एक गलती मेरे इतने दिनों के
प्यार को भी फीका कर देगी? वो हमेशा कहता है ये गलती नहीं है आदत है तुम्हारी.
गलतियाँ सुधारी जा सकती हैं पर आदतें बदलना इन्सान के वश में नहीं होता. अगर ये सच
होता तो मेरी इतने बरसों की बुरी आदतें यूँ एक पल में कैसे बदल जातीं? अगर वो
आदतें छूट गईं तो ये भी ज़रूर छूटेगी. मुझे विश्वास है.
उसने कहा था भूल जाओ
अब मुझे. मैं वापस नहीं आऊंगा अब. मैं कभी नहीं देखूंगा अब तुम्हारी तरफ. कभी नहीं...बड़ा
लंबा अरसा होता है ये कभी नहीं भगवान्. एक ही जगह पर रहते हुए क्या भूल सकता है वो
मुझे? क्या सच ही इतना हल्का है मेरे प्यार का पलड़ा. जो भी हो...मुझे अपने आप को
संभालना है. मन डूब रहा है, ऑंखें भर आई हैं, पर नहीं...टूटने बिखरने के लिए नहीं
मिली है ये ज़िंदगी मुझे. मुझे उसके हिस्से की हिम्मत भी आज खुद जुटानी होगी. भरोसा
करना होगा अपने आप पर.गलतियाँ सब से होती हैं, मुझसे भी हुई हैं. एक गलती से
ज़िंदगी ख़त्म नहीं हो जाती.
बड़ा अच्छा तरीका
अपनाया उसने मुझे तोड़ने का. किसी और के साथ हूँ. पर मैं भी आज खुद से वादा करती
हूँ. अगर सचमुच वो किसी के साथ हो तब भी मैं नहीं टूटने वाली. नहीं दुहराउंगी अपनी
गलतियाँ. नहीं करूंगी अब वो सब कुछ फिर से. मैं वादा करती हूँ. वादा करती हूँ मैं
सबके सामने कभी नहीं आने दूंगी अपनी तकलीफ. कभी ये एहसास नहीं होने दूंगी कि वो
मेरे लिए क्या एहमियत रखता है. मेरी ज़िंदगी में आग लगाने वाले कोई पराये नहीं थे,
मेरे अपने ही थे. तो अब मैं किसी को भी अपना नहीं मानूंगी, सब गैर हैं मेरे लिए. जिन
लोगों को मैंने अपना एक एक ज़ख्म दिखाया वो सारे उस पर नमक छिड़कने से बाज़ नहीं आए.
तो वादा करती हूँ, मेरे ज़ख्म अब किसी को नहीं दिखेंगे. कोई नहीं जान पायेगा कि
मेरे मन में क्या क्या छुपा है.मैं किस कहर से गुज़र कर आ रही हूँ. उसने मुझसे इतने
सारे वादे किये थे,उसने सब तोड़ दिए. उसका कहना है कि गलती मेरी है. वो तो पहले ही
मान चुकी हूँ. मैंने उम्मीद की, भरोसा किया, अपने दर्द बांटे, खुद को इन्सान समझा.
इतनी छोटी नहीं है मेरी गलतियों की फेहरिस्त. तो अब वादा करती हूँ, कोई गलती नहीं
दुहराउंगी. अब कोई कभी मुझ तक नहीं पहुँच सकेगा. मैं किसी पर विश्वास नहीं करूंगी.
किसी से प्यार तो बिलकुल नहीं करूंगी. प्यार बहुत तकलीफ देता है. वादा करती हूँ इस
तकलीफ से अब खुद को कभी नहीं गुजरने दूंगी. वादा करती हूँ भगवान्. मैं अब सिर्फ
खुद को प्यार करूंगी, वो करूंगी जो मुझे अच्छा लगता है. किसी की परवाह नहीं
करूंगी, किसी से नहीं डरूँगी. किसी की बात नहीं मानूंगी, किसी के आगे अपना सर नहीं
झुकाउंगी. जो रिश्ता मुझे अपना नहीं सकता, मैं भी उस रिश्ते को कभी नहीं अपनाउंगी.
भूल जाउंगी मैं भी तुमको, वादा करती हूँ. जीना सीखूंगी बिना तुम्हारे, वादा करती
हूँ, नहीं देखूंगी पलट कर अब तुम्हारी तरफ, वादा करती हूँ. वादा करती हूँ जितने
पत्थरदिल आज तुम बन गये हो, मैं भी उतनी ही बन कर दिखाउंगी. नहीं चाहिए कोई सहारा
मुझे. आज जब मुझे तुम्हारी ज़रुरत है, तुम मुझे ज्यादा से ज्यादा दुःख पहुँचाने में
लगे हो. मैं भी वादा करती हूँ, मैं फिर कभी किसी को इतना करीब आने ही नहीं दूंगी
की वो मुझे इस तरह तोड़ डाले. वादा करती हूँ मैं अपने आप से और तुमसे. अब बस ...मैं
अब और खुद को तकलीफ में नहीं डालूँगी, नहीं करुंगी अपने आप से कोई नाइंसाफी. वादा
करती हूँ. नहीं देखूंगी रास्ता तुम्हारा, नहीं करूंगी तुम्हारा इंतज़ार. नहीं
मांगूंगी कोई दुआ तुमसे जुड़ने की. नहीं चाहूंगी तुम्हारा साथ. कुछ नहीं मांगूंगी,
कुछ नहीं चाहूंगी, सिवाय उस सुकून के जो तुमने छीन लिया है, सिवाय उस नींद के जो
अब मुझे आती ही नहीं, सिवाय उस प्यार के जो मैंने तुमसे किया है. ईश्वर करे
तुम्हें भी मुझसे वही प्यार हो जो मुझे हो गया है तुमसे. तब लौट आना मेरे पास और खुला
मिलेगा हर दरवाजा तुम्हें, वादा करती हूँ.
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