अध्याय १८
हे ईश्वर
‘सॉरी मैं नहीं आ सकता.’ यही कहा न आज तुमने? मत
आना, कभी मत आना. तुम्हें कोई नहीं बुलाएगा. कोई तुम्हारा रास्ता नहीं देखेगा अब.
कोई तुम्हारे लिए पलकें नहीं बिछाएगा. आखिरकार तुमने भी अकेला छोड़ दिया है मुझे.
पर अपने अकेलेपन को किसी से बाँटने की मेरी हिम्मत नहीं है अब क्यूंकि जो भी मेरा
अकेलापन बाँटने आता है, वो मुझे और भी अकेला ही कर के जाता है. कह दिया आज तुमने
मुझे कि अपने अन्दर भी झाँक के देखूं. तुमने तो देखा था. क्या यही देख पाए थे?
मेरा गुस्सा और उसी गुस्से में कहे गये शब्दों के अलावा तुम्हें आज कुछ नज़र नहीं आ
रहा. समझ नहीं पाती हूँ मैं कभी कभी! आपकी गलती हो तो माफ़ कर दो और आगे बढ़ो. उस एक
गलती से रिश्ता तो नहीं टूट जाता न. मेरी गलती हो तो और कुछ हो न हो रिश्ते पर आंच
सबसे पहले आ जाती है. कई बार खुद अपने आप अपनी गलती मान कर झुक कर मनाया है आपको.
आज भी वही किया. पर आप ही के शब्दों में ‘अब तो गला भी काट के रख दूँ तो कुछ नहीं
होने वाला.’ तो ठीक है, न हो तो न सही. मैंने तुमसे इतना प्यार किया क्या मैं
तुम्हारे लिए इतना भी नहीं कर सकती? गला ही काट के रख देती हूँ. देखती हूँ कुछ
होता है या नहीं!
वैसे भी आपके लिए तो जितना भी करूँ उतना कम है.
आपने भी तो इतना कुछ किया. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं किसी के लिए इतना
मायने रख सकती हूँ. कोई मेरे हर दर्द की दवा खोज लाने के लिए इतना बैचैन हो सकता है.
कोई इस तरह मेरा ख्याल रख सकता है कि न होकर भी मेरे आस पास एहसास रहता है उसका. कोई
जिसने आकर मेरी हर चिंता, मेरी हर फिक्र अपने ऊपर कुछ ऐसे ले ली कि अब मैं अपने
बारे में सोचना ही भूल चुकी हूँ. एक बात बताओगे आप? अब क्या करूँ अगर रस्ते में
अचानक गाड़ी ख़राब हो जाये? अब किसका नंबर लिखूं हर उस जगह जहाँ मुझे अपना नंबर देना
सहज न लगे? अब किसे कहूँ कि मुझे घर छोड़ दे अगर दफ्तर में कभी देर हो जाये तो. अब
अगर कहीं जाने का मन करे तो किसकी इज़ाज़त लेके जाऊं? अब किसे बुलाऊँगी अगर अचानक
कभी रास्ता भूल गयी तो. आप तो अब नहीं आओगे. सच बताओ न. क्या सचमुच नहीं आओगे?
एक बात है जो मैंने आज तक आप से छुपा कर रखी. आज
कह देती हूँ. जो कुछ आपने मेरे लिए किया, वो सब मैं खुद भी कर सकती थी. पर बहुत
अच्छा लगता है आपसे कोई भी काम कहना. अच्छा लगता है जब आप मुझे समझाते समझाते डांट
देते हैं. अच्छा लगता है जब इतने गुस्से में भी आप मुझे हक से कहते हैं कि इधर उधर
कहीं जाने के बजाय सीधे घर चले जाना. अच्छा लगता है जब आप उलटे सीधे बहाने बना कर
मुझे फ़ोन करते हैं बस ये जानने के लिए कि मैं ठीक से घर पहुँची या नहीं. अच्छा लगता है जब आप मुझे एहसास दिला देते हैं
कि आप आस पास ही हैं. मेरे साथ ही हैं. अच्छा लगता है जब आप मुझे सलाह भी देते हैं
और ये भी कहते हैं कि जो मर्जी आए करो. अपनी मर्जी चलानी होती तो न! अभी तो अच्छा
लगता है आपकी हर बात सर झुका कर मान लेना. मैं घूमने जाना चाहती हूँ पर जाऊँगी
नहीं. आपको फिक्र जो है इतनी मेरी. मैं जानती हूँ भले ही देखने वालों को लगता हो
कि आप को पता नहीं चल क्या रहा है, पर आप मेरी एक एक हरकत से बखूबी वाकिफ हैं. लोगों
को लगता है कि मैं अकेली हूँ पर मैं अकेली नहीं हूँ. आपने कहा है कि आप नहीं
आयेंगे पर आप गये ही कहाँ हैं जो आप वापस आयेंगे.
बहुत कुछ है जो करना रह गया है और मैं आपकी एक
हाँ का इंतज़ार कर रही हूँ. काश एक बार फिर आप कह दें, आता हूँ. पर आप तो अब आयेंगे
नहीं. है न?
💜💜💜💜
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