अध्याय २७
मेरे ईश्वर
शकुन्तला नहीं हूँ मैं! फिर भी बहुत कुछ खो गया
है मेरा जिसे मैं तलाश रही हूँ. कभी वो उपहार जो मैंने तुम्हें दिए थे. कभी वो
सारी खुशियाँ जो मैंने तुम्हारे क़दमों में रख़ दी थीं इस उम्मीद में कि तुम भी मेरी
छोटी छोटी खुशियों का उतना ही ख्याल रखोगे. या फिर कभी वो सारी बातें जिनमें मेरी
सोच और मेरे दिल का हर दर्द छुपा था. बाँटने से पहले कहाँ सोचा था कि उन्हीं बातों
के लिए किसी दिन तुम मुझे बेशर्म का ख़िताब दे दोगे. या फिर तुम्हारी हर फिक्र जिसे
मैंने अपना समझ कर हल करने की कोशिश की. या मेरी जिंदगी और मेरा प्यार जो मैंने
तुम्हें सौंप दिया बिना ये सोचे कि इस जिंदगी और इस प्यार की तुमने अगर बेकद्री की
तो मुझे कितना दुःख होगा. तुम मेरी जिंदगी में अलग अलग नाम लेकर आये. हर बार अपने
से पहले आने वाले के लिए तुमने बहुत कुछ कहा और मुझे लगा कि तुम्हें मेरे दर्द का
एहसास है. कितना सुकून मिला था मुझे सुन कर कि गलती मेरी नहीं है. मैंने तो सिर्फ
एक इन्सान खोया जो मुझसे प्यार ही नहीं करता था पर उसने उससे कहीं ज्यादा खो दिया
मेरा साथ छोड़कर. ये भी सुना इन कानों ने कि मैं कभी तुम्हें चोट नहीं पहुंचाउंगा,
हमेशा तुम्हारा ख्याल रखूँगा. विश्वास करो मैं तुम्हें बेहद प्यार करूँगा हमेशा.
उस हमेशा की उम्र बहुत छोटी थी. बात अगर इतनी ही होती तो शायद मैं सह भी लेती. पर
मैं भूल नहीं पा रही वो सारे इलज़ाम जो तुमने मुझ पर लगाये. रिश्ता तोड़ने की अपनी
कोशिश में तुम भूल गये थे कि तुमने मुझे किस भयानक दलदल में धकेल दिया.
निर्लज्ज, बदचलन, स्वार्थी, धूर्त, कुटिल,
कामी....न जाने कितने विशेषण हैं जो तुमने मेरे मत्थे मढ़ दिए. मैं तुम्हारे
इल्जामों के बोझ तले दबकर सांस लेना भी भूल गई. आज भी कभी कभी सोने नहीं देती हैं
वो सारी भयानक यादें मुझे. मैंने तो जी जान से सिर्फ तुमसे प्यार किया था. पर
तुमने मेरे प्यार को एक लिज़लिज़ा कीड़ा बना दिया और मुझे भी. मुझे ये तो एहसास है कि
मैं बेहद मज़बूत हूँ, न होती तो बिखर जाती. पर फिर भी कभी कभी लगता है क्या मिला
मुझे इतना संघर्ष करके? क्यूँ तुम्हारी हारी हुई दुनिया की तरह मैंने भी कभी कोई
समझौता नहीं कर लिया? आज भी नहीं कर पा रही.
हे ईश्वर तुम्हारी दुनिया के लोग ऐसे लोगों को
समझ ही नहीं पाते जिनका एक अतीत होता है जिसे वो छुपाना नहीं चाहते. हाँ कभी मेरी
जिंदगी में कोई था. पर भगवान आपकी दुनिया के वो लोग क्या मुझसे बेहतर हैं जो झूठे
रिश्तों और नकली धागों के पीछे अपने रिश्ते को छुपा लेते हैं. दो नावों की सवारी
करते हैं और किसी को पता भी नहीं चलने देते. क्या मैं भी उनमें शामिल हो जाऊं?
बताओ न? मेरे आस पास के लोग बहुत कुछ कहते हैं पर मुझे नहीं लगता वो कभी मुझे समझ
पाते होंगे. उनकी जिंदगी मेरे जैसी थोड़े थी.
लोग कहते हैं अच्छा सोचो, अतीत को भूल जाओ और आगे
बढ़ो. पर जब भी मैं किसी नए रिश्ते में कदम रखती हूँ तब लगता है कि उसे जानने का हक
है. कल को वही मुझसे कहेगा मैंने अपना अतीत छुपाया और उसे पता होता तो... तब क्या
करुँगी मैं?
मैं क्या करूँ? लोग मेरा विश्वास तोड़ देते हैं जब
भी मैं उन पर भरोसा करती हूँ. जो मुझसे प्यार करते हैं वो मेरे साथ रह नहीं पाते.
मेरी कड़वाहट मुझे उनसे दूर कर देती है. मैं ऐसे ही रहना चाहती हूँ हमेशा. प्यार
करने पर लोग उसका बदला नफरत से देते हैं. विश्वास करने पर विश्वास तोड़ देते हैं.
तुम्हारी दुनिया में प्यार की, विश्वास की कोई कीमत नहीं है भगवान.
मैं अब वो इन्सान हूँ ही नहीं जो किसी को प्यार
कर सके. तुम्हारी दुनिया ने मुझे बदल दिया. अब तो खुश होना चाहिए उसे, मेरा हर
अज़ीज़ रिश्ता तोड़ कर. पर आज भी खुश नहीं है. आज भी कोशिश कर रही है कि कुछ और टूटे,
कुछ और बिखरे. और बचा क्या है बर्बाद होने के लिए? फिर भी रूकती नहीं. मैं भी नहीं
रुकूँगी, मैं भी समझौता नहीं करुंगी. मेरी जिंदगी में रहने का हक उसी को है जो
मेरे अतीत को समझ सके, उसे स्वीकार कर सके. मेरे गुस्से के पीछे की तकलीफ और मेरी
हंसी के पीछे का दर्द समझ सके. जो मुझे प्यार कर सके मेरी बुरी से बुरी आदतों के साथ.
ऐसा एक इन्सान है तो भगवान पर पता नहीं कब तुम्हारी दुनिया मुझे उससे दूर करने में
कामयाब हो जाये? बस करो भगवान्. इस रिश्ते को बना कर रखो, मेरे विश्वास को बना कर
रखो.
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