अध्याय 20
हे ईश्वर
की होलो कोलकाता? कॉस्मोपॉलिटन, बुद्धिजीवी वर्ग,
लाल सलाम के झंडे लेके चलने वाला एक ज़रा सी नजदीकी से इतना घबरा गया? क्यूँ? पटे
पड़े रहते हैं अखबार और सोशल मीडिया हैंडल्स...खून में डूबे सड़क पर पड़े लोग हों या
खून करके उसे अपलोड करने वाले. सड़क चलती लड़कियों से बदसलूकी के किस्से या जानवरों से
क्रूरता के वीभत्स नज़ारे...ये सब देख कर अनदेखा करने वाले लोग आज प्यार जैसे मासूम
एहसास से इतना नाराज़ हो गये? सही है.
खैर तुमसे तो क्या कहूँ?
शुक्रिया भगवान्. वो वापस आ गये हैं पर थोड़े से
बदले बदले से हैं. किस्मत, कुंडली, लकीरों की बातें करते हैं और मेरे दिल की धड़कन
की नहीं. थोड़े दिन का साथ है कह कर एक दूरी बनाने को कहते हैं और ये नहीं सोचते कि
उनसे दूर होकर मैं खुद के भी नज़दीक नहीं रह पाऊँगी. दोस्ती निभाने के लिए कहते हैं
पर दोस्ती की सीमारेखा तो कब की टूट चुकी है, अब कैसे उस मोड़ से वापस लौट आऊँ? अब
तो वो जिंदगी हैं मेरी. आज फिर उन्होंने गुस्से में क्या कुछ नहीं कहा. आज पहली
बार मुझे लगा कि इस इन्सान के या किसी भी इन्सान के सामने अपना दिल और अपने अतीत
के पन्ने खोल कर मैंने बहुत बड़ी गलती की है. अगर इनकी हमदर्दी और नेक सीरत पर
विश्वास करके अपनी कहानी इन्हें नहीं बताती तो शायद आज इनके पास कहने को इतना कुछ
नहीं होता. इस तरह मेरे ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का बहाना नहीं होता. इस तरह मुझ पर
उंगली उठाने का सबब नहीं बनता. एक पल को तो कानों पर विश्वास नहीं हुआ. जिस इन्सान
ने मेरे हर ज़ख्म पर मरहम रखा था वो आज मुझे गलत ठहरा रहा था. मुझे कह रहा था कि
मैं किसी एक के साथ रह ही नहीं सकती. खुश रह ही नहीं सकती.
मेरे भगवान्, मेरी ज़िंदगी में आने वाला हर इन्सान
इतना कायर क्यूँ था? जवाब दो मुझे. जिन लोगों को मैंने एक अच्छी ज़िंदगी जीने के
लिए साहस दिया, जिनकी मुश्किल में उनका हौसला बढ़ाया, जिनके रस्ते की मुश्किलें दूर
करने की कोशिश की, वो सब आज मेरे साथ नहीं हैं. मेरी वजह से जिनकी ज़िन्दगी आसान
हुई थी आज वो ही मेरी हर मुश्किल की वजह बने हुए हैं. मेरे अतीत के कारण मेरे आज पर
लोग बड़ी आसानी से उंगली उठा देते हैं, भूल जाते हैं कि अतीत बदला नहीं जा सकता.
उसे सिर्फ भूला जा सकता है. उस से सीख लेके आगे बढ़ सकते हैं, उसके बोझ तले दब कर
अपने आपको सजा नहीं दी जा सकती. माफ़ क्यूँ नहीं कर देते लोग मुझे. मेरी गलतियों के
लिए...
हमारा रिश्ता कभी बराबरी का रिश्ता था ही नहीं.
जिस रिश्ते में मेरा एक इन्सान से बात करना भी उनको गवारा नहीं है उसी रिश्ते में रहकर
भी वो न जाने किस किस को मिलते भी हैं और साथ वक़्त भी बिताते हैं और इस बात को गलत
भी नहीं मानते. मुझसे किया वादा उनको याद भी नहीं रहा और किसी से एक ऐसा वादा कर
आए जिसने मुझे अन्दर से तोड़ दिया. कहते हैं पिछले दो तीन महीनों में मैंने उनके
साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. मुझे अपनी सारी गलतियों का एहसास है भगवान् पर काश
कभी वो भी समझते. मैंने किसी से बात कर भी ली तो उससे कुछ बदल तो नहीं गया. मैंने
प्यार किया था कभी उस इन्सान से. आज अगर उसे मेरी ज़रूरत पड़ी तो कदम पीछे नहीं खींच
पाई मैं. उसको मना नहीं कर पाई, वो मेरी मजबूरी थी भगवान् खुदगर्जी नहीं.
उनका कहना है अगर तुम खुश नहीं हो तो मत रहो मेरे
साथ. मैं कहाँ जाऊं भगवान्? बताइए न? क्या होती है ख़ुशी भगवान्? मैं अपने आप से
ज्यादा उन पर भरोसा करती हूँ. उनके साथ मैंने जिस सुरक्षा, जिस सम्पूर्णता को
महसूस किया, वो लोगों को ज़िन्दगी भर खोजने से भी नहीं मिलती. मैंने कभी उनसे कहा
था मैं उनसे मिलना नहीं चाहती. मैं उनसे मिल कर खुद को भूल जाती हूँ. उनके
रिश्तेदारों को उनकी फिक्र है. पूरे समाज को उनकी फिक्र है. एड़ी चोटी का जोर लगाये
जा रहे हैं लोग उन्हें मुझसे अलग करने के लिए. पर भगवान् मैं आपसे प्रार्थना करती
हूँ गलत साबित करो सब को. साबित करो कि मुझे और मेरे जैसी हर लड़की को एक नई शुरुआत
करने का हक है.
वो कहते हैं जब तुम शादी करोगी तब करूंगा सवाल
तुमसे. आप बताओ न? आपने लिखा है क्या कोई और मेरी किस्मत में? क्यूँ लिखा है भगवान्?
क्या मेरा मेरी खुशियों पर कोई हक नहीं? क्या मुझमें एक रिश्ता निभाने की काबिलियत
नहीं? क्या मैं इस लायक नहीं कि इनके साथ रह सकूँ? कैसी शादी होगी वो जिसमें वो
समर्पण ही नहीं होगा? क्या कोई मजबूरी होगी या समझौता कोई जिसके चलते अपना इतना
प्यारा रिश्ता मैं तोड़ दूंगी? मत करो ऐसा भगवन. मुझे और टुकड़ों में मत बांटो.
प्लीज भगवान्.
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