मेरी माँ
क्या सच में उन्होने वैसा
ही किया है जैसा वो कहते हैं? क्या सचमुच वो हर वर्जना, हर मर्यादा पर पाँव रख सकते हैं अपनी ज़िद में अंधे होकर? क्या उनके लिए उनका अहंकार इतना बड़ा हो गया है? या सच
में उस औरत ने इन पर कोई मोहिनी डाल दी है? क्या सच है भगवान? क्या मुझे कभी पता चलेगा? बताइये?
अगर ये सच है तो क्यूँ मुझे
छोड़ कर आगे नहीं बढ़ सकते वो? यदि झूठ है तो ऐसा सफ़ेद झूठ बोलते उन्हें क्यूँ
शर्म नहीं आई? आपने क्यूँ कहने दिया उनको ये सब? वो कहते हैं तुम्हारे बोले हुए अपशब्द ही तुम पर फलित होते हैं। सबको दिखती
है मेरी कड़वी ज़ुबान पर उस कड़वी ज़ुबान के पीछे कितना दुखा हुआ मेरा दिल है। वो किसी
को क्यूँ नहीं नज़र आता? सब कुछ दिया है आपने मुझे और मैं कोई
नाशुक्री तो हूँ नहीं माँ। आपको शुक्रिया अदा करने और अपने घमंड से निजात पाने ही तो
रखती हूँ हर साल ये व्रत। आपके नवरात्र मेरे जीवन के सबसे प्यारे दिन होते हैं। फिर
उन्हीं दिनों के बीच में ये शूल क्यूँ?
मेरे ईश्वर मैं आपसे बस एक
बात जानना चाहती हूँ। मेरे पूर्वजन्म में ऐसे कौन से पाप थे जिनका इतना भीषण दंड है? क्यूँ नहीं
बंद होता मेरे बुरे कर्मों का बही खाता? क्यूँ नहीं पूरी होती
मेरे लिए तय की हुई आपकी सारी की सारी सज़ा? क्या अपराध किया है
मैंने भगवान जो सब कुछ होकर भी मेरा मन इतना अशांत रहता है?
क्या करूँ कि मुझे सुकून
महसूस हो? सब कुछ करके देख लिया मैंने ईश्वर। आपसे प्रार्थना की, परोपकार किया, अपने जीवन और आचरण में ईमानदारी बरती
और अपनी रोज़ी रोटी से हमेशा इंसाफ करने की कोशिश की। फिर भी मेरी कोशिशें न जाने क्यूँ
कम पड़ जाती हैं। हर बार एक नया शूल, एक नई टीस, कोई नया विश्वासघात! क्यूँ? मैंने किसका दिल इतना दुखा
दिया ईश्वर? जवाब दो न? नहीं तो अब तो माफ
कर दो न मुझे!
No comments:
Post a Comment