Sunday, 20 October 2019

तुम अच्छी नहीं दिखती


हे ईश्वर
मेरे आत्मविश्वास का किला वैसे भी रेत का ही बना था। आपको उसे ढहाने के लिए इतने बड़े पहाड़ की क्या ज़रूरत थी? किसी की तारीफ का एक छोटा सा झोंका ही काफी था। एक वो दिन था जब उसने मुझे अपशब्द कहे थे और मैं दो दिन तक घर से कदम बाहर निकालने का साहस नहीं कर पाई थी। एक आज का दिन है उसने ऐसा कुछ कहा कि मैं बिना किसी डर के जब चाहूँ, जैसे चाहूँ निकल सकती हूँ। या शायद एक बार फिर खुद को घर की चारदीवारी में ही क़ैद कर लेना होगा, इस बार हमेशा के लिए।
ईश्वर उसने कहा कि मेरे जैसी लड़कियों के साथ कुछ भी बुरा होने की संभावना नगण्य है क्यूंकि मैं अच्छी नहीं दिखती। मैं अच्छी नहीं दिखती! अचानक से मेरी सादगी पर बेतरह गुस्सा आने लगा मुझे। आईना हंसने सा लगा मुझ पर। कहा था न कि इस दुनिया में दिखावा ही सब कुछ है। क्यूँ अपने आचरण, चरित्र, सोच और ज्ञान पर मेहनत किए चली जा रही है। कुछ अपने चेहरे का भी तो सोच! क्या फायदा तेरी इन 300 किताबों का? गीत संगीत में तेरी रुचि का। कागज़ काले करने के तेरे इस गुण का? क्या फायदा भीड़ को संबोधित कर सकते की तेरी क्षमता का। एक चमकीले चेहरे और तड़क भड़क वाले परिधानों के सामने ये सब कुछ भी नहीं है।
अचानक से मन कर रहा है मैं अपने सारे अच्छे कपड़े जला दूँ, अपने काजल और लाली सब उठा के कचरे में फेंक दूँ। अपने सारे शालीन कपड़ों की जगह मैं भी चिथड़े लपेट कर सड़कों पर घूमा करूँ। कम से कम तब तो मैं उसको अच्छी दिखूंगी शायद?
कैसी कैसी बातें करती हूँ न मैं भी? पता नहीं क्यूँ? कह दिया तो कह दिया उसने। मैं क्यूँ इतना सोच रही हूँ! पर नहीं मेरा मन है कि शांत ही नहीं हो रहा। सोचे जा रहा है कि अगर कभी मेरे साथ कुछ भी गलत हुआ तो क्या वो मानेगा? या तब भी यही कह देगा कि इसके साथ तो ऐसा हो ही नहीं सकता क्यूंकि ये तो अच्छी नहीं दिखती।
अच्छा ही हुआ कि मैंने कभी चाय की ट्रे वाला सीन नहीं किया है। वरना अनगिनत बार यही सुनना पड़ता कि मैं अच्छी नहीं दिखती।

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