कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक नई कहानी की बहुत
चर्चा सुनी। कुछ लोगों ने उसे एक गलत किरदार का महिमामंडन बताया तो कुछ उसे नारीवाद
का विरोधी भी करार देने लगे। कहानी बेहद सादी और साधारण सी थी। प्रेम कहानी में
परिवार के विरोध पर हम पहले भी बहुत कुछ देख चुके हैं। कहानी का नायक एक
प्रतिष्ठित और कुशल सर्जन है। यानि वो ऐसा व्यक्ति है जो न सिर्फ काफी पढ़ा लिखा
बल्कि सुलझा और संतुलित भी है। साथ ही वो किसी से बेइंतेहा प्रेम करता है। उस
प्रेम के लिए वो उसे पूरे कॉलेज के सामने ‘मेरी बंदी’ भी बोल देता है। लड़कों को उससे दूर रहने की चेतावनी भी देता है
और उस पर उंगली उठाने वालों को सज़ा भी देता है। उससे अलग होकर वो शराब को अपना
साथी बना लेता है पर खुद को बचाने के लिए झूठ का सहारा नहीं लेता। उसके ही शब्दों
में ‘I am not a rebel without a cause’।
वो लड़की पूरे कथानक में कुछ ही शब्द बोलती है। पर
उसकी आँखों में कहीं भी कबीर के व्यवहार के लिए वितृष्णा या विरोध नहीं दिखता। वो
चुपचाप कबीर के प्यार को स्वीकार कर लेती है। अपने परिवार के विरोध के बावजूद अपना
रिश्ता बचाने की कोशिश करती है। एक अनचाहे रिश्ते को अस्वीकार करके अपना घर परिवार
भी छोड़ देती है। उसके साथ जो भी होता है वो सहती है पर हार नहीं मानती। वो अपने आप
में बेहद शांत लेकिन बेहद मज़बूत किरदार है। रहा कबीर तो वो कहीं से भी उसके
व्यक्तित्व को दबाता नहीं दिखता। खासकर जब गुस्से में उस पर चिल्लाने के लिए
नायिका उसे थप्पड़ मारती है, वो उग्र होने के बजाए अपनी गलती स्वीकार कर लेता है। एक और
दृश्य में वो नायिका से कहता है ‘Talk to your father like you
are your own woman. Talk with the same self-confidence with which you talk to
me.’
वो उसे पढ़ाता भी है और कोई विषय न जानने पर चुपचाप
क्लास से बाहर भी चला जाता है। वो कोई उन्मादी प्रेमी नहीं जो नायिका न मिले तो
उसकी हत्या कर दे। वो चुपचाप उसके रास्ते से हट कर उसे मौका देता है खुद का निर्णय
लेने का। ऐसे व्यक्ति के प्रेम में उत्कंठा है, उन्माद नहीं। कबीर नायक है, खलनायक नहीं।
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