हे ईश्वर
वक़्त के साथ सब ठीक हो
जाएगा। ये कहने वाले ने शायद कभी वक़्त गुजरते नहीं देखा। वो वक़्त जब एक पल भी
गुज़ारना भारी लगता है। वो वक़्त जब आप सांस तक नहीं ले पाते ठीक से। वो वक़्त जब आप
अपने देखे हुए सारे सपनों को खुद अपने ही हाथों से आग लगा रहे होते हैं। नहीं देखा
होगा उसने वो वक़्त जब आपकी ही आँखों के सामने आपका कोई रिश्ता मरता है और आप उसे
बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाते। वो वक़्त जब आपकी हर कोशिश बेकार हो जाती है। वो
वक़्त जब छोटी बड़ी हर याद आँखों के सामने से ऐसे गुजरती है जैसे अभी कुछ ही देर
पहले की बात हो। वो वक़्त जब आप रात रात जागकर सोचते हैं कि काश ऐसे कहा होता, काश ऐसे
किया होता। वो वक़्त जब आपके आस पास की हर एक चीज़ आपको वही गुज़रा हुआ वक़्त याद
दिलाने लगती है।
सच है वक़्त हर जख्म भर
देता है। पर भरे हुए जख्म भी कभी कभी एक छोटी सी बात पर हरे हो जाते हैं। जैसे आज
हुआ है। सबको लगता है जो लोग टूटे हुए रिश्तों से गुजरे होते हैं उनको रिश्तों के
टूटने से कोई फर्क नहीं पड़ता। पर किसी को नहीं पता कि हर टूटता हुआ रिश्ता हमें
अंदर से किस कदर तोड़ देता है, खाली कर देता है। खुद पर बहुत गुस्सा आता
है। आप पर भी बहुत गुस्सा आता है।
आपकी दुनिया हमेशा गिर
कर उठने वाले को शाबाशी तो देती है पर कभी नहीं देख पाती कि उसको उठने में कितनी
कोशिश करनी पड़ती है। कितना हौसला जुटाना पड़ता है। एक बार जब असफल हो जाए तो दुबारा
इम्तेहान देने के लिए किस कदर हिम्मत चाहिए, तुम्हारी दुनिया को कोई अंदाज़ा नहीं है।
पर मैं अब उठना नहीं
चाहती। मैं नहीं चाहती कि मेरा कोई ज़ख्म भरे। मैं भूलना भी नहीं चाहती कुछ। मैं बस
इतना चाहती हूँ कि आज जो मेरे साथ हुआ वो मुझे जिंदगी भर याद रहे। मैं बस इतना
चाहती हूँ कि तुम्हारी दुनिया और इसके लोगों पर से मेरा भरोसा आज हमेशा के लिए उठ
जाए। मैं अब किसी का भरोसा नहीं करना चाहती। मैं अब दुबारा ठोकर खाना नहीं चाहती।
मैं अब कभी भी किसी के भी पास नहीं रहना चाहती। मैं तुम्हारी दुनिया में रहकर भी
तुम्हारी दुनिया से इतना दूर रहना चाहती हूँ कि इसकी परछाई भी मुझे न छू सके। इतना
तो मेरे लिए कर ही सकते हैं न आप? ईश्वर जो ठहरे!
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