हे ईश्वर
घर घर खेलने चले थे हम, बुद्धू
हैं न तो लौट के घर आ गए हैं। दो हिस्सों में बाँट दिया है हमने अपने आप को। उसने
मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया? कितना भी सोचें पर जवाब शायद कभी न
मिले। सारे जवाब तो आपके पास हैं और आप हैं कि चुप लगा के बैठे हुए हैं। कितने
सालों से चुप हैं न आप? कुछ बोलते क्यूँ नहीं! लोग अक्सर
पूछते रहते हैं तुम ऐसा क्या मांगती हो भगवान से? पर सच कहूँ
कि जब भी आपके पास आती हूँ सिर्फ शुक्रिया कहने आती हूँ। शुक्रिया अपने इस जीवन के
लिए और उन लोगों के लिए जो मेरे साथ हमेशा रहते हैं।
मैंने सोच लिया था कि
शायद हमारा इतना प्यारा सा साथ यहीं खत्म हो गया। पर आपने बचा लिया। लोग सोचते
होंगे क्या एक रिश्ते के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं? है तो
पर अधूरा। जब वो नहीं होते मैं भी नहीं होती हूँ जैसे। सब कुछ रह कर भी कुछ नहीं
रहता। हर कोई कहता है आप अकेले रहते हो तो आपको कुछ अधूरा नहीं लगता? ये अधूरापन आपको तब तक नहीं छू सकता जब तक आपने किसी को अपने करीब आकर
दूर जाते न महसूस किया हो। जब आप अकेले होते हो तब आप आज़ाद होते हो। किसी की कमी
आपको तभी खलती है जब कोई आपके जीवन के खालीपन में कुछ समय के लिए जगह घेर लेता है।
तो अब मेरे जैसे लोग क्या
करें? अपने चारों तरफ लकीरें खींच दें? किसी को न आने दें
अपने करीब? किसी से कोई वास्ता न रखें?
क्या प्यार पर विश्वास ही करना छोड़ दें? बहुत से ऐसे ही नियम
कायदे दिमाग में आते हैं। पर दिल है कि सुनता ही नहीं! किसी न किसी से तो कह देता है
अपने मन की बात। सच कहो? इतनी स्वार्थी दुनिया में इतना नाज़ुक
दिल देकर आपने मुझे न जाने क्यूँ भेजा? आप ही जानते होंगे। इंसान
के स्वार्थ ने उसकी दुनिया, उसके रिश्ते और उसकी सारी नैतिकता
की आँखों पर पट्टी बांध रखी है। मैं और मेरे जैसे न जाने कितने लोग इसी पट्टी के खुलने
का इंतज़ार कर रहे हैं। हमारा इंतज़ार शायद हमारे जीवन जितना लंबा हो। पर इस भरे पूरे
जीवन में इतनी छोटी सी कमी का क्या ही ज़िक्र करूँ! शुक्रिया भगवान। आपने मुझे दोनों
हाथों से दिया और बहुत दिया।
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