Monday, 12 August 2019

धोखा है?


हे ईश्वर

कितने सवाल पूछूं मैं आपसे? कितनी बार हाथ जोड़ूँ? आप मुझे सच क्यूँ नहीं बताते? जब कभी मैं सोचती हूँ कि वो एक छलावा है, झूठ है उस समय उसकी कोई न कोई अच्छाई मुझे एहसास दिला देती है कि वो बुरा इंसान नहीं है। उसे मैं गलत समझ रही हूँ। जब कभी उसकी अच्छाइयों पर निश्चिंत होकर आँख मूँद कर विश्वास कर लेती हूँ वो अपनी किसी बात से मेरा दिल दुखा देता है। भगवान वो कैसा इंसान है? क्यूँ इतना मुश्किल है उसे समझ पाना?

आपने मेरी जिंदगी में ऐसे कितने छलावे और लिखे हैं? क्या मेरी यही नियति है कि मैं जिस पर भी विश्वास करूँ वो मुझे धोखा ही देगा। क्या यही मेरी किस्मत है कि मैं जिसे भी प्यार करूँ वो मुझे नीचा ही दिखाएगा, मुझसे नफरत ही करेगा। वो मुझसे नफरत नहीं करता पर ये कैसा प्यार है? आप बताओ!

मुझे सुकून चाहिए ईश्वर। वो सुकून जो इस विश्वास से मिलता है कि कुछ भी हो वो मेरे साथ है। क्या मैंने कुछ ज़्यादा मांगा है आपसे? एक ज़रा सा भरोसा कि जिस तरह मैं उसकी खुशी और सुकून के लिए कुछ भी कर सकती हूँ, वो भी मेरे मुश्किल हालात में मेरा साथ नहीं छोड़ेगा। बुरे से बुरे  इंसान को ये हक़ होता है कि कोई उसे दुनिया से अलग समझे, उस पर विश्वास करे और उसे प्यार करे। मैं भी आपसे अपना यही हक़ मांग रही हूँ। मैं थक गई हूँ भगवान। अब मैं आराम चाहती हूँ।

समझाओ उसे ईश्वर। मैंने आँख मूँद कर उस पर विश्वास किया है, दुनिया छोड़ कर उसका दामन थामा है। याद दिलाओ इसे वो सारे समझौते जो सिर्फ उसके लिए मैंने किए हैं। दिखाओ उसे इस मतलबी दुनिया में उसके पास किसी का निस्वार्थ और निशर्त प्रेम है। उसे इस प्रेम की कद्र करना सिखाओ ईश्वर, प्लीज।

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