Friday, 9 August 2019

खुशफहमियाँ...


हे ईश्वर

क्या छलावा बनाया है तुमने? कहानियों में, किताबों में, फिल्मों में। जहां सच की जीत होती है और झूठ की हार। कहानियाँ हैं जहां अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है। जहां लोग अपने समाज और परिवार के विरोध में जाकर भी सच का साथ देते हैं, आदर्शों पर अटल रहते हैं, प्यार की कद्र करते हैं। असलियत ऐसी कहाँ होती है? बोलो न? कहाँ है प्यार की कद्र करने वाले? सच का साथ देने वाले? आदर्शों पर मर मिटने वाले। आजकल तो झूठों का ही राज है सारी दुनिया में। भीड़तंत्र न्याय पर हावी है और चाटुकारिता प्रतिभा और ज्ञान पर।

वैसे देखा जाए तो आजकल की फिल्मों और किताबों में कहाँ रह गया है वो रस और बोध? कुछ गिने चुने प्रयासों को छोड़ दें तो कोई भी मन को नहीं छूता। सब सतही और निम्न स्तरीय। ऐसा लगता है सुबह से शाम तक इंसान के दिमाग को चेतनाविहीन करने की कोई साजिश सी चल रही है। उद्देश्यहीन व्यस्तता में उलझाने का जाल बुना जा रहा है। चिंतन के लिए मनन के लिए समय ही नहीं देते हैं तरह तरह के ये मायाजाल।

आज का सच तो यही है कि दुनिया बस इस्तेमाल की भाषा जानती है, स्वार्थ की बोली बोलती है। अपना स्वार्थ पूरा होते ही अंधेरी सड़क पर एक लड़की को अकेला छोड़ देना ही आपके आजकल के युवा ने सीखा है। आपकी दुनिया की रग रग से वाकिफ होकर भी मैंने न जाने क्यूँ इससे सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम और सत्यनिष्ठा की उम्मीद लगा रखी थी? मेरी हर उम्मीद तोड़ कर भी उसकी आँखों में शर्म नहीं, अहंकार है। 

तो होने दो। मेरे लिए जो राह आपने चुनी है मुझे तो उसी पर चलना है। आपकी दुनिया से ठोकर खाकर भी मुझे खुद को खुद ही संभालना है, संवारना है। अब मुझे उम्मीद करनी ही होगी तो सिर्फ आईना देखूँगी। खुद से करूंगी हर उम्मीद, खुद के लिए देखूँगी हर सपना। बार बार खुद को यही समझाती हूँ, फिर भी तुम्हारी दुनिया के मायाजाल में उलझ ही जाती हूँ। या तो ये मायाजाल तोड़ दो या इसमें भी मेरे लिए एक सुरक्षित कोना ढूंढ दो। जहां मेरे सपनों की और मेरी रक्षा करने वाला हो।

No comments:

Post a Comment

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...