Thursday, 22 August 2019

दुखवा मैं कासे कहूँ?


हे ईश्वर
कितना प्यारा सा रिश्ता था मेरा, तोड़ कर आपको क्या मिला? खुशफहमी ही सही, रहने देते। लोग यूं ही तो नहीं नशे में खुद को भूलने की कोशिश करते। मैं जानती हूँ कि गलत उसने किया था फिर भी मेरा ध्यान बार बार अपनी गलतियों पर जाता है। क्या बिलकुल ही मर गया है मेरा खुद पर यकीन? बताइये न? क्यूँ बार बार ऐसा लगता है जैसे गलती मेरी थी? वैसे भी अब तो मुझे आदत पड़ ही गई है। दूसरों से पहले खुद से उम्मीद लगाने की। अपने प्यार की सच्चाई को साबित करते करते भूल ही गई थी कि वो भी तो सच्चा होना चाहिए जिससे मैंने प्यार किया है। अब वही बातें उसकी, कोई और होगा, तुम उसी के साथ रहोगी। मैंने खुद को इस कदर समेट लिया है कि उसके अलावा कोई भी हो मुझे भीड़ ही लगती है, अपनापन नहीं।

मेरी जिंदगी में अब कहीं कोई खुशी नज़र नहीं आ रही। शायद मैं इसी दिन का इंतज़ार कर रही थी। कितना स्वाभाविक सा लगता है रात रात भर जाग कर बिताना। मेरा मन खुशी बर्दाश्त ही नहीं कर पाता। उसे तो दुख में ही जीना अच्छा लगता है। किसी भी इंसान की परिस्थितियाँ तब तक नहीं बदलती जब तक वो खुद नहीं बदलता। मैंने अपने को बदलने की हर संभव कोशिश कर ली, सब बेकार लगती है। ऐसे धूप छांव में न मैं पूरी तरह खुश रह पाती हूँ, न ही उदास। कभी कभी खुशी से नाचते झूमते दिन ऐसा बीतता है कि पता ही नहीं चलता। कभी कभी मन ऐसा डूबा रहता है कि बिस्तर से उठना तक दूभर हो जाता है।

उसका कहना है कि मैं नहीं तो कोई और ज़रूर होगा। पर जब से वो मिला मेरे दिल ने शिद्दत से बस एक ही तमन्ना की है। किसी दिन, किसी पल उसे एहसास हो कि उससे मिल कर मेरी हर चाह, हर इच्छा पूरी हो गई है। मन मार कर समझौता करना होता तो शादी कोई बुरा विकल्प नहीं था। सिर्फ कुछ दिन के लिए मुझे अपनी अंतरात्मा का गला घोंटना था। पर मेरा मन चीखने लगता है किसी और के नाम पर। एक रिश्ते में रह कर उसका मान न रख पाई तो अपनी ही नज़र में गिर जाऊँगी।

इस सब में मुझे बस एक ही बात का दुख होता है। उस औरत का मुझे नीचा दिखाने का अरमान पूरा हो गया। वो भी उस इंसान की नज़रों में जिससे मैं इतना प्यार करती हूँ। खैर! आप हैं तो एक दिन ज़रूर उसे अपनी गलती का एहसास होगा। पता नहीं वो लौटेगा तो मैं उसे स्वीकार कर भी पाऊँगी या नहीं। पर उसे मेरे पास वापस तो आना ही है। आना है न?

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