हे
ईश्वर
‘तुम शादी कर लो। पढ़ी लिखी हो, अच्छे घर से हो, अच्छा कमाती भी हो! क्यूँ अपनी जिंदगी खराब कर रही?’ प्यार, समर्पण और एकनिष्ठा के एवज़ में कल ये समझाईश
मिली मुझे। अक्सर मिलती रहती है! पर मैं किसी को कैसे समझाऊँ? क्या चाहती हूँ कैसे कहूँ? जिस इंसान ने मुझे मेरे
लिए कोशिश करने का वचन दिया था आज वो हार चुका है समाज के खोखले नियम क़ानूनों और
रीति रिवाजों से। आँख बंद करके चलता जा रहा है उस रास्ते पर जहां से वो मुझसे इतनी
दूर हो जाएगा कि उसे आवाज़ भी नहीं दे सकूँगी। अब वो कहता है ‘तुम भी शादी कर लो’ सिर्फ इसलिए क्यूंकि उसके अंदर सबके
सामने मुझे स्वीकार करने का साहस नहीं है।
अपने
सपने बेच दूँ तो बदले में मिलेगा मुझे समाज का बनाया एक खोखला रिवाज। वो रिवाज
जिसमें मेरा शरीर तो होगा पर आत्मा नहीं। लोग कहते हैं हो सकता है तुम्हें उससे
प्यार हो जाए। हो सकता है वो बहुत अच्छा हो। तुम्हें खुश रखे, तुम्हारा ख्याल रखे। पर नहीं हुआ तो? इसका जवाब
नहीं मिला मुझे। लोग कहते हैं कैसे नहीं होगा और नहीं हुआ तो उसे छोड़ देना तुम। एक
रिश्ता टूट जाने के बाद मैंने फिर से एक नया रिश्ता बनाने की हिम्मत की थी, सपने देखने का साहस किया और उनके पूरे होने की उम्मीद भी की। इसलिए क्या सब
को लगता है कि टूटते हुए रिश्तों का मुझ पर असर नहीं पड़ता?
माना
कि मैं अभी समाज के सामने उसका नाम अपने नाम के साथ नहीं ले सकती, पर फिर भी मेरा नाम उससे ही जुड़ा है। मैं भी उसी की हूँ, उसी के साथ हूँ। बदलते वक़्त का भरोसा न सही। पर आज तो मेरा प्यार और मेरी
वफादारी उस इंसान के लिए है। आने वाले कल के डर से मैं क्यूँ अपना आज भूल जाऊँ? मुझे पता है ईश्वर आप जो करेंगे अच्छा करेंगे।
जब
आदि से अंत तक एक भटकन ही मेरी नियति है तो किसी को साथ घसीट के मुझे क्या मिलेगा।
मेरा सफर बहुत लंबा है। पर मैं तो अभी थकी नहीं। इस बीच कभी कभी बीता हुआ कल आँखों
के आगे आ जाता है। कल जब मैं किसी के साथ चलने को तैयार थी, इंतज़ार करने को तैयार थी... बेशर्त प्यार किया था। तब न उसे मेरा प्यार
अच्छा लगा, न इंतज़ार, न साथ। आज जब मैं
उस अतीत से बाहर आ चुकी हूँ, भूल चुकी हूँ सब तो क्यूँ लौटना
चाहता है?
बस
इतना और भगवान। उनके मुंह से ये सब कहला कर मेरे प्यार, मेरी वफादारी और मेरे रिश्ते को गाली मत दो। किसी को कोई हक़ नहीं कि
मुझसे मेरा इंतज़ार करने का हक़ छीन ले। मैं इंतज़ार करूंगी और मुझे यकीन है कि मेरा
भी एक वक़्त है, जो ज़रूर आएगा। उस दिन लोगों को उनके सारे
सवालों के जवाब मिल जाएंगे और मुझे मिलेगा मेरा हक़। समाज के सामने किसी को अपना
कहने का हक़।
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