हे ईश्वर
आज फिर अंतर्राष्ट्रीय महिला
दिवस है और शुभकामनाएँ हवा में ऐसे तैर रही हैं जैसे नया साल या दिवाली हो। पता नहीं
मेरे ही कान खराब हैं कि मुझे महिला दिवस की शुभकामना save the tiger या save water जैसी सुनाई देती है। ऐसा लगता है जैसे
हम सब महिलाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं और इसलिए हमें बचाने के सौ सौ जतन किए जा
रही है दुनिया।
महिला दिवस है तो पर अपनी
एसी गाड़ी में बैठी उस समाज सेविका के लिए जिसे न जाने कितने व्याख्यान आज देने हैं।
है महिला दिवस पर उस स्त्री के लिए जो आज के दिन कहीं घूमने निकल जाएगी और आड़ी टेढ़ी
शक्लें बना कर तस्वीरें खिंचवाएगी। महिला दिवस है उस स्त्री के लिए जो बाहर से खाना
मंगवाएगी या फिर रोज़ जैसे बाहर खाने निकल जाएगी। या फिर उस स्त्री के लिए जो अपनी महंगी
कार में डिज़ाइनर कपड़े पहने कॉलेज जाएगी। महिला दिवस है उस स्त्री के लिए जिसके घरवाले
उसके सौ सौ नखरे उठाते नहीं थकते।
ये महिला दिवस न बड़े लोगों
के चोंचले हैं सारे!! उस स्त्री का क्या जिसे अभी चूल्हे के सामने खाना बनाना होगा
और सबको गरम रोटी परोस कर खुद बचा खुचा खाना होगा। उस स्त्री के लिए कोई महिला दिवस
नहीं जो आज भी नशेड़ी पति की मार खाएगी। महिला दिवस तो उस स्त्री का भी नहीं जिसकी प्रतिकृति
उसके कोख से बार बार मिटाई जाती है। उस बच्ची के लिए भी नहीं जिसे रोज़ कि तरह कोई अनचाहा
स्पर्श झेलना होगा। उस स्त्री के लिए भी नहीं जो अपने सपने मार कर डोली में चुपचाप
बैठ जाएगी। उस स्त्री का भी नहीं जो पढ़ाई छोड़ कर घर के काम काज में बसी रहती है।
उस स्त्री के लिए भी कभी
कोई महिला दिवस होगा क्या जो दहेज का पलड़ा हल्का होने पर विवाह वेदी तक नहीं पहुँच
पातीं? या वो जिसकी साहस और क्षमता तो आसमान छूने की है पर उसे उसके सपनों को बस
इसलिए भूलना पड़ता है क्यूंकि वो एक लड़की है!
अभी तक तो हम उन ज़ख़्मों को
भी नहीं सहेज पा रहे जो स्त्री शरीर पर लगते हैं। उन ज़ख़्मों की तो अभी बात भी नहीं
हो रही जो मन छलनी करते हैं और आत्मा कलुषित करते हैं। जब तक ये सारे ज़ख्म मिट नहीं
जाते तब तक महिला दिवस आप बोलते रहिए मैं तो save the tiger ही सुनुंगी!!
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