Thursday, 16 December 2021

दोराहा

 

“जीवन में कभी भी तुम्हें लगे कि कोई और मुझसे बेहतर है तो चली जाना तुम, मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा।“ यही कहा है न तुमने? अपनी मजबूरियों का हवाला देते हो, परिवार का वास्ता भी? गज़ब के अदाकार हो तुम भी! क्यूँ तुम्हें ये मजबूरी याद नहीं थी जब तुमने इस रिश्ते की ओर पहला कदम बढ़ाया था? पूछा था न मैंने तुमसे, तब तो समय था। मेरी कमियाँ गिनवा सकते थे, मुझे छोड़ कर अलग रास्ते पर जा सकते थे। क्यूँ नहीं गए? अब क्या करूँ तुम्हारी माफी का, क्या करूँ तुम्हारी मजबूरियों का और क्या करूँ तुम्हारा? बोलो!!!

 कोई और.... इस शब्द ने मेरे जीवन में इतना जहर घोला है कि आज तक खून थूक रही हूँ मैं। भूली नहीं हूँ मैं कुछ भी, बस तुम्हारे जहर ने असर करना बंद कर दिया है। मुझे याद है जब तुम्हारी बातों से परेशान होकर अपनी रातों की नींद गंवा देती थी मैं। एक बार भी ब्लॉक कर दो तो रात रात भर भगवान से मिन्नतें करती थी। कितनी अजीब थी मैं? मेरी गलती न होते हुए भी अपने को बेहिसाब सज़ा दी है मैंने। आज सोचती हूँ तो उस बेबस लड़की पर बहुत गुस्सा आता है मुझे। प्यार करती है वो ठीक था पर प्यार में अपने आप को भूल गई, क्यूँ?

 पर अब लगता है मेरी सज़ा की मियाद खत्म हो गई है। अब समझ चुकी हूँ मैं कि मैं गलत नहीं हूँ। हर बार तुम्हारे व्यवहार से आहत होने वाला मन अब शांत है। मुझे वो लोग मिले जिन्होने मुझे मुझसे ही मिलवा दिया। मुझे याद है इनके लिए तुमने क्या कहा था! छोड़ दो ये सब तुम इतनी सक्षम नहीं हो कि इस तरह इतने बड़े ग्रुप को संभाल सको। तुम्हारी बात पर गुस्सा तो इतना आया उस वक़्त... अपने स्वार्थ के लिए कोई किसी को इतना भी तोड़ सकता है क्या? मेरे अंदर हर तरह की क्षमता पहले भी थी आज भी है। बस मैं खुद से जादे तुम पर भरोसा करने लगी थी।

 आज वो भरोसा टूटा सा लग रहा है। तुम्हारी बात मान कर मैं सब कुछ छोड़ कर घर पर बैठ गई थी। पर उन कुछ महीनों मे मुझे ये समझ आ गया कि जिन लोगों पर खुद की ज़िम्मेदारी होती है वो इस तरह की ऐश करने का अधिकार नहीं रखते। मुझे भी इस सब की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पर मैंने उस दौरान सब सीख लिया – दुनियादारी भी। आज भले ही तुम मुझसे बेहिसाब नफरत करो पर मैं अपने आप को बेहिसाब प्यार करती हूँ। वो प्यार जो मेरा हक़ है और फर्ज़ भी।

 और हाँ, मुझे आधा अधूरा कुछ नहीं चाहिए। अगर मेरे साथ हो तुम तो पूरे मेरे रहो जैसे मैं तुम्हारी हूँ। वरना न सही! तुम्हारी मजबूरियाँ और जिम्मेदारियाँ तुम्हें मुबारक और मुझे मेरा आत्म सम्मान।

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