Tuesday, 28 January 2020

तुम होती कौन हो....?


हे ईश्वर

आपकी दुनिया में मुझे कोई हक़ हासिल नहीं। ये बात तो मुझे बहुत पहले ही पता लग गई थी। पर समय समय पर आपकी दुनिया मुझे इसका एहसास कराने से चूकती नहीं है। आज फिर एक बार इन्होंने भी यही किया। तुम होती कौन हो मेरे काम में दखल देने वाली। ये सब कुछ तुम्हारा तो है नहीं। जिस चीज़ के लिए मैं दिन रात प्रयासरत रहती हूँ, वो भी मेरी नहीं है। मेरे प्रयास इन्हें कम लगते हैं, मेरी कोशिश बेवजह लगती है। मेरा हर एक सुझाव बेकार लगता है।

मैं कभी नहीं चाहती थी कि पैसा और प्रभाव मेरे रिश्ते में दरार का कारण बने। पर आज वही एक चीज़ मेरी जिंदगी मुझसे छीन लेना चाहती है। नश्तर से लगते हैं उनके सारे कड़वे बोल। कभी कभी लगता है मैं सुनती भी क्यूँ हूँ? क्या मैं उनसे कम शिक्षित हूँ? नीचे पद पर हूँ या कोई गलत काम किया है? लेकिन नहीं। इसमें से कुछ भी सच नहीं। कभी कभी लगता है कि मैं इस सब में नहीं पड़ती तो अच्छा होता। पैसे हमेशा अपनों के बीच दरार डालने का काम करते हैं।

आज फिर इन्होंने एक चेतावनी दी है। आज फिर मेरी एक डेडलाइन खत्म हो जाएगी और मैं कुछ नहीं कर पाऊँगी। आज एक बार फिर मेरा रिश्ता टूटने की कगार पर है। सब हाथ से छूट जाएगा। कैसी होगी जिंदगी इनके बिना? सोच भी नहीं सकती। पर शायद अब सोचना पड़ेगा। बार बार का ये अपमान मुझसे सहा नहीं जा रहा है। फिर भी लगता है जैसे हम हमेशा साथ रहने के लिए बने हैं। हम ऐसे तो अलग नहीं हो सकते।

क्या होगा नहीं जानती। बस इतना जानती हूँ कि इनकी जिंदगी में मेरे जैसे असफल इंसान के लिए कोई जगह नहीं। इनके आस पास तो बस प्रभावशाली, अमीर और खूबसूरत लोग ही रहेंगे। दुनिया स्वार्थी होती है ये तो पता था लेकिन आपके अपने भी इस कदर नश्तर चुभा सकते हैं नहीं जानती थी। मन मजबूत किए जा रही हूँ। पहली बार थोड़े न है, समझा रही हूँ। खुद से कह रही हूँ कि मैं बहुत मजबूत हूँ। पर सच केवल मेरे घर की चारदीवारी को पता है।

ठीक है ईश्वर। अगर उसे मुझसे अलग ही करना है तो इतना करना कि वो हमेशा खुश रहे। उसका हर सपना पूरा हो और दुनिया के स्वार्थ और धोखे से वो दूर रहे। उसकी जिंदगी की सारी तकलीफ़ें दूर कर दो ईश्वर। उसे सुखी रखो, शांत रखो और हौसला दो। मैं उससे दूर सही पर उसके हर सपने को उस तक पहुंचा दो। उसे वही सफलता देना जिसका उसने न जाने कब से सपना देखा है।

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