Thursday, 9 September 2021

बहुत बदल गई हो......... और तुम????

  हे ईश्वर

ये देखिये:

मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया?

कोई मिलने आया है क्या?

हाँ, हाँ वहाँ तो बहुत से होंगे न!!

आज से तुम अपने रास्ते और मैं अपने.....

मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें जीवनसाथी मिले......

और मास्टर स्ट्रोक :

कोई मिल गया हो और तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो बता देना मुझे.... मैं फिर कभी बताऊंगा तुम्हें कि जो मैंने कहा वो क्यूँ कहा!!

अच्छा! तो नए परिवेश के साथ मुझ पर बदलता मौसम होने का इल्ज़ाम बड़ी जल्दी लगा दिया तुमने. हाँ! मैंने तो सोचा था कि तुम सब खत्म करना चाहते हो, मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते हो, मुझसे दूर जाना चाहते हो! फिर भी मैं बस खामोश रहती थी। अगर बात होती थी तो कर लेती थी और नहीं तो न सही! सबका एक ही सवाल है मुझसे मैं खामोश क्यूँ रहती हूँ? कभी कुछ कहती क्यूँ नहीं? तुम्हें छोड़ क्यूँ नहीं देती? तुमसे दूर क्यूँ नहीं चली जाती? न जाने कितने सवाल और जवाब सिर्फ एक है....मेरी खामोशी!

...... क्यूंकि अब मेरे पास तुमसे कहने के लिए अलफाज़ नहीं है। याद है जब आँसू आ जाते थे मेरी आँखों में तुमसे दूर होने के ख्याल से ही। आँसू आज भी आते हैं पर तुम्हारे आगे इनको बहा कर अपनी भावनाओं का अपमान अब और नहीं करवाना चाहती। इसलिए मैंने वो सब अपने मन की गहराइयों मे ही कहीं दफ्न करके छोड़ दिया। अब तुम्हारे हिस्से में बस मेरी ये खामोशी ही आएगी।

रहा सवाल इस बदलाव का! जब कोई नए परिवेश में जाता है न तो उसे थोड़ा समय चाहिए होता है अपने क्लांत मन और शरीर को विश्राम देने के लिए। कितना कुछ तो पीछे छोड़ कर आई हूँ मैं। भरा पूरा सा एक घर, मेरे दोनों श्वान!! हाँ पता है तुमको तो वो कुत्ते ही लगते हैं पर मेरा वो परिवार हैं। मेरे बिना न जाने कैसे खाते पीते होंगे? क्या करते होंगे वो!! यहाँ कौन सा फूलों की सेज पर रहती हूँ मैं? मेरा घर, मेरी हर सुख सुविधा और मेरा परिवार सब तो वहीं छूट गया। फिर भी तुम्हारे दिमाग में न जाने कैसी छवि है मेरी.... कि ये सब कहने से चूकते नहीं।

मैं बहुत बुरी हूँ न। फिर भी तुमने इस बुरी लड़की से बातें कीं, उससे आज भी जुड़े हुए हो। कहूँगी तो यही कहोगे मैं किसी के साथ नहीं जुड़ा। लेकिन जिस इंसान को तुम कहते हो मैं तुम्हारी लाइफ मे कोई रुचि नहीं लेता, उसी से जब उसका हाल पूछते हो हर वक़्त, इसे जुड़ना नहीं तो और क्या कहते हैं? जब उन छोटी छोटी बातों के लिए जिनको तुम आसानी से करवा सकते हो कहीं से भी मुझे करने कहते हो तब बहाने सा लगता है। या तो तुम सच में उतने ही मुसीबत में हो जितना तुम कहते हो या फिर तुम झूठ बोलते हो और मेरे पल पल की खबर रखने का बहाना चाहते हो। 

तुम्हारे मन में भरे हुए शक को मैं नहीं मिटा सकती और न ही तुम्हारे बारे में सच जान सकती हूँ। इसलिए

मान लूँगी कि तुम्हारे विवाह की बात सच है और वही करूंगी जो तब करने वाली थी। स्वतंत्र हूँ मैं, उच्छृंखल नहीं। हाँ, हैं मेरे अपने उसूल जो मुझे किसी शादीशुदा से जुडने की इजाज़त नहीं देते। आईन्दा तुम भी मेरा वही रूप देखोगे जो दुनिया को दिखाया है मैंने। इसके लिए अगर तुम कहो कि:

मेरा फोन क्यूँ नहीं उठाया – क्यूंकि एक नई जगह, नए परिवेश में अपना सब कुछ दुबारा बसाने में व्यस्त रही होंगी। हाँ निकलना पड़ता है कभी कभी बिना प्लान के बाहर। मेरे भी दोस्त हैं कुछ नये बने हुए, तो?

कोई मिलने आया है क्या? – नहीं क्यूंकि यहाँ मुझे कोई जानता ही नहीं, जानेगा भी तो क्यूँ मिलने की ज़िद करेगा

हाँ, हाँ वहाँ तो बहुत से होंगे न!! – नहीं कितने भी लोग हों मैं अपने किताबों और घर में एकांत में सुकून से रहती हूँ। मुझे कोई सरोकार नहीं है किसी से भी।

आज से तुम अपने रास्ते और मैं अपने..... – कितनी बार कहोगे? कर के दिखाओ न बिना किसी द्वेष और कटाक्ष के मुझसे मर्यादित दूरी बनाकर

मुझे खुशी होगी अगर तुम्हें जीवनसाथी मिले...... झूठ तुम चाहते हो मैं हमेशा तुम्हें अपने जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानूँ

और मास्टर स्ट्रोक :

कोई मिल गया हो और तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो बता देना मुझे.... मैं फिर कभी बताऊंगा तुम्हें कि जो मैंने कहा वो क्यूँ कहा!! – तुम अपने मन के पूर्वाग्रह दुराग्रह मुझ पर केवल आरोपित कर सकते हो साबित नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हारे प्रति वफादार और एकनिष्ठ भी। हाँ अगर तुम मुझे बीच रास्ते छोड़ कर किसी और को अपना लो तो... बिना किसी सवाल जवाब के मैं अपना रास्ता बदल लूँगी और तुमसे भी यही उम्मीद करूंगी। हाँ ये अलग बात है कि उसके बाद मैं क्या करती हूँ क्या नहीं ये जानने का हक़ तुम्हारा नहीं रहेगा। इतना तो न्याय होना ही चाहिए न?  

 अब मेरी बात –

कल को तुमको शादी करनी है न तो यही मान लो कि हो गई है तुम्हारी शादी और मुझे छोड़ कर आगे बढ़ो। आगे तुमको ये करना ही है तो मान क्यूं न लेते हो? क्यूँ शादी हो गई फिर भी मुझसे जुड़ना चाहोगे? मेरे अपने संस्कार, उसूल, आदर्श और मेरा ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं देता मुझे।

 इसलिए इन सब बातों के लिए अगर तुम कहो कि मैं बदल गई हूँ, तो हाँ मैं सचमुच बदल गई हूँ।

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