तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी
पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर
की एक जुंबिश और वो ऊंचाई से सीधा पथरीली ज़मीन पर आ गिरेगा उसी तरह हमें कभी पता
नहीं होता हमारी कौन सी हरकत तुमको इस कदर भड़का देगी कि हम भी अपने प्यार की रस्सी
से फिसल के आक्षेपों की पथरीली कंटीली ज़मीन पर जा गिरेंगे। देखा जाए तो एक छोटी सी
बात थी एक गाड़ी में एक शहर से दूसरे शहर का सफर। पर उसी सफर के लिए तुमने हमें
क्या कुछ सुना दिया? कभी कभी समझ नहीं आता महीनों गायब रहने वाले तुम ऐसे अचानक
हमारी ज़िंदगी में हक जताने लगते हो जैसे कभी दूर गए ही नहीं थे। पर तुम्हारी हर
पुकार किसी मतलब से जुड़ी होती है।
फिर भी जब मैं तुमसे कोई भी सवाल करती हूँ तुम
जाता देते हो कि तुम्हारा हमसे कोई लेना देना नहीं। अपने रिश्ते को एक नाम देने की
कोशिश में हमने अपने जीवन से जुड़े हर रिश्ते को खुद से मीलों दूर कर लिया है। भविष्य, परिवार, सामाजिक जीवन ये सब अपने एकाकी जीवन की अलमारी में रखी हुई भूली बिसरी डायरियाँ
बन कर रह गए हैं।
सवाल ही सवाल आते हैं मन में पर गूलर के फूलों
जैसे दुर्लभ जवाब उनके हमें कभी भी मिलते नहीं। कभी कभी लगता है लोग जीवन में कितने
प्यारे से प्यारे रिश्ते को छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं। फिर भी हम क्यूँ अटके हुए हैं
तुम पर। तुमने तो साफ साफ कह दिया है कई बार हम एक रिश्ते के भ्रम में जी रहे हैं।
हमको सहारा देने को बढ़े थे न तुम्हारे हाथ, फिर क्यूँ हमारे आत्मविश्वास को तोड़ने में लगे
रहते हैं वही हाथ तुम्हारे। तुम्हें तो हमारा अवलंब बनना था,
हमारी मजबूती, हमारी सबसे बड़ी ताकत। वही तुम आज हमारी सबसे बड़ी
कमजोरी बन गए हो। जब भी तुमसे अलग कुछ सोचना चाहते हैं, मन अजीब
सा विद्रोह कर देता है। दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है हमारा प्यार फिर भी अपनी भावनाओं
की संचित अनमोल आखिरी निधि भी तुम पर ही लुटाये जा रहे हैं। सब खत्म हो सकता है लेकिन
तुम्हारे साथ अपना नाम जोड़ने की हमारी इच्छा पता नहीं क्यूँ चिरस्थाई बन चुकी है।
किसी ने क्या ही सोचा होगा एक सशक्त, आत्मनिर्भर
लड़की अपनी हर बात के लिए तुम पर निर्भर है। याद है तुमने एक बार कहा था, “ तुमको पहचान की इतनी भूख क्यूँ हैं?” ऐसा इसलिए है
क्यूंकि एक अपनी पहचान और पुरानी किताबों के अलावा अपनी विरासत में हम किसी को कुछ
नहीं दे पाएंगे। कहते हैं लेखनी के रूप में रचनाकार हमेशा जीवित रहते हैं। इसलिए ये
किताबें, ये बातें ये शब्द हम अपने अमरत्व के यज्ञ में आहुति
के रूप में डालते जा रहे हैं। हम रहें या न रहें हमारी बातें, हमारी सोच ही हमारी विरासत के रूप में हमेशा बने रहेंगे।