हे
ईश्वर
इतनी
चमकीली दुनिया में जहां गोरी चमड़ी और सुंदर चेहरा ही सब कुछ है, आपने मुझे इतना साधारण क्यूँ बनाया? क्या मुझसे कोई
दुश्मनी थी आपकी? सत्यम शिवम सुंदरम क्या इतना बड़ा झूठ
है? क्या सुंदरम के बिना सत्य का अस्तित्व नगण्य है, तुच्छ है? मैंने आज तक कभी अपने बारे में इतना नहीं
सोचा। पर आज जब मैंने अपने प्यार की आँखों में देखा तो वहाँ भी मेरे अंदर की सुंदरता
के लिए प्रशंसा नहीं, किसी दूसरी गोरी चमड़ी के लिए भूख ही नज़र
आई। आज लग रहा है कि मैंने कितना समय बर्बाद किया भगवान। अपने दिमाग का कोठा भरने के
बजाय अगर मैं अपने शरीर पर ध्यान देती, तो आज मैं उसको मोटी और
थुलथुल न नज़र आती। उसकी नज़र मेरे शरीर को देखती है, उसका मन मुझसे
हट रहा है। मैं बहुत कुछ कर सकती हूँ पर अंदर से कुछ भी करने की इच्छा मरती जा रही
है।
मैं
खुद भी अंदर से मरती जा रही हूँ, सच कहती हूँ भगवान!
कितनी व्यर्थ लग रही है मेरी सारी उपलब्धियां आज मुझे। याद है भगवान, ये वही इंसान है जिसकी सफलता और खुशी के लिए मैंने इतनी सारी मन्नतें मांगी
हैं। वही मुझे इस कदर चोट पहुंचाएगा मैंने सोचा भी नहीं था। पर उसके जहरबुझे और कड़वे
शब्द अभी भी कानों में गूंज रहे हैं। मैं उन औरतों के बारे में सोचती हूँ जिनकी सुंदरता
पर रीझ कर उन्हें घर की शोभा बनाया जाता है पर कुछ सालों में जब वो ढल जाती है तो घर
के किसी कोने में पटक दिया जाता है। मेरी और उन औरतों की स्थिति में फर्क ही क्या है?
मैंने
सोचा था जो मेरी जिंदगी में आएगा वो मेरे गुणों की कद्र करेगा, मेरी उपलब्धियों पर नज़र डालेगा। मेरे शरीर से ज़्यादा उसके लिए मेरी सच्ची
भावनाओं की कीमत होगी। कुछ दिन के लिए लगा था कि ऐसा ही है। पर आज सोचती हूँ कि शायद
वो सब भी सच नहीं था। तो अब क्या करूँ? मैं भी दुनिया की भेड़चाल
में शामिल होकर अपनी चमड़ी और काया की फिक्र करूँ? या एक बार फिर
अपने को उसी खोल में समेट कर उसके लिए भी अपने मन के दरवाजे बंद कर दूँ? मैं इतना क्यूँ सोचती हूँ भगवान? क्या सच में पढ़-पढ़
के मेरा दिमाग खराब हो गया है? पता नहीं पर इतना जानती हूँ, मुझे चोट बहुत गहरी लगी है। खुद को संभालने में वक़्त तो लगेगा। कहते हैं वक़्त
हर जख्म भर देता है। पर जब एक ही जख्म को बार बार कुरेदा जाए तो क्या होता है? मैंने अपनी हर छोटी-बड़ी दुविधा में आपसे ही अपनी दिशा मांगी है। अब आप ही
बताइये कि मैं क्या करूँ?