Monday, 18 February 2019

बहन जी टाइप...

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हे ईश्वर
इतनी चमकीली दुनिया में जहां गोरी चमड़ी और सुंदर चेहरा ही सब कुछ है, आपने मुझे इतना साधारण क्यूँ बनाया? क्या मुझसे कोई दुश्मनी थी आपकी? सत्यम शिवम सुंदरम क्या इतना बड़ा झूठ है? क्या सुंदरम के बिना सत्य का अस्तित्व नगण्य है, तुच्छ है? मैंने आज तक कभी अपने बारे में इतना नहीं सोचा। पर आज जब मैंने अपने प्यार की आँखों में देखा तो वहाँ भी मेरे अंदर की सुंदरता के लिए प्रशंसा नहीं, किसी दूसरी गोरी चमड़ी के लिए भूख ही नज़र आई। आज लग रहा है कि मैंने कितना समय बर्बाद किया भगवान। अपने दिमाग का कोठा भरने के बजाय अगर मैं अपने शरीर पर ध्यान देती, तो आज मैं उसको मोटी और थुलथुल न नज़र आती। उसकी नज़र मेरे शरीर को देखती है, उसका मन मुझसे हट रहा है। मैं बहुत कुछ कर सकती हूँ पर अंदर से कुछ भी करने की इच्छा मरती जा रही है।

मैं खुद भी अंदर से मरती जा रही हूँ, सच कहती हूँ भगवान! कितनी व्यर्थ लग रही है मेरी सारी उपलब्धियां आज मुझे। याद है भगवान, ये वही इंसान है जिसकी सफलता और खुशी के लिए मैंने इतनी सारी मन्नतें मांगी हैं। वही मुझे इस कदर चोट पहुंचाएगा मैंने सोचा भी नहीं था। पर उसके जहरबुझे और कड़वे शब्द अभी भी कानों में गूंज रहे हैं। मैं उन औरतों के बारे में सोचती हूँ जिनकी सुंदरता पर रीझ कर उन्हें घर की शोभा बनाया जाता है पर कुछ सालों में जब वो ढल जाती है तो घर के किसी कोने में पटक दिया जाता है। मेरी और उन औरतों की स्थिति में फर्क ही क्या है?

मैंने सोचा था जो मेरी जिंदगी में आएगा वो मेरे गुणों की कद्र करेगा, मेरी उपलब्धियों पर नज़र डालेगा। मेरे शरीर से ज़्यादा उसके लिए मेरी सच्ची भावनाओं की कीमत होगी। कुछ दिन के लिए लगा था कि ऐसा ही है। पर आज सोचती हूँ कि शायद वो सब भी सच नहीं था। तो अब क्या करूँ? मैं भी दुनिया की भेड़चाल में शामिल होकर अपनी चमड़ी और काया की फिक्र करूँ? या एक बार फिर अपने को उसी खोल में समेट कर उसके लिए भी अपने मन के दरवाजे बंद कर दूँ? मैं इतना क्यूँ सोचती हूँ भगवान? क्या सच में पढ़-पढ़ के मेरा दिमाग खराब हो गया है? पता नहीं पर इतना जानती हूँ, मुझे चोट बहुत गहरी लगी है। खुद को संभालने में वक़्त तो लगेगा। कहते हैं वक़्त हर जख्म भर देता है। पर जब एक ही जख्म को बार बार कुरेदा जाए तो क्या होता है? मैंने अपनी हर छोटी-बड़ी दुविधा में आपसे ही अपनी दिशा मांगी है। अब आप ही बताइये कि मैं क्या करूँ?

Saturday, 9 February 2019

रिश्ता आया है

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हे ईश्वर

आपसे न जाने कितने सवालों का जवाब मिला है मुझे। आज फिर एक दोराहे पर खड़ी हूँ। मेरे ईश्वर मुझे नहीं पता अब मुझे क्या करना चाहिए। कुछ दिन पहले मुझे एक गलती हुई थी। पता नहीं बड़ी थी या छोटी पर ऐसी गलती की उम्मीद मैं खुद से कभी नहीं करती। कोई आम सा भी मौका हो, मैं उसे खास बनाने से कभी चूकती नहीं। वही मैं एक खास दिन भूल गई। अपने इस तनाव में, व्यस्तता में और भाग दौड़ में मैंने उस लम्हे को बस यूं ही गुज़र जाने दिया। पर अब मैं उस पल को भूल नहीं पा रही।

ईश्वर, इसी बीच एक रिश्ता आया मेरे लिए। मैंने अपने अतीत से सबक लेकर शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दिया था। ये भी तय है कि आज जो मेरे साथ है वो कल अपने परिवार की मर्ज़ी के आगे सर झुकाएगा ही। उसने तो साफ कहा है मुझसे। पर क्या मैं भी इतना ही साफ कह सकती हूँ? मैं जानती हूँ अगर मैंने हाँ कहा तो उनकी तरफ जाने वाला हर रास्ता मेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। पर ये भी सच है कि उनके पास मेरे लिए एक आधी अधूरी सी जिंदगी है।ये भी तो तय नहीं कि हमारा कल क्या होगा, कैसा होगा? उनके एक रिश्ते में बंध जाने के बाद हमारे रिश्ते का क्या होगा? ऐसे ही किसी रिश्ते में मेरे बंध जाने को क्या वो स्वीकार कर पाएंगे?

एक विवाहित व्यक्ति के साथ संबंध रखना मेरे लिए विकल्प है भी?? मैंने इस तरह के रिश्तों के भयानक सच को बेहद नजदीक से देखा है। क्या इस अग्निकुंड में जलने के लिए मैं तैयार हूँ? अगर हूँ तो क्यूँ? क्या मिलेगा मुझे? एक संतान की इच्छा की थी मैंने पर उस पर भी उनकी शर्तें रखने की आदत ने पानी फेर दिया। उनकी शर्त मान लूँ तो पूरी जिंदगी के लिए मुझे एक अनचाहा रिश्ता अपनाना पड़ेगा। पर अपना ही लूँगी तो अनचाहा कहाँ रह जाएगा वो? मैं क्या करूँ भगवान?

सैकड़ों बार उनसे पूछती हूँ मैं क्या आप मेरे साथ हो?’ किसी एक दिन अगर इसका जवाब हाँ न हुआ तो? कैसा साथ है ये कि मैं उनकी जिंदगी को दूर से सिर्फ देख सकती हूँ, कभी उसका हिस्सा नहीं बन सकती। कभी बन पाऊँगी कि नहीं, ये भी नहीं जानती। उनकी इस दोहरी जिंदगी में मैं एक दोयम दर्ज़ा ही रखती हूँ। इस दोहरी जिंदगी से कभी अगर वो ऊब कर सीधे रास्ते चलने का निर्णय ले लें, तो किस हक़ से रोक पाऊँगी? मेरे साथ किसी रिश्ते में न बंध कर भी मेरी जिंदगी में जो जगह इनकी है, वो क्या कभी किसी और की होगी? मेरे चारों तरफ लोग सबके सामने किसी के प्रेम में आकंठ डूबे हैं। उनसे कहने पर वो इसे दिखावा कह के खारिज कर देते हैं। दिखावे पर तो मैं भी विश्वास नहीं करती। पर कोई भी ऐसी चीज़ जिससे आपको अपना रिश्ता सँवारने में सहूलियत हो, अच्छी ही है।

एक दोराहा उनका जीवन भी है। वो भी तो ऐसी ही उलझनों के शिकार हैं। पर उनके लिए निर्णय लेना बेहद आसान है क्यूंकी उन्होंने अपना रास्ता और उसकी डोर पहले ही अपने परिवार के हाथ में दे रखी है। कल को अगर हमारा रिश्ता उनकी इस सहज जिंदगी में बाधा बना, तो एक पल में ही मेरा सब कुछ स्वाहा हो जाएगा। उनसे दूर होने की कल्पना भी करना सहज नहीं है। पर अगर वो खुद किसी दिन मुझे अपने जीवन से अलग करना चाहें तो मेरे पास दूर जाने के सिवा विकल्प भी नहीं। मैं जिंदगी भर तलवार की इस धार पर चलने को सिर्फ इसलिए तैयार हुई क्यूंकि मैं उनको दुख नहीं पहुंचाना चाहती। पर वो जो मुझे मर्मांतक पीड़ा देते हैं, क्या मैं उसे भी उतनी ही सहजता से स्वीकार करती हूँ?

क्या करूँ, ईश्वर?

Wednesday, 6 February 2019

आखिरी बाज़ी II

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हे ईश्वर

अगर तुम मुझसे प्यार करती हो तो... इस तो के आगे नियम, शर्तों और मांगों का एक बेहद लंबा जाल है। कभी तोहफे, कभी मांगें और कभी जिदें सब इसी एक सूत्र के सहारे पूरे होते हैं। क्यूँ झुक जाते हैं हम ऐसी बातों के आगे? एक तरफ तो हम प्यार को एक निस्वार्थ भाव और समर्पण मानते हैं और दूसरी तरफ उसी समर्पण का सौदा करने से नहीं चूकते। वो कौन लोग हैं जो किसी का प्यार नहीं, श्रद्धा भी नहीं, केवल सौदा चाहते हैं।

आज किसी ने मुझे भी ऐसे ही मजबूर किया तो मैं भी सोचने पर मजबूर हो गई। कितने ऐसे लोग होंगे जो प्यार को तोहफों, शर्तों और नियम-कायदों से बांधते होंगे। क्या दुनिया में कोई ऐसा रिश्ता नहीं जो स्वार्थ से परे हो? क्या हम कभी किसी रिश्ते के हमेशा अपने साथ होने की तसल्ली को महसूस नहीं कर पाएंगे? क्या सारी जिंदगी हमें इस असुरक्षा के भाव को ही अपनाना होगा? एक पल वो कहते हैं मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ फिर अगले ही पल उनके धमकी भरे अंदाज़ से मन सहम जाता है।

मैं उनको खोने से डरती तो हूँ पर साथ ही साथ अपनी कमजोरी पर शर्मिंदा भी हूँ। क्यूँ मेरा मन एक बार विद्रोह नहीं करता? क्यूँ मैं भी उनकी तरह तन कर, अकड़ कर नहीं बोल पाती तुम चाहो तो साथ रहो, चाहो तो जाओ। मुझे फर्क नहीं पड़ता। उनकी शुरू की हुई इस रेस को मैंने जीत तो लिया फिर भी हार का एहसास हुआ। मैंने अपने आप को हार कर आज की ये तसल्ली पाई है। ऊपर से ये तसल्ली भी न जाने कितने दिन की मेहमान है। शायद कभी कोई ऐसी फरमाईश या आज़माईश हो और मैं हार जाऊँ, तो? तो जिंदगी भर मुझे ये हार अपने कंधे पर ढोनी होगी।

आज अगर मैं कह भी दूँ कि हमें अलग हो जाना चाहिए तो उनकी छोटी सी तसल्ली भरी हाँ मेरा दिल तोड़ देगी। मैं जानती हूँ पलट कर वो नहीं आएंगे, मुझे उन्हें मनाना होगा। मैं झुकती हूँ अपने रिश्ते के लिए, उनके लिए अपने प्यार के लिए, उनकी नज़र में मेरे लिए झलकती फिक्र के लिए। क्या वो जानते हैं? जिस दिन ये प्यार, ये फिक्र, ये नज़र किसी और की हो जाएगी, उस दिन शायद मैं भी कह सकूँगी “जाते हो तो जाओ, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता”

अकेले हैं तो क्या गम है

  तुमसे प्यार करना और किसी नट की तरह बांस के बीच बंधी रस्सी पर सधे हुए कदमों से चलना एक ही बात है। जिस तरह नट को पता नहीं होता कब उसके पैर क...