हे
ईश्वर
आपसे
न जाने कितने सवालों का जवाब मिला है मुझे। आज फिर एक दोराहे पर खड़ी हूँ। मेरे
ईश्वर मुझे नहीं पता अब मुझे क्या करना चाहिए। कुछ दिन पहले मुझे एक गलती हुई थी। पता
नहीं बड़ी थी या छोटी पर ऐसी गलती की उम्मीद मैं खुद से कभी नहीं करती। कोई आम सा भी
मौका हो, मैं उसे खास बनाने से कभी चूकती नहीं।
वही मैं एक खास दिन भूल गई। अपने इस तनाव में, व्यस्तता में और
भाग दौड़ में मैंने उस लम्हे को बस यूं ही गुज़र जाने दिया। पर अब मैं उस पल को भूल नहीं
पा रही।
ईश्वर, इसी बीच एक रिश्ता आया मेरे लिए। मैंने अपने अतीत से सबक लेकर शादी के बारे
में सोचना ही छोड़ दिया था। ये भी तय है कि आज जो मेरे साथ है वो कल अपने परिवार की
मर्ज़ी के आगे सर झुकाएगा ही। उसने तो साफ कहा है मुझसे। पर क्या मैं भी इतना ही साफ
कह सकती हूँ? मैं जानती हूँ अगर मैंने हाँ कहा तो उनकी तरफ जाने
वाला हर रास्ता मेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। पर ये भी सच है कि उनके पास मेरे
लिए एक आधी अधूरी सी जिंदगी है।ये भी तो तय नहीं कि हमारा कल क्या होगा, कैसा होगा? उनके एक रिश्ते में बंध जाने के बाद हमारे
रिश्ते का क्या होगा? ऐसे ही किसी रिश्ते में मेरे बंध जाने को
क्या वो स्वीकार कर पाएंगे?
एक
विवाहित व्यक्ति के साथ संबंध रखना मेरे लिए विकल्प है भी?? मैंने इस तरह के रिश्तों के भयानक सच को बेहद नजदीक से देखा है। क्या इस अग्निकुंड
में जलने के लिए मैं तैयार हूँ? अगर हूँ तो क्यूँ? क्या मिलेगा मुझे? एक संतान की इच्छा की थी मैंने पर
उस पर भी उनकी शर्तें रखने की आदत ने पानी फेर दिया। उनकी शर्त मान लूँ तो पूरी जिंदगी
के लिए मुझे एक अनचाहा रिश्ता अपनाना पड़ेगा। पर अपना ही लूँगी तो अनचाहा कहाँ रह जाएगा
वो? मैं क्या करूँ भगवान?
सैकड़ों
बार उनसे पूछती हूँ मैं ‘क्या आप मेरे साथ हो?’ किसी एक दिन अगर इसका जवाब हाँ न हुआ तो? कैसा साथ है
ये कि मैं उनकी जिंदगी को दूर से सिर्फ देख सकती हूँ, कभी उसका
हिस्सा नहीं बन सकती। कभी बन पाऊँगी कि नहीं, ये भी नहीं जानती।
उनकी इस दोहरी जिंदगी में मैं एक दोयम दर्ज़ा ही रखती हूँ। इस दोहरी जिंदगी से कभी अगर
वो ऊब कर सीधे रास्ते चलने का निर्णय ले लें, तो किस हक़ से रोक
पाऊँगी? मेरे साथ किसी रिश्ते में न बंध कर भी मेरी जिंदगी में
जो जगह इनकी है, वो क्या कभी किसी और की होगी? मेरे चारों तरफ लोग सबके सामने किसी के प्रेम में आकंठ डूबे हैं। उनसे कहने
पर वो इसे दिखावा कह के खारिज कर देते हैं। दिखावे पर तो मैं भी विश्वास नहीं करती।
पर कोई भी ऐसी चीज़ जिससे आपको अपना रिश्ता सँवारने में सहूलियत हो, अच्छी ही है।
एक
दोराहा उनका जीवन भी है। वो भी तो ऐसी ही उलझनों के शिकार हैं। पर उनके लिए निर्णय
लेना बेहद आसान है क्यूंकी उन्होंने अपना रास्ता और उसकी डोर पहले ही अपने परिवार के
हाथ में दे रखी है। कल को अगर हमारा रिश्ता उनकी इस सहज जिंदगी में बाधा बना, तो एक पल में ही मेरा सब कुछ स्वाहा हो जाएगा। उनसे दूर होने की कल्पना भी
करना सहज नहीं है। पर अगर वो खुद किसी दिन मुझे अपने जीवन से अलग करना चाहें तो मेरे
पास दूर जाने के सिवा विकल्प भी नहीं। मैं जिंदगी भर तलवार की इस धार पर चलने को सिर्फ
इसलिए तैयार हुई क्यूंकि मैं उनको दुख नहीं पहुंचाना चाहती। पर वो जो मुझे मर्मांतक
पीड़ा देते हैं, क्या मैं उसे भी उतनी ही सहजता से स्वीकार करती
हूँ?
क्या
करूँ, ईश्वर?
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