Thursday, 13 August 2020

देर है और अंधेर भी...

 हे ईश्वर

कहते हैं आपके घर में देर है अंधेर नहीं। पर वो तो आपका घर है न, हम जैसे लोग तो इस दुनिया में रहते हैं और इस दुनिया में देर और अंधेर दोनों होती है। ईश्वर मैं जब भी उनसे कोई भी बात कहने की कोशिश करती हूँ वो सुनते ही नहीं। कहते हैं तुम्हारे पास होगा दुनिया जहां का वक़्त तो तुम करा करो खाली पीली बकवास। मेरी सारी बातें, सारी चिंताएँ सब कुछ उनके लिए बस बकवास है। वो करते ही क्यूँ हैं मेरी और अपनी तुलना। उनके साथ दुनिया जहां के लोग हैं, मैं तो अकेली हूँ। हाँ भगवान तुम्हारी बनाई इस दुनिया में मैं बिलकुल अकेली हूँ।

पिछले कुछ दिनों में ये बात तो मुझे बहुत अच्छी तरह से समझ आ गई। खुशी में चाहे मेरे साथ सारी दुनिया हो, अपनी तकलीफ़ों में मैं बिलकुल अकेली हूँ, कोई नहीं है मेरे साथ। मैंने हर किसी से मदद मांगी थी, प्यार, दोस्त, परिवार। पर किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया। सही या गलत लोग जानना ही नहीं चाहते। वो कहते हैं अगर मैं तुम्हारा साथ न दूँ तो तुम्हारा सब कुछ बिगड़ जाएगा। मेरे बिना कुछ नहीं कर पाओगी तुम। क्या सच में उनके बिना मैं कुछ नहीं हूँ?

आदमी बड़ी आसानी से औरत की किसी भी उपलब्धि का श्रेय खुद ले लेता है। मैं आज एक सफल, आत्मविश्वासी और सुशिक्षित इंसान हूँ पर ये सब मुझे क्या किस्मत या किसी की मेहरबानी से मिला है? आपके अलावा किसी को किसी पर दया करने का कोई अधिकार नहीं है भगवान। दया का अधिकार सिर्फ आपका है। फिर आपकी दुनिया क्यूँ मुझ पर दया करने का झूठ मूठ का दावा करती है?

वो हमेशा कहते हैं कि भगवान पर छोड़ देता हूँ मैं अपने अच्छे बुरे काम। मैं भी यही कह रही हूँ। अगर आप सब जानते हैं तो खामोश क्यूँ हैं इतने दिनों से? क्यूँ इस दुनिया को दे रखा है आपने मुझे इतना सताने का अधिकार। वो कहते हैं ये सब पूर्व जामन के बुरे कर्मों का फल है। मैंने ऐसे कौन से बुरे कर्म किए हैं भगवान? प्रायश्चित करने का मौका दो न, और कितनी सज़ा दोगे?

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